
2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जिन राज्यों में भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनमें ज्यादातर राज्यों में सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार और मिजोरम में कांग्रेस की हार भी इसी ट्रेंड का नतीजा है. जबकि तेलंगाना में केसीआर अपनी सत्ता को बचाए रखने में सफल रहे.
मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सत्ता पर बीजेपी पिछले 15 साल से काबिज थी. जबकि राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में 2013 में वापसी की थी, लेकिन पांच साल के बाद एक बार फिर उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा है. इस तरह से बीजेपी शासित तीनों राज्यों में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा है और इन राज्यों में कांग्रेस सत्ता पर काबिज होती दिख रही है.
2014 में शुरू हुई सत्ताविरोधी लहर
बता दें कि पिछले लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली थी. 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लॉक आवंटन और राष्ट्रमंडल खेल सहित कई घोटालों के चलते लोगों ने मनमोहन सिंह के खिलाफ वोट किया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत देकर देश की सत्ता सौंपी थी.
लोकसभा चुनाव के बाद पहला विधानसभा चुनाव दिल्ली में हुआ. राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से आम आदमी पार्टी को 67 सीटें मिली. दिल्ली का जनादेश बीजेपी और कांग्रेस दोनों के खिलाफ चला गया. कांग्रेस दिल्ली चुनाव में खाता भी नहीं खोल सकी.
देश के जिन राज्यों में सत्तारूढ़ दल के खिलाफ जनादेश गया, उनमें अधिकांश राज्यों में कांग्रेस सत्ता पर काबिज थी. ऐसे में कई राज्यों में ग्रैंड ओल्ड पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का समाना करना पड़ा. इसी के चलते कांग्रेस को कई राज्यों में अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी. वहीं, अब बीजेपी को भी ऐसी ही सत्ता विरोधी लहर के चलते हार का मुंह देखना पड़ा.
कांग्रेस को गंवाने पड़े ये राज्य
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, असम, आंध्र प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव हुए हैं. इन सभी राज्यों में कांग्रेस की सरकारें थीं और उसे सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा. कर्नाटक चुनाव में भी यही हुआ. एक के बाद एक राज्य की सत्ता कांग्रेस के हाथों से खिसकती गई. वहीं, पंजाब में अकाली दल और बीजेपी गठबंधन की सरकार को सत्ता के खिलाफ चली लहर का सामना करना पड़ा और यूपी में अखिलेश यादव को भी ऐसे ही ट्रेंड की वजह से सत्ता गंवानी पड़ी.
आंध्र प्रदेश में टीडीपी ने कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस को हराकर सत्ता हासिल की. बाकी अन्य सभी राज्यों में बीजेपी विजेता बनकर आई. आंध्र प्रदेश में बीजेपी का कोई वास्तविक और मजबूत आधार नहीं है. पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी और टीडीपी के साथ थी, लेकिन अब दोनों की राह अलग-अलग है.
ये सीएम बचा पाए थे सत्ता
हालांकि, ओडिशा में नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजेडी और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने सत्ता विरोधी लहर से पार पा लिया. दोनों नेता अपनी सरकार बचाए रखने में सफल रहे थे. 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार, लालू की पार्टी आरजेडी के साथ गठजोड़ करके बिहार में अपनी सत्ता को बचाए रखने में कामयाब रहे.
गुजरात में बीजेपी को 22 सालों तक सत्ता में रहने की वजह से असंतोष का सामना करना पड़ा है. हालांकि, बीजेपी अपनी सत्ता को बचाने में सफल रही, लेकिन पहली बार बीजेपी 100 के आंकड़े नीचे आ गई और बहुमत से महज सात सीटें ज्यादा मिली.
हालांकि बीजेपी राष्ट्रीय स्तर पर सबसे मजबूत पार्टी है और नरेंद्र मोदी सबसे लोकप्रिय नेता माने जा रहे हैं. ऐसे में सत्ता विरोधी लहर का ट्रेंड जारी रहा, तो 2019 के लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल के लिए जीत की राह आसान नहीं होगी.