Advertisement

एशियाड: गोल्डन गर्ल बनीं स्वप्ना, पैरों में 6-6 उंगलियां, जूते पहनने में होती है दिक्कत

स्वप्ना बर्मन ने दांत दर्द के बावजूद एशियाई खेलों की हेप्टाथलन में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचा. वह इन खेलों में सोने का तमगा जीतने वाली पहली भारतीय हैं. इक्कीस वर्षीय बर्मन ने दो दिन तक चली सात स्पर्धाओं में 6026 अंक बनाए.

स्वप्ना बर्मन स्वप्ना बर्मन
अमित रायकवार
  • जकार्ता,
  • 30 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 10:59 AM IST

उत्तरी बंगाल का शहर जलपाईगुड़ी बुधवार को उस समय जश्न में डूब गया, जब यहां के एक रिक्शा चालक की बेटी स्वप्ना बर्मन ने एशियाई खेलों में सोने का तमगा अपने गले में डाला. स्वप्ना ने इंडोनेशिया के जकार्ता में जारी 18वें एशियाई खेलों की हेप्टाथलन स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया. वह इस स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी हैं.

Advertisement

Asian Games: 11वें दिन भारत 54 मेडल के साथ 9वें पायदान पर

स्वप्ना ने दांत दर्द के बावजूद सात स्पर्धाओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया. जैसे ही स्वप्ना की जीत तय हुई घोषपाड़ा में स्वप्ना के घर के बाहर लोगों का जमावड़ा लग गया और चारों तरफ मिठाइयां बांटी जाने लगीं.

एशियाड: स्वप्ना हेप्टाथलन में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय बनीं

21 साल की स्वप्ना बर्मन का नाम देश में चुनिंदा लोगों को ही पता होगा, लेकिन एशियाड में इस एथलीट ने वो कर दिखाया, जिसकी उम्मीद शायद किसी को नहीं रही होगी. इस कामयाबी के बाद स्वप्ना बड़े एथलीटों में शामिल हो गईं. स्वप्ना की कामयाबी पर देश नाज कर रहा है.

बीमारी की वजह से पिता बिस्तर पर

स्वप्ना का जीवन बेहद संघर्षों से भरा रहा है. उनकी मां चाय के बगान में मजदूरी करती हैं और पिता पंचम बर्मन रिक्शा चलाते हैं, लेकिन बीते कुछ दिनों से उम्र के साथ लगी बीमारी के कारण बिस्तर पर हैं.

Advertisement

इसी कारण जूते जल्दी फट जाते हैं...

इतना ही नहीं स्वप्ना के दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं. जिसकी वजह से उन्हें जूते पहने और ताकत के साथ दौड़ने में दिक्कत आती रही है. पांव की अतिरिक्त चौड़ाई खेलों में उसकी लैंडिंग को मुश्किल बना देती है, इसी कारण उनके जूते जल्दी फट जाते हैं. इसके बावजूद उन्होंने इस कमजोरी को खुद पर हावी नहीं होने दिया. पूर्व क्रिकेट राहुल द्रविड़ की गो स्पोर्ट्स फाउंडेशन ने स्वप्ना के हुनर को पहचाना और मदद करनी शुरू की. जिसकी वजह से वो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर पा रही हैं.

स्वप्ना को जो भी प्राइजमनी मिलती है वो इसके इस्तेमाल पिता की देखरेख और घर के रखरखाव के लिए करती हैं. जिसकी छत और दीवारें पक्की नहीं हैं. स्वप्ना ने एथलेटिक्स के हेप्टाथलन में 2017 पटियाला फेडरेशन कप में गोल्ड मेडल जीता इसके अलावा भुवनेश्वर में एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल अपने नाम किया है.

कोच ने बचपन में ही पहचानी प्रतिभा

स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने कहा कि उसे अपने खेल संबंधी महंगे उपकरण खरीदने में काफी परेशानी होती है. बकौल सुकांत, 'मैं 2006 से 2013 तक उसका कोच रहा हूं. वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता है. जब वह चौथी क्लास में थी, मैंने उसकी प्रतिभा पहचान ली थी. इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया.

Advertisement

चार साल पहले इंचियोन में आयोजित किए गए एशियाई खेलों में स्वप्ना कुल 5178 अंक हासिल कर चौथे स्थान पर रही थीं. पिछले साल एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी वह स्वर्ण जीत कर लौटी थी.

अपनी बेटी की सफलता से खुश स्वप्ना की मां बाशोना इतनी भावुक हो गई थीं कि उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे. बेटी के लिए वह पूरे दिन भगवान के घर में अर्जी लगा रही थीं. स्वप्ना की मां ने अपने आप को काली माता के मंदिर में बंद कर लिया था. इस मां ने अपनी बेटी को इतिहास रचते नहीं देखा क्योंकि वह अपनी बेटी की सफलता की दुआ करने में व्यस्त थीं.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement