
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन में नेतृत्व को लेकर सवाल उठ तो रहे हैं लेकिन इस बार सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने अपनी शर्तों पर चुनाव लड़ने का मन लगभग बना लिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के सभी दलों को साथ लेकर चलने के चक्कर में RJD जीरो पर आउट हो चुकी है. लेकिन पार्टी 2020 के विधानसभा चुनाव में फिर वही गलती दोहराने नहीं जा रही है. पार्टी का साफ मानना है कि जिसको महागठबंधन में रहना है रहे, नहीं रहना हो न रहे लेकिन मुख्यमंत्री के उम्मीदवार तो तेजस्वी यादव ही रहेंगे.
दोनों पार्टियों के नेता का नेतृत्व?
लोकसभा 2019 के चुनाव ने बीजेपी को हराने के लिए आरजेडी ने बड़ा बलिदान दिया है. जीतनराम मांझी की हम और मुकेश सहनी की वीआईपी जैसी पार्टियों को 3-3 सीट दी थीं. लेकिन अब यही दोनों पार्टियों के नेता नेतृत्व को लेकर सवाल उठा रहे हैं लेकिन इस बार आरजेडी दबाव में नहीं दिख रही है.
पार्टी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी का कहना है कि आरजेडी बिहार में सबसे बड़ी पार्टी है. जाहिर है कि नेतृत्व भी उसी का होगा. वैसे भी आरजेडी अपने राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुकी है फिर नेतृत्व पर सवाल उठने का कोई मतलब भी नही हैं. जैसे हम राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को सबसे बड़ी पार्टी मानकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार मानते हैं. जेएमएम के हेमंत सोरेन को झारखंड में नेता मानते हैं तो बिहार में आरजेडी के नेता को नेता मानने में किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.
लोकसभा के चुनाव के महागठबंधन
आरजेडी नेतृत्व का मानना है कि लोकसभा के चुनाव के महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, आरएलएसपी, सीपीआईएम और वीआईपी पार्टी को जरूर से ज्यादा सीटें दे दी थीं लेकिन विधानसभा चुनाव में ऐसा नहीं होगा.
विधानसभा चुनाव में आरजेडी 243 सीटों के लिए होने वाले विधानसभा चुनाव में 150 सीटों से कम पर चुनाव नहीं लड़ेगी. बाकी 93 सीटों को महागठबंधन के बाकी दलों में बांटा जा सकता है. 2015 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी जेडीयू और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. तब आरजेडी और जेडीयू 101-101 पर चुनाव लड़ी थीं. 41 सीट कांग्रेस के खाते में गई थी.
लोकसभा का फॉर्मूला
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि अगर लोकसभा का फॉर्मूला विधानसभा में अपनाया गया तो पार्टी में विद्रोह की स्थिति हो सकती है क्योंकि आरजेडी के पास सभी सीटों के लिए मजबूत उम्मीदवार हैं. आरजेडी पहले ही हिंट दे चुकी है कि अगर किसी को ये सौदा मंजूर नहीं है तो वो महगठबंधन से बाहर भी जा सकता है. आरजेडी ने यह तय कर लिया है कि मुख्यमंत्री के उम्मीदवार तेजस्वी यादव होंगे और महागठबंधन के कॉर्डिनेटर का काम आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव करेंगे.
वहीं सहयोगी पार्टियों को लगता है कि उन्हें शायद इस बार उम्मीद से बहुत कम भागीदारी मिले. इसमें सबसे ज्यादा डर कांग्रेस को सता रहा है क्योंकि 2015 में 41 सीटों पर चुनाव लड़कर 27 सीटें जीत कर धमाका करने वाली इस पार्टी की सीटे कहीं कम न हो जाए. इसलिए वो 80 सीटों के लिए अपनी दावेदारी पेश कर रही है. अगर 150 पर आरजेडी और 80 पर कांग्रेस तो बाकियों का क्या होगा.