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आसाराम बापू ने सितंबर 2013 में हुए निर्भया सामूहिक बलात्कार मामले में अपने बयानों से सबको हैरान कर दिया था. उनके बयानों से साफ हो गया था कि महिलाओं को लेकर उनका नजरिया क्या है? उनके बयान ही उनके चरित्र की कहानी कहते हैं.
जब दिल्ली में चलती बस में सामूहिक बलात्कार हुआ तो उस वक्त राजस्थान में टोंक जिले में आसाराम मौजूद थे. उसने अपने शिविर के मंच से दिल्ली बलात्कार मामले पर कई बेढंगे बयान देकर बलात्कार पर चल रही तीखी राष्ट्रीय बहस में बाबा ने हस्तक्षेप किया. बाबा की टिप्पणियों ने उन पुरुष अपराधियों की बजाए, जिन्होंने उस लड़की के साथ बलात्कार किया था, दिल्ली की दिवंगत बलात्कार पीड़िता को ही गुनाहगार बना डाला.
उसने कहा कि यदि उस लड़की ने सरस्वती मंत्र का पाठ किया होता या उनसे दीक्षा ली होती तो वह उस बस पर सवार ही न हुई होती. इससे पहले उन्होंने कहा कि यदि उसने बलात्कारियों को भाई कहा होता तो शायद वे उसके साथ बलात्कार ही न करते. इसी बीच यह आपत्तिजनक बयान भी दे डाला, 'एक हाथ से ताली नहीं बज सकती.'
विवादास्पद गुरु के अंध भक्तों को शिक्षा दी गई है कि गुरु पर सवाल उठाने पर नरक मिलना तय है. लिहाजा, उन्होंने इस भयानक विवाद से उन्हें निकालने की बजाए उनका बचाव कर उसे और भयानक बनाने में ही योगदान दिया.
जैसा कि आसाराम की एक प्रवक्ता नीलम दूबे ने कहा, ''बाबा के बयानों को बहुत अधिक तोड़ा-मरोड़ा गया है. वे पीड़िता को दोष नहीं दे रहे थे बल्कि सिर्फ यह कह रहे थे कि वह भी कम-से-कम एक प्रतिशत जिम्मेदार तो थी ही क्योंकि उसने ऐसी लगभग खाली बस में चढ़ने की गलती की थी जिसमें एक भी महिला मौजूद नहीं थी.''
आसाराम के बयान की चौतरफा आलोचना हुई लेकिन बाबा पर कोई असर न हुआ और वे बलात्कारियों को मृत्यु दंड देने के विचार का विरोध कर अपने विवादास्पद बयानों पर कायम रहे. उन्होंने तर्क दिया, ''इसका इस्तेमाल ढीले-ढाले चरित्र की महिलाओं द्वारा पुरुषों के विरुद्ध ठीक उसी तरह से किया जाएगा, जैसे सख्त दहेज विरोधी कानून का इस्तेमाल कुछ महिलाएं अपने पतियों को परेशान करने के लिए कर रही हैं.''
एक साइकिल की दुकान के मिस्त्री से बाबा बनने का सफर
कोई चार दशक पहले अहमदाबाद की एक साइकिल की दुकान के मिस्त्री से दो करोड़ अनुयायियों और 8,000 करोड़ रु. के साम्राज्य वाले एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में असुमाल थाउमल हरपलानी उर्फ आसाराम बापू का उत्थान सचमुच किसी सपने जैसा ही रहा है.
आज शास्त्रों के ज्ञान की बात आने पर आसाराम की कहीं कोई खास गिनती नहीं होती लेकिन धन-दौलत के मामले में वे प्रवचन देने वाले आज के कई गुरुओं से बढ़कर हैं.
उनके साम्राज्य में भारत के प्रमुख शहरों में या उसके आस-पास महत्वपूर्ण स्थानों पर हजारों एकड़ जमीन और आध्यात्मिक पत्रिकाओं के अलावा आयुर्वेदिक दवा, अगरबत्ती, शैंपू तथा साबुन जैसे दो दर्जन से अधिक उत्पादों का एक फलता-फूलता कारोबार शामिल है, जिससे उन्हें करोड़ों रु. की सालाना आमदनी होती है.
वे अपने देशव्यापी साम्राज्य को लगभग 400 ट्रस्टों के माध्यम से संचालित करते हैं, जिनमें दो मुख्य ट्रस्ट—संत श्री आसारामजी आश्रम ट्रस्ट और संत श्री आसारामजी महिला उत्थान ट्रस्ट—अहमदाबाद में हैं.
आसाराम का जन्म पाकिस्तान के सिंध प्रांत के नवाबशाह के निकट बिरानी नामक गांव में हुआ था. भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण के समय हुए सांप्रदायिक दंगों के कारण उनके पिता थाउमल को सिंध से भागकर कच्छ और फिर अहमदाबाद आने के लिए मजबूर होना पड़ा. मैट्रिक फेल आसाराम तब सात साल के ही थे.
