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'मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं', पढ़ें अटल की 5 कविताएं

BJP के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के सिर्फ उनकी पार्टी के नेता ही नहीं, बल्कि विपक्षी पार्टियों के नेता भी मुरीद थे. वाजपेयी के भाषण देने की कला का फैन हर उम्र का व्यक्ति था.

अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो) अटल बिहारी वाजपेयी (फाइल फोटो)
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 17 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 8:07 AM IST

पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का गुरुवार को निधन हो गया. वाजपेयी 93 साल के थे. पूर्व पीएम करीब दो महीने से एम्स अस्पताल में भर्ती थे. वाजपेयी को डिमेंशिया नामक बीमारी थी. वाजपेयी के निधन के बाद ही देशभर में शोक की लहर है, इसके अलावा बीजेपी ने अपने सभी कार्यक्रमों को रद्द कर दिया है.

अटल बिहारी वाजपेयी एक सफल नेता होने के साथ ही एक कवि भी रहे. वे हमेशा अपने भाषणों में अपनी कविताएं सुनाया करते थे. अटल भारत में दक्षिणपंथी राजनीति का उदारवादी चेहरा रहे और एक लोकप्रिय जननेता के तौर पर पहचाने गए. लेकिन उनकी एक छवि उनके साहित्यिक पक्ष से भी जुड़ी है.

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उन्होंने कई कविताएं लिखीं और समय-दर-समय उन्हें संसद और दूसरे मंचों से पढ़ा भी. उनका कविता संग्रह 'मेरी इक्वावन कविताएं' उनके समर्थकों में खासा लोकप्रिय हैं. पढ़ें... उनकी चुनिंदा कविताएं.

1. एक बरस बीत गया

झुलसाता जेठ मास

शरद चांदनी उदास

सिसकी भरते सावन का

अंतर्घट रीत गया

एक बरस बीत गया

सीकचों मे सिमटा जग

किंतु विकल प्राण विहग

धरती से अम्बर तक

गूंज मुक्ति गीत गया

एक बरस बीत गया

पथ निहारते नयन

गिनते दिन पल छिन

लौट कभी आएगा

मन का जो मीत गया

एक बरस बीत गया

2. कदम मिलाकर चलना होगा

बाधाएं आती हैं आएं

घिरें प्रलय की घोर घटाएं,

पावों के नीचे अंगारे,

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,

निज हाथों में हंसते-हंसते,

आग लगाकर जलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

हास्य-रूदन में, तूफानों में,

अगर असंख्यक बलिदानों में,

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उद्यानों में, वीरानों में,

अपमानों में, सम्मानों में,

उन्नत मस्तक, उभरा सीना,

पीड़ाओं में पलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

उजियारे में, अंधकार में,

कल कहार में, बीच धार में,

घोर घृणा में, पूत प्यार में,

क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,

जीवन के शत-शत आकर्षक,

अरमानों को ढलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,

प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,

सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,

असफल, सफल समान मनोरथ,

सब कुछ देकर कुछ न मांगते,

पावस बनकर ढलना होगा.

कदम मिलाकर चलना होगा.

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,

प्रखर प्यार से वंचित यौवन,

नीरवता से मुखरित मधुबन,

परहित अर्पित अपना तन-मन,

जीवन को शत-शत आहुति में,

जलना होगा, गलना होगा.

क़दम मिलाकर चलना होगा.

3. दो अनुभूतियां

-पहली अनुभूति

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं

टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर

अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

पीठ में छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद

मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं

गीत नहीं गाता हूं

-दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर

पत्थर की छाती में उग आया नव अंकुर

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झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात

प्राची में अरुणिम की रेख देख पाता हूं

गीत नया गाता हूं

टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी

अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी

हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,

काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं

गीत नया गाता हूं

4. दूध में दरार पड़ गई

खून क्यों सफेद हो गया?

भेद में अभेद खो गया.

बंट गये शहीद, गीत कट गए,

कलेजे में कटार दड़ गई.

दूध में दरार पड़ गई.

खेतों में बारूदी गंध,

टूट गये नानक के छंद

सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है.

वसंत से बहार झड़ गई

दूध में दरार पड़ गई.

अपनी ही छाया से बैर,

गले लगने लगे हैं ग़ैर,

ख़ुदकुशी का रास्ता, तुम्हें वतन का वास्ता.

बात बनाएं, बिगड़ गई.

दूध में दरार पड़ गई.

5. मौत से ठन गई

ठन गई

मौत से ठन गई.

जूझने का मेरा इरादा न था,

मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,

यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई

मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,

ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,

लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?

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तू दबे पाँव, चोरी-छिपे से न आ,

सामने वार कर फिर मुझे आज़मा

मौत से बेख़बर, ज़िन्दगी का सफ़र,

शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं,

दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं

प्यार इतना परायों से मुझको मिला,

न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये,

आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है,

नाव भँवरों की बाँहों में मेहमान है

पार पाने का क़ायम मगर हौसला,

देख तेवर तूफ़ाँ का, तेवरी तन गई

मौत से ठन गई

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