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असम: जान जोखिम में डाल स्वास्थ्यकर्मी पहुंचा रहे मदद, बाढ़ में डूबे गोलाघाट से ग्राउंड रिपोर्ट

बाढ़ की वजह से गोलाघाट के सुदूर गांव में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी और आशा वर्कर्स के लिए काम करना बेहद कठिन हो रहा है. कोरोना और बाढ़ से त्रस्त लोगों के लिए स्वास्थ्य विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि बरसात के मौसम में दूसरी बीमारियों से जूझ रहे आदिवासी और गरीब गांव वालों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया हो सकें.

असम के गोलाघाट में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है (पीटीआई) असम के गोलाघाट में बाढ़ से जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है (पीटीआई)
आशुतोष मिश्रा
  • गोलाघाट,
  • 23 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 7:49 AM IST

  • राज्य में बाढ़ से मरने वालों का आंकड़ा 87 तक पहुंचा
  • 25 लाख से ज्यादा आबादी बाढ़ की विभीषिका से त्रस्त
  • बड़ी संख्या में लोग राहत कैंपों में शरण लेने को मजबूर

जहां एक तरफ पूरा हिंदुस्तान कोरोना वायरस के संक्रमण से जूझ रहा है तो वहीं भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम संक्रमण के साथ-साथ मूसलाधार बारिश से आए सैलाब की दोहरी मार से जूझ रहा है. असम के 33 में से 28 जिले पानी पानी है और ब्रह्मपुत्र नदी अभी भी खतरे के निशान से ऊपर बह रही है.

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राज्य में बाढ़ से मरने वालों का आंकड़ा 87 तक पहुंच गया है. 25 लाख से ज्यादा आबादी कुदरत के कहर को झेल रही है. लाखों लोग डूब चुके गांव से विस्थापित हो चुके हैं और सरकारी राहत केंद्रों में शरण लेने पर मजबूर हैं. बेहाल और बेबस जिंदगी सरकारी मदद पर निर्भर है. असम का गोलाघाट जिला उन्हीं बाढ़ प्रभावित जिलों में से एक है जहां गांव के गांव जलमग्न हैं.

सरकारी फ्लड कैंप में आश्रय

गोलाघाट जिले के गांवों में पानी का स्तर 8 फीट से ज्यादा बढ़ने के चलते बड़ी संख्या में आदिवासी और ग्रामीण नेशनल हाईवे के किनारे बने सरकारी फ्लड कैंप में आश्रय ले रहे हैं. प्रशासन की ओर से इन्हें अनाज और दवाइयां मुहैया कराई जा रही हैं.

गोलाघाट जिले के डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट ऑफिसर रोनी राजकुमार उन लोगों में से हैं जो प्रशासन की तरफ से इन रिलीफ केंद्रों में मदद पहुंचाने का काम कर रहे हैं. रोमी राजकुमार ने आजतक को बताया, 'अकेले इसी जिले में हमने 200 से ज्यादा रिलीफ कैंप स्थापित किए हैं ताकि सोशल डिस्टेंसिंग भी महामारी के मद्देनजर बनी रहे. रिलीफ कैंप में स्वास्थ्य विभाग लगातार सैनिटाइजेशन भी करता है और जरूरत के हिसाब से उन्हें दवाइयां अनाज और खाना मुहैया कराया जा रहा है.'

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डिस्ट्रिक्ट प्रोजेक्ट ऑफिसर का कहना है कि पानी ज्यादा बढ़ने पर लोग किनारे पर आश्रय केंद्र में आ जाते हैं लेकिन थोड़ा भी पानी घटता है तो लोग फिर से गांव में चले जाते हैं.

स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों के लिए संघर्ष

गोलाघाट के सुदूर गांव में स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारी और आशा वर्कर्स के लिए काम करना बेहद कठिन हो रहा है. कोरोना और बाढ़ से त्रस्त लोगों के लिए स्वास्थ्य विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती है कि बरसात के मौसम में दूसरी बीमारियों से जूझ रहे आदिवासी और गरीब गांव वालों को बुनियादी स्वास्थ्य सेवाएं मुहैया हो सकें.

आशा वर्कर गायत्री देवी का कहना है कि मौसम चाहे जैसा भी हो, बाढ़ चाहे जितनी भी हो, वह लोगों की जरूरत के लिए हर हाल में गांव तक जाती हैं. गायत्री देवी अपने साथ रोजाना खुजली, खांसी, सर्दी जैसी बुनियादी दवाइयां से भरे एक डिब्बे को लेकर निकलती हैं. अगर उन्हें इस दौरान नाव नहीं मिले तो पानी में ही गांव में चली जाती हैं. आशा वर्कर गायत्री देवी कहती हैं कि जिम्मेदारी और ड्यूटी बड़ी है.