20 के होने के बाद आसाराम, लीलाशाह बाबा का आशीर्वाद लेने के लिए कच्छ के आदिपुर में स्थित उनके आश्रम में गए. लीलाशाह बाबा एक सम्मानित आध्यात्मिक व्यक्ति थे और उनका देहांत 1973 में हुआ. कच्छ के सिंधी बुजुर्गों का कहना है कि लीलाशाह बाबा अपनी मृत्यु के समय आसाराम को पसंद नहीं करते थे, फिर भी आसाराम बापू के अनुयायी यही बताते हैं कि लीलाशाह ही उनके गुरु थे.
आसाराम के लिए बुरा दौर 2008 से लेकर 2010 के बीच आया जब उन्हें और उनके पुत्र नारायण साईं को महिलाओं के यौन शोषण, तांत्रिक उद्देश्यों के लिए बच्चों की बलि और हिंसा का इस्तेमाल कर जमीन हथियाने जैसे आरोपों का सामना करना पड़ा.
लेकिन ये आरोप साबित नहीं हो पाए. इतना ही नहीं, इन आरोपों से उनकी छवि पर भी कोई असर नहीं पड़ा, बल्कि उनके शिष्यों की संख्या या तो स्थिर रही या कई स्थानों पर बढ़ती गई और उनके दुश्मनों के साथ स्वतंत्र पर्यवेक्षक भी उनकी शक्ति के रहस्य के बारे में सोचकर हैरान होते रहे.
जैसा कि उनके समर्पित शिष्य उदय संघानी कहते हैं, 'बापू के खिलाफ आरोप ऐसे असंतुष्ट लोगों ने लगाए हैं जो बापू से कुछ अनुचित काम कराना चाहते थे और जिसे वे कभी नहीं करा पाए. उनके अनुयायियों की संख्या इसलिए बढ़ी है क्योंकि बापू के साथ अपने आध्यात्मिक अनुभव से लाभान्वित होने वाले लोगों ने झूठे आरोपों पर आधारित मीडिया के नकारात्मक प्रचार की बजाए अपने अनुभव पर भरोसा किया और वे अपनी भावनाएं नए लोगों से साझ करते गए.'
उदाहरण के लिए गुजरात के अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) से आने वाले 35 वर्षीय डी.एस. बारिया का ही मामला लीजिए, जो आसाराम बापू के समर्पित अनुयायी हैं और सैन फ्रांसिस्को में एक कंप्यूटर वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर रहे हैं. वे आसाराम के एक खांटी अनुयायी के प्रतीक हैं. उनका कहना है कि आसाराम की शिक्षाओं की वजह से ही वे अमेरिका जा पाए और जीवन में आगे बढ़ पाए.
उन्हीं के शब्दों में, 'उनके खिलाफ चले नकारात्मक अभियान की तीव्रता उन आध्यात्मिक मूल्यों की तीव्रता से बहुत कम थी जो मेरे जैसे लाखों लोगों ने उनसे ग्रहण किया है. किसी अन्य चीज से अधिक हमने उनके साथ के अपने अनुभवों पर भरोसा किया है. बापू ने हमारी संस्कृति, धर्म और आध्यात्मिकता को लेकर एक अनूठा गर्व हमारे भीतर बिठा दिया है.'
इस दौरान बाबा के राजनैतिक अनुयायियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई दिखती है. 2011 में वे सात प्रदेशों के राजकीय अतिथि बने जिनमें कांग्रेस और बीजेपी, दोनों दलों द्वारा शासित प्रदेश शामिल हैं. पिछले दो वर्षों के दौरान जो मुख्यमंत्री उनसे मिलने आए, उनमें हाल ही में हिमाचल प्रदेश में हार का स्वाद चखने वाले प्रेम कुमार धूमल, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह, राजस्थान के अशोक गहलोत, मध्य प्रदेश के शिवराज सिंह चौहान और यहां तक कि पंजाब के नेता प्रकाश सिंह बादल शामिल हैं.
वैलेंटाइन डे की पश्चिमी अवधारणा के मुकाबले में आसाराम बापू द्वारा 'माता-पिता पूजन दिवस' मनाने के प्रयासों से प्रभावित होकर रमन सिंह सरकार ने 2011 के वैलेंटाइन डे को छत्तीसगढ़ में 'माता-पिता पूजन दिवस' घोषित किया था.
अहमदाबाद में आसाराम बापू के आह्वान पर 60 स्कूलों ने पिछले वैलेंटाइन डे को माता-पिता पूजन दिवस के रूप में मनाया. जाहिर है, आसाराम तमाम आध्यात्मिक गुरुओं के बीच विवादास्पद लेकिन बेहद असरदार करार दिए जा सकते हैं.
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