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सुलह कराने की कला

बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर सर्वसम्मत हल तलाशने में कोई भी कामयाब नहीं हो पाया, क्या श्री-श्री रविशंकर इसमें कामयाब होंगे?

मध्यस्थ श्री श्री रविशंकर और मौलाना सलमान नदवी यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और एआइएमपीएलबी सद मध्यस्थ श्री श्री रविशंकर और मौलाना सलमान नदवी यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और एआइएमपीएलबी सद
मंजीत ठाकुर/संध्या द्विवेदी
  • उत्तर प्रदेश,
  • 20 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 8:50 PM IST

अपनी कार्यकारिणी के रसूखदार सदस्य मौलवी और शिक्षक मौलाना सलमान नदवी को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) ने बर्खास्त कर दिया. उन पर इल्जाम था कि वे अयोध्या विवाद के अदालत से बाहर संभावित निबटारे के लिए आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर से मिले, वह भी उस वक्त जब इस विवाद पर फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.

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बोर्ड ने जोर देकर कहा कि नदवी रविशंकर से मिलने के लिए अधिकृत नहीं थे. कार्यकारिणी के सदस्य कमाल फारूकी और जफरयाब जिलानी ने कहा कि नदवी ने ''बोर्ड की राय से अलग रुख अख्तियार करके मुस्लिम हितों को भारी नुक्सान पहुंचाया है. वह जगह मुससमानों की है और बाबरी मस्जिद की जगह बनी रहेगी."

नाराज नदवी ने कहा कि बोर्ड से हटाए जाने से पहले उन्होंने खुद ही इसे छोड़ दिया था. लखनऊ के दारुल उलूम नदवातुल उलेमा मदरसे के छात्रों के आगे वे फूट-फूटकर रो पड़े. उन्होंने कहा, ''मैं तो अमन लाने की कोशिश कर रहा था. मेरे साथ जो लोग नाइंसाफी कर रहे हैं, अल्लाह तआला उनसे निबटेगा."

मगर रिपोर्टरों से बात करते वक्त वे ज्यादा आक्रामक मुद्रा में थे. उन्होंने कहा, ''बोर्ड को चरमपंथियों ने हाइजैक कर लिया है. यह तानाशाही है. आपसी रजामंदी से मुद्दे का निबटारा करने और इस तरह अदालत का फैसला आने पर दंगे-फसाद के हालात से बचने में गलत क्या है?" नदवी के मुताबिक, बातचीत से मामले का समाधान ''तीन महीनों के भीतर खोजा" जा सकता है. उनकी बर्खास्तगी (या बोर्ड से उनके बाहर आने) को मोटे तौर पर रविशंकर की मध्यस्थता वाली उम्मीदों के लिए झटका माना गया.

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मगर कुछ विश्लेषक यह भी कह रहे हैं कि उन्होंने बोर्ड के भीतर की फूट को उजागर कर दिया है. श्री श्री ने अपने दूत गौतम विग को बोर्ड के उन सदस्यों के साथ बातचीत करने की जिम्मेदारी सौंपी थी जो अदालत के बाहर समझौते के पक्ष में हो सकते हैं. विग कहते हैं, ''गुरुदेव को लगता है कि अदालत का फैसला दिलों को एक साथ नहीं ला सकता.

हारने वाला पक्ष तकलीफ महसूस करेगा." नदवी के समर्थक और सेवानिवृत्त आइएएस अफसर अनीस अंसारी उस प्रतिनिधिमंडल में शामिल थे, जो 8 फरवरी को बेंगलूरू में रविशंकर से मिला था. अंसारी दावा करते हैं कि ''अदालत के फैसले के नतीजतन खूनखराबा होगा क्योंकि हिंदुओं और मुसलमानों दोनों में यह भावना मजबूत है कि यह जमीन उनकी है.

ज्यों ही वहां रखी मूर्तियों को हटाने की या दूसरी तरफ, उस स्थल पर मंदिर बनाने की जरा भी कोशिश होती है, तो खूनखराबा होगा. इसलिए सबसे अच्छा रास्ता ऐसा समझौता है जो दोनों पक्षों के लिए सम्मानजनक हो."

बहुत ज्यादा समझौतावादी और जरूरत से ज्यादा नरम रुख अख्तियार करता दिखने की चिंता से ग्रस्त अंसारी ने कहा कि उन्होंने नदवी की तरफ से दलील दी कि बातचीत के जरिए किसी भी समझौते की दिशा में तभी बढ़ा जा सकता है जब हिंदू अभियोजन पक्ष यह स्वीकार करे कि जमीन पर मालिकाना हक तो मुसलमानों का ही है. इसके अलावा इस बात की विधायी किस्म की कोई गारंटी होनी चाहिए कि मुसलमानों की दूसरी इबादतगाहों के साथ ऐसी कोई छेड़छाड़ नहीं होगी.

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दूसरी इबादतगाहों से उनका इशारा शायद काशी और मथुरा के विवादित स्थलों से है. इसके अलावा अंसारी ने कहा कि ''बाबरी मस्जिद को गैर-कानूनी तरीके से शहीद किए जाने के लिए जिम्मेदार लोगों को सजा भी होनी चाहिए." विग के मुताबिक, रविशंकर ने इस बात पर जोर दिया कि यह चर्चा ज्यादा असरदार होगी अगर हिंदू और मुस्लिम, दोनों पक्ष विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण और मस्जिद का निर्माण किसी दूसरी जगह पर कराने पर राजी हो जाते हैं.

रविशंकर का दावा है कि बातचीत के जरिए विवाद का समाधान निकालने की दिशा में जब उन्होंने बोर्ड के सदस्यों से संपर्क साधना शुरू किया, तो 51 सदस्यीय बोर्ड के करीब एक तिहाई सदस्य उनकी बातों से सहमत दिखे.

हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने नदवी पर हमलावर होते हुए उन पर ''प्रधानमंत्री मोदी के इशारों पर नाचने" का आरोप लगाया है. ओवैसी ने नदवी के दस्तखत किए गए एक पुराने फतवे, जिसमें कहा गया था कि ''एक मस्जिद कयामत तक मस्जिद ही रहती है" का हवाला देते हुए आह्वान किया कि जो लोग मस्जिद पर अपना हक छोड़ने की बात कहते हैं, वैसे लोगों का बहिष्कार किया जाना चाहिए.

हालांकि नदवी ने रविशंकर को बताया था कि सुन्नी मुसलमानों की चार प्रमुख विचारधाराओं में से एक हंबली विचारधारा किसी मस्जिद को एक जगह से हटाकर दूसरी जगह पर ले जाए जाने की इजाजत देती है. इस लिहाज से बाबरी मस्जिद को विवादित स्थल से दूर किसी और स्थान पर दोबारा बनाया जा सकता है.

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रविशंकर के अनुसार, ''भारत के हर कोने से कई मुसलमान नेता मुझसे मिले और विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण तथा कुछ दूरी पर मस्जिद निर्माण के लिए दोनों पक्षों में समझौता कराने की दिशा में मेरे प्रयासों का समर्थन किया."

उत्तर प्रदेश के शिया वक्फ बोर्ड ने रविशंकर का खुलेदिल से समर्थन किया. हालांकि सुन्नी पक्षकार कह रहे हैं कि मामला अदालत में है और रही बात शियाओं की तो उनका इस विवाद पर अपना नजरिया रखने का कोई हक ही नहीं बनता. बहरहाल, उस विवादित जमीन का मालिकाना हक रखने वाली संस्था उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष जफर फारूकी भी मौलाना नदवी के साथ रविशंकर की उस मुलाकात में शामिल थे.

वैसे, माहौल बनता हुआ दिखने लगा है. रविशंकर जल्दी ही एक बार फिर अयोध्या जाएंगे और नवंबर की तरह एक बार फिर से इस मामले के हिंदू और मुसलमान पक्षकारों के साथ बातचीत का एक नया दौर शुरू करेंगे. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्यों के साथ उनका संपर्क अब पहले से ज्यादा होने की उम्मीद है. भाजपा और संघ परिवार बातचीत की इस प्रक्रिया में शामिल नहीं हो रहा बल्कि वह बाहर से पैनी नजर बनाए हुए है.

भाजपा के वरिष्ठ नेता और इस मामले के याचिकाकर्ता सुब्रह्मण्यम स्वामी को इस वार्ता की सफलता पर संदेह है. हालांकि वे दावा करते हैं कि आपसी रजामंदी कायम करने की एक नाकाम कोशिश अतीत में वे भी कर चुके हैं.

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उन्हें नहीं लगता कि मुसलमान विवादित स्थल पर मंदिर बनाए जाने के लिए राजी होंगे क्योंकि उन्हें डर है कि वे इससे कट्टरपंथियों के निशाने पर आ जाएंगे. स्वामी कहते हैं कि रविशंकर की ''पहल का स्वागत है. लेकिन सबसे सही तरीका होगा कि अदालत से एक स्पष्ट निर्णय प्राप्त किया जाए. जो साक्ष्य हैं उनके आधार पर मुझे पूरा भरोसा है कि अदालत विवादित स्थल पर मंदिर बनाए जाने के पक्ष में ही निर्णय देगी."

इस पर प्रधानमंत्री का नजरिया अब तक स्पष्ट नहीं हो पाया है. उन्होंने चतुराईपूर्ण चुप्पी साध रखी है. लेकिन रविशंकर की सफलता का राजनैतिक लाभ तो मिलेगा ही. मोदी की लंबे समय से ख्वाहिश रही है कि उन्हें हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों का नेता समझा जाए.

वैसे, इस वक्त तो रविशंकर की कामयाबी खयाली पुलाव ही मानी जा रही है. फिर भी यदि रविशंकर के प्रयासों से विवादित स्थल पर मंदिर निर्माण और किसी अन्य स्थान पर मस्जिद निर्माण की रजामंदी हो जाती है तो वह मोदी को ज्यादा रास आएगी क्योंकि अदालत से जो निर्णय आएगा, उसमें इस बात की संभावना कम ही है कि वह किसी एक पक्ष को बहुत खुश कर पाएगा.

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