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जब एक भारतीय महिला साइंटिस्‍ट ने ढूंढ़ निकाला कैंसर का इलाज

आर्यभट्ट ने जीरो की खोज कर गणित को आसान बनाया, तो वहीं दूसरी ओर इतिहास में कुछ ऐसी भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने नाम दर्ज कराया, जिनकी खोज ने दुनिया के सामने खतरनाक बीमारियों के इलाज का एक नया विकल्प दिया.

असीमा चटर्जी असीमा चटर्जी
वंदना भारती
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  • 23 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 3:23 PM IST

देश और दुनिया के मशहूर और होनहार वैज्ञानिकों में आपने कई भारतीय वैज्ञानिकों के नाम सुने होंगे. जहां एक ओर आर्यभट्ट ने जीरो की खोज कर गणित को आसान बनाया, तो वहीं दूसरी ओर इतिहास में कुछ ऐसी भारतीय महिला वैज्ञानिकों ने नाम दर्ज कराया, जिनकी खोज ने दुनिया के सामने खतरनाक बीमारियों के इलाज का एक नया विकल्प दिया. इनमें एक थीं असीमा चटर्जी.

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वह पहली भारतीय महिला है जिन्हें University द्वारा विज्ञान के doctorकी उपाधि दी गई है भारत के राष्ट्रपति द्वारा असीमा चटर्जी को राज्यसभा के सदस्य के रूप में चुना गया है.

असीमा चटर्जी का जन्‍म 23 सितंबर को साल 1917 में कोलकाता में हुआ था. तब लड़कियों का हाई स्‍कूल से आगे पढ़ना असामान्‍य बात थी. उनके पिता डॉ. इंद्रनारायण मुखर्जी और मां कमला देवी ने हालांकि कभी इस बात पर रोक टोक नहीं लगाई, पर ज्‍वाइंट फैमली में होने के कारण असीमा को कुछ बड़े बुजुर्गो के विरोध का सामना करना पड़ा.

आसीमा अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी थीं, इसलिए उन पर इस बात का दबाव ज्‍यादा था कि उनसे उनके भाई बहन क्‍या सीखेंगे.

असीमा ने साल 1932 में कोलकाता के बेथुन कोलेजिएट से 10वीं पास किया और साल 1934 में आईएससी एग्‍जाम भी पास कर लिया. आसीमा को आईएससी में बंगाल सरकार की ओर से स्‍कॉलरशिप मिली थी.

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असीमा इसके बाद अब कॉलेज की पढ़ाई करना चाहती थीं. लेकिन कोएड कॉलेजमें एडमिशन लेना उनके लिए इतना आसान भी नहीं था. अपने ही परिवार के विरोध का सामना करने के बाद बावजूद अपनी मां की मदद से उन्‍होंने स्‍कॉटिश चर्च कॉलेज में एडमिशन ले ही लिया. असीमा नेडिपार्टमेंट ऑफ केमिस्‍ट्री में एडमिशन लिया था. इस डिपार्टमेंट में एडमिशन लेने वाली आसीमा अकेली लड़की थीं.

म्‍यूजिक का भी था शौक

असीमा चटर्जी पढ़ने में जितनी होशियार था, उतनी ही बेहतरीन संगीत में भी थीं. वोकल म्‍यूजिक में उनकी दिलचस्‍पी ज्‍यादा थी. उन्‍होंने क्‍लासिकल म्‍यूजिक में ट्रेनिंग भी ली. करीब 14 साल तक ध्रुपद और खयाल सीखा और साल 1933 में हुए ऑल बंगाल म्‍यूजिक कॉम्‍पटिशन में दूसरा स्‍थान हासिलकिया.

संस्‍कृत का बेहतरीन ज्ञान

असीमा की संस्‍कृत भाषा पर बहुत अच्‍छी पकड़ थी. यही वजह थी कि वो पुराने लेखकों के एतिहासिक लेखों को पढ़ती थीं. उनके पिता कई बार उनके इस हुनर की तारीफ भी करते थे.

11 महीने की बेटी को लेकर पहुंचीं अमेरिका

साल 1940 में असीमा ने लेडी ब्राबॉर्न कॉलेज के केमिस्‍ट्री डिपार्टमें फाउंडर हेड के तौर पर ज्‍वाइन किया और साल 1944 में उन्‍हें यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता के हॉनर्री लेक्‍चरार के तौर पर नियुक्‍त कर लिया गया. लेकिन आसामी केमिस्‍ट्री के क्षेत्र में और रिसर्च करना चाहती थीं.इसलिए उन्‍होंने साल 1947 में अमेरिका जाने का निर्णय लिया. वो अपनी 11 महीने की बेटी और एक आया को साथ लेकर अमेरिका पहुंच गईं.

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यहीं उनकी मुलाकात अमेरिका स्‍थ‍ित रामाकृष्‍णा-विवेकानंद सेंटर मेंस्‍वामी निखिलानंद जी महाराज और स्‍वामी प्रभाबननंदजी महाराज से हुई. इसके बाद तो जैसे असीमा को अपना रास्‍ता मिल गया हो. असीमा को इन सभी आगे बढ़ने का प्रोत्‍साहन मिला.

असीमा चटर्जी ने इसके बाद कई दवाएं विकसित कीं. इसमें कैंसर, मिर्गीऔर मलेरिया विरोधी दवाओं का विकास सबसे महत्‍वपूर्ण है.

शादी

असीमा के शादी डॉ. बरदानंदा चैटर्जी से हुई. बरदानंद जाने-माने फिजिकलकेमिस्‍ट थे. प्रोफेसर चैटर्जी का अपनी पत्‍नी असीमा पर गहरा प्रभाव था. असीमा अगर खुद को विज्ञान को समर्पित कर पाईं तो इसमें प्रोफेसर चैटर्जीके प्रोत्‍साहन और सहयोग को भी योगदान था.

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