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केजरीवाल के शपथ ग्रहण में शिक्षकों की मौजूदगी अनिवार्य नहीं, विरोध के बाद न्योते में बदला आदेश

दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में शिक्षकों के शामिल होने के मुद्दे पर दिल्ली सरकार बैकफुट पर आ गई है. दिल्ली सरकार ने शिक्षकों की अनिवार्य उपस्थिति पर अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.

बैकफुट पर आई दिल्ली सरकार (फोटो-PTI) बैकफुट पर आई दिल्ली सरकार (फोटो-PTI)
अंकित यादव
  • नई दिल्ली,
  • 15 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 10:07 PM IST

  • शपथ ग्रहण समारोह में शिक्षकों के आने का था आदेश
  • विपक्ष के साथ टीचर एसोसिएशन ने भी जताया था विरोध

दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह में शिक्षकों के शामिल होने के मुद्दे को लेकर दिल्ली सरकार बैकफुट पर आ गई है. दिल्ली सरकार ने शिक्षकों की अनिवार्य उपस्थिति पर अब अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.

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अब शिक्षकों की अनिवार्य उपस्थिति को निमंत्रण में बदल दिया गया है. नए फैसले के बाद रामलीला मैदान में शिक्षकों की एंट्री के दौरान अटेंडेंस नहीं लगाए जाएंगे. चौतरफा विरोध के बाद दिल्ली सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे हैं. अब शपथ ग्रहण समारोह में शिक्षकों का आना स्वैच्छिक हैं. उनकी कोई हाजिरी नहीं लगेगी.

दिल्ली सरकार का नया आदेश

इससे पहले, दिल्ली शिक्षा निदेशालय (डीओई) ने रामलीला मैदान में 16 फरवरी, रविवार  को होने वाले अरविंद केजरीवाल और उनकी कैबिनेट के शपथ ग्रहण समारोह में स्कूलों के शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों को निमंत्रण दिया था. डीओई के सर्कुलर के अनुसार, स्कूलों के प्रधानाचार्यों, उप प्रधानाचार्यो, इंटरप्रेनरशिप माइंडसेट करिकुलम कोर्डिनेटर्स, हैप्पीनेस कोर्डिनेटर्स और शिक्षक विकास समन्वयक समेत 20 अन्य लोगों को लाने के लिए कहा गया था.

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विपक्ष ने किया था विरोध

शपथ ग्रहण समारोह में सरकारी स्कूल के शिक्षकों को बुलाए जाने के मामले पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधा था. कांग्रेस और बीजेपी ने आरोप लगाया था कि अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण समारोह के लिए दिल्ली के सरकारी स्कूलों को शिक्षकों को भेजने का आदेश दिया गया है ताकि शपथ ग्रहण के दौरान भीड़ जुटाई जा सके.

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विपक्ष के अलावा दिल्ली सरकार स्कूलों के टीचर एसोसिसिएशन ने भी सरकार के फैसले आपत्ति जाहिर की थी. एसोसिएशन ने उपराज्यपाल को पत्र लिखकर कहा था कि इस फैसले पर फिर से विचार किया जाए. क्योंकि शिक्षकों की उपस्थिति अनिवार्य की गई है. पत्र में मांग की गई थी कि इस आदेश को अनिवार्य न बनाया जाए और इसे सिर्फ एक आमंत्रण में रहने दिया जाए ताकि शिक्षक अपनी इच्छानुसार शपथ ग्रहण में शामिल हो सकें.

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