इससे पहले आजतक की टीम गांव में पहुंची तो वहां का मंजर और डरावना दिखाई देता है जहां लोग अपने मवेशियों को लेकर सैलाब के बीचो बीच होकर गुजरते हुए किनारे जाने की कवायद में है. कहीं घर डूबे हैं तो कहीं गांव के बीच डूबे नल दिखाई पड़ते हैं. बिजली के खंभे से लेकर ऊंचे ऊंचे पेड़ सब जलाशय में डूबे हैं. इसलिए ऑपरेशन में हम आधे रास्ते ही पहुंचे थे कि अचानक बरसात शुरू हो गई.

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गांवों में स्थिति और खराब

ब्रह्मपुत्र नदी ने सारी सीमाएं तोड़ते हुए पहले ही पूरे इलाके को अपनी चपेट में ले लिया है ऊपर से मूसलाधार बरसात इसे और भयानक रूप दे रही है.

लंबा सफर तय करने के बाद हम स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ सुदूर गांव में पहुंचे जहां ज्यादातर लोग घर खाली करके जा चुके हैं. गांव के ज्यादातर घर जमीन से 10 से 12 फीट ऊंचे बनाए जाते हैं क्योंकि बाढ़ यहां हर साल दस्तक देती है और और ऐसे गांव में रहने वाले हजारों गरीब किसानों मजदूरों आदिवासियों को बेघर कर देती है.

स्वास्थ्य विभाग के साथ हमारे इस रिलीफ ऑपरेशन का पहला पड़ाव पूरा हुआ जब गांव में रह रहे पुष्प कमल को उनकी जरूरत की दवाइयां आशा वर्कर गायत्री देवी ने सौंप दी. कमल खुशी से हमें अपने घर में ले गए और यह दिखाया कि उनकी जिंदगी किस संघर्ष से जूझ रही है. पानी के ऊपर बने इस घर में फर्श के नाम पर बेंत और बांस की चादर है. दीवारें बांस की है और छत पतले चादर की जो किसी हवा के झोंके के साथ कभी भी उड़ सकती है.

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पुष्प कमल इस कच्चे टूटे-फूटे घर में चूल्हा भी जुगाड़ से बनाया गया है ताकि आग घर को ही अपनी चपेट में न ले. बाढ़ का पानी घर के नीचे घुस आया है तो उसी बार से मछलियां पकड़ के पेट भरते हैं क्योंकि बाजार तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है तो सब्जियां कहां मिलेंगी. घर की हालत बताती है की असम की इस महा प्रलय में सबसे कमजोर तबका किस हाल में होगा.

स्वास्थ्य विभाग की टीम के साथ हम गांव के दूसरे इलाकों में गए जहां सब कुछ वीरान दिखाई पड़ता है. ज्यादातर गांव वाले तटवर्ती किनारों पर चले गए हैं लेकिन कुछ अपने घरों के सामान और पशुओं की फिक्र में अभी भी डेरा जमाए बैठे हैं. हमारी मुलाकात वीरेंद्र से हुई जिन्होंने बताया कि वह अपने घर के सामान की रखवाली के लिए परिवार के साथ अभी भी वही हैं भले ही बाढ़ का पानी उनके घर की फर्श छूने को है.

सब कुछ जलमग्न

अंदाजा लगाना मुश्किल है कि इस गांव में बाढ़ आई है या बाढ़ के साथ पूरे के पूरे गांव बहकर आए हैं. मंदिर स्कूल ट्रांसफार्मर सब कुछ जलमग्न है.

ऊपरी इलाकों में लगातार हो रही बरसात और ब्रह्मपुत्र नदी के बढ़ते जलस्तर के चलते निचले इलाकों में भी फिलहाल राहत की कोई उम्मीद नहीं है. प्रकृति की विनाश लीला असम में रुकने का नाम नहीं ले रही है. आलम यह है कि सरकार की तमाम कोशिशें भी नाकाफी साबित हो रही हैं. बच्चे, बूढ़े, महिलाएं युवा हर कोई इस प्राकृतिक आपदा का सामना कर रहा है.

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मुश्किलें उनकी भी बढ़ गई हैं जो ऐसे वक्त में पूरे जज्बे और हौसले के साथ लोगों की मदद के लिए इस प्रलय का सामना कर रहे हैं. गरीबी का आलम इस कदर है कि कइयों के पास बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया नहीं हो रहीं. हर कोई बस उम्मीद कर सकता है कि जल्दी ही ब्रह्मपुत्र नदी का पानी अपनी सीमाओं में लौट जाए और असम को अपने कहर से बख्श दे.

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