
अयोध्या के विवादित राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला अगले हफ्ते आ सकता है. पिछले महीने 40 दिन चली सुनवाई के बाद सभी पक्षकार अपनी-अपनी दलीलें पेश कर चुके हैं. पिछले 30 सालों में अयोध्या विवाद पर समझौते की पहली कोशिश तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने शुरू की थी, लेकिन इस कोशिश के कामयाब होने से पहले ही सत्ता का समीकरण बदल गया.
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के शासनकाल में राम मंदिर के मामले ने जोर पकड़ा. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ गठबंधन की सरकार चला रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 7 अगस्त 1990 को मंडल कमीशन को लागू करने का फैसला लिया. फैसले के खिलाफ और समर्थन में देशभर में आंदोलन होने लगे. इन सबके बीच बीजेपी और आरएसएस राम मंदिर मुद्दे की योजना बनाने में जुटे रहे.
वीपी सिंह ने की थी कोशिश
माना जाता है कि मंडल कमीशन की काट के लिए बीजेपी और आरएसएस ने राम मंदिर के मुद्दे के आगे बढ़ाया और लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर, 1990 को सोमनाथ से रथयात्रा शुरू की, जिसे कई राज्यों से होते हुए 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचना था, लेकिन आडवाणी को 23 अक्टूबर को समस्तीपुर में गिरफ्तार कर लिया गया.
अयोध्या में राम मंदिर की मांग तो बेहद पुरानी थी लेकिन बीजेपी ने अन्य हिंदू संगठनों के साथ मिलकर इस मुद्दे को हवा दे दिया और हर आम जन को भी इसमें शामिल कर लिया.
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बतौर प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने अयोध्या विवाद के हल की पहली कोशिश की थी. उन्होंने दोनों पक्षकारों (हिंदू और मुस्लिम) से बातचीत के सिलसिले शुरू भी कराए. मामले में समझौते को लेकर संसद में ऑर्डिनेंस लाया जा रहा था, लेकिन सत्ता में साझीदार बीजेपी ने विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया और यह सरकार गिर गई जिस कारण सुलह की यह पहली कोशिश खत्म हो गई. सरकार के पतन की वजह सियासत ने ऐसी करवट ली कि ऑर्डिनेंस को वापस लेना पड़ा.
कोर्ट के बाहर समझौते की पहल नाकाम
विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार के पतन के बाद केंद्र में कांग्रेस के समर्थन से चंद्रशेखर ने 10 नवंबर, 1990 को सत्ता संभाला और इस तरह से सुलह की शुरुआती कोशिश नाकाम हो गई.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के नेतृत्व में तत्कालीन केंद्र सरकार ने इसे सुलझाने का प्रयास किया. समझौते की बीच ही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता लालकृष्ण आडवाणी ने राम मंदिर के लिए सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथयात्रा शुरू कर दी.
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आडवाणी रथ लेकर बिहार पहुंचे तो राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरफ्तार करा दिया. इसके बाद केंद्र में बीजेपी के सहयोग से चल रही विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया गया जिस कारण वीपी सिंह सरकार गिर गई और अयोध्या समझौते की कोशिशें अमलीजामा नहीं पहन सकीं.
प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कुछ अधिकारियों के जरिए कोर्ट के बाहर आपसी समझौते की पहल की थी, लेकिन वह अपनी कोशिश को आगे बढ़ा पाते उनकी सरकार गिर गई और उनकी जगह चंद्रशेखर को प्रधानमंत्री बनाया गया.
हाई कोर्ट का फैसला नहीं मंजूर
इलाहाबाद हाई कोर्ट की 3 जजों की बेंच ने करीब 9 साल पहले 30 सितंबर, 2010 को अपने फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीनों पक्षों (सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला विराजमान) में बराबर-बराबर बांट दिया जाए. हालांकि हाई कोर्ट इस फैसले को किसी भी पक्ष ने नहीं माना और इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. सुप्रीम कोर्ट की ओर से 9 मई 2011 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी गई.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने मामले की निर्णायक सुनवाई का फैसला लिया. उनकी अगुवाई में 5 सदस्यीय बेंच ने लगातार 40 दिनों तक सुनवाई की. जस्टिस रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ और जस्टिस एस अब्दुल नजीर बेंच का हिस्सा रहे. बेंच ने मामले की सुनवाई 6 अगस्त से शुरू की और यह सुनवाई रोजाना चली. अब सबको फैसले का इंतजार है.