
पांच राज्यों के चुनाव की तारीख घोषित होने के साथ ही सियासी समीकरण की सुई 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव की ओर घूम गई है. सियासी रूप से ये पांचों राज्य ऐसे हैं जिसके नतीजे संकेत देने के लिए काफी होंगे कि कांग्रेस बिना सहयोगियों की बैशाखी के मुकाबले में ठठने लायक है या नहीं. इसके साथी ही क्षेत्रीय दलों का प्रभाव तथा प्रभुत्व में भाजपा सेंध लगाने की स्थिति में है या नहीं और उत्तर-पूर्व में भाजपा अपना दबदबा बढ़ाने की स्थिति में कहां तक पहुंची है.
मध्य प्रदेश और राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला है. भाजपा, मध्य प्रदेश में पिछले 15 साल से सत्ता में है. इन वर्षों में एकत्र हुए सत्ता विरोधी रुझान के बीच क्या कांग्रेस जनता का भरोसा जीतने लायक हुई है इस सवाल का उत्तर 11 दिसंबर को चुनाव नतीजों से मिल जाएंगे.
यदि कांग्रेस 15 साल के सत्ताविरोधी रुझान को भुनाने में कामयाब नहीं रही तो फिर केंद्र सरकार के पांच साल के सत्ता विरोधी रुझानों से कांग्रेस को 2019 में कुछ बड़ा हासिल होगा यह मानना मुश्किल होगा. यदि कांग्रेस राजस्थान में अपना परचम लहरा सकी तो वह सीना ठोंक कर कह सकती है कि जहां भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है वहां जनता कांग्रेस को भाजपा का विकल्प स्वीकार कर रही है.
2019 के लोकसभा चुनाव में इससे कांग्रेस के कैडर का मनोबल बढ़ सकता है. छत्तीसगढ़ में बसपा और अजीत जोगी के साथ मिल कर चुनाव लड़ने के फैसले से मुकाबला त्रिकोणीय होगा. यहां के चुनाव नतीजे यदि कांग्रेस अपने पक्ष में करने में सफल रही तो पार्टी यह संदेश देने में सफल रहेगी कि वह 2019 के चुनाव में भाजपा विरोधी दलों के लिए धुरी बनने की योग्यता रखती है. ऐसा नहीं होने पर यह संदेश जाएगा कि 2019 में बिना महागठबंधन के कांग्रेस, भाजपा से मुकाबला करने में शायद न हो.
तेलंगाना में टीआरएस प्रमुख और मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव ने विधानसभा को समय से लगभग 8 महीने भंग कर दिया. यह उनका अति आत्मविश्वास था या नहीं यह चुनाव नतीजे बता देंगे. यहां पर टीडीपी ने कांग्रेस और लेफ्ट पार्टी के साथ गठजोड़ किया है. टीआरएस विरोधी खेमा यह आरोप लगा रहा है कि टीआरएस 2019 के चुनाव के दौरान या चुनाव बाद भाजपा के पाले में जाएगी. इन आरोपों के बाद भी यदि टीआरएस बाजी मारती है तो फिर भाजपा और टीआरएस दोनों के सियासत एक दूसरे के मुफीद है इस बात की चर्चा शुरू हो सकती है. यदि यहां टीआरएस हार जाती है तो फिर यूपीए के पार्टनरों की संख्या बढ़ने के रास्ते आसान हो जाएंगे.
मिजोरम में भाजपा को यदि माकूल सफलता मिलती है तो फिर 2019 के लिए भाजपा का यह दावा कि लोकसभा चुनाव में उत्तर-पूर्व के राज्यों में पार्टी सभी 25 सीटें जीतेगी, उस दावे को बल मिलेगा. लेकिन यदि भाजपा को यहां सफलता नहीं मिलती है तो फिर भाजपा विरोधी दलों के लिए यह कहने का मौका होगा कि उत्तर-पूर्व में भाजपा का पराभव होना शुरू हो गया है.
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