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अधूरे अनुवाद ने टाली अयोध्या केस पर SC में सुनवाई, अगली तारीख 14 मार्च

अयोध्या मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले इस मामले की प्रमुख याचिका पर पूरी सुनवाई की जाएगी. कोर्ट ने कहा है कि पहले मुख्य याचिकाकर्ता की सुनवाई होगी, उसके बाद अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी.

फाइल फोटो फाइल फोटो
कुबूल अहमद/संजय शर्मा/अनुषा सोनी
  • नई दिल्ली,
  • 08 फरवरी 2018,
  • अपडेटेड 5:44 PM IST

अयोध्या मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा कि अभी उन्हें दस्तावेजों के अनुवाद के लिए कुछ और समय चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 14 मार्च को होगी. कोर्ट ने 7 मार्च तक सभी दस्तावेजों को जमा करने के लिए कहा है.

गुरुवार को सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल मौजूद नहीं रहे. मामले में हिंदू महासभा के वकील विष्णु शंकर जैन ने बताया कि दोनों पक्षकार मामले की रोजाना सुनवाई करने के पक्ष में हैं. हालांकि कोर्ट अगली सुनवाई यानी 14 मार्च को इस पर फैसला लेगा.

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सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षकारों से हाईकोर्ट रिकॉर्ड में शामिल सभी वीडियो को दस्वावेज में शामिल करने को कहा है. इसके अलावा कोर्ट ने अपने धार्मिक ग्रंथों की अनुवादित कॉपी को भी जमा करवाने के लिए कहा है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले इस मामले की प्रमुख याचिका पर पूरी सुनवाई की जाएगी. इसके बाद अन्य याचिकाओं पर सुनवाई की जाएगी. उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि गीता और रामायण का अनुवाद भी कोर्ट में जमा होने चाहिए.

इस बीच चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने राजीव धवन से कहा कि वे सिर्फ कानून के तहत जमीन विवाद पर सुनवाई करेंगे. वहीं, तुषार मेहता ने राजीव धवन से कहा कि वे मामले में बढ़ा-चढ़ाकर बोलने से बचें. गुरुवार को सुनवाई के दौरान सलमान खुर्शीद ने कहा, ''मुझे कोर्ट के बाहर मामले को सुलझाने की जानकारी नहीं है, लेकिन लोग इसकी बात कर रहे हैं. अगर मामले में पक्षकार समझदार हैं, तो कोर्ट के बाहर सुलह समझौता किया जा सकता है और यह संभव भी है.''

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इस मामले में मुख्य याचिकाकर्ता रामलला, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा हैं. सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से एज़ाज मकबूल ने कोर्ट में कहा है कि अभी दस्तावेज़ का अनुवाद पूरा नहीं हुआ है, जिन्हें सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश किया जाना है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा है कि अभी दस किताबें और दो वीडियो कोर्ट के सामने पेश किए जाने हैं. 42 हिस्सों में अनुवादित दस्तावेज कोर्ट में जमा किए जा चुके हैं.

आपको बता दें कि देश की सियासत में बड़ा असर रखने वाला ये विवाद करीब 164 साल पुराना है. सुप्रीम कोर्ट केस से जुड़े अलग-अलग भाषाओं के ट्रांसलेट किए गए 9,000 पन्नों को देखेगा.

तीन जजो की बेंच कर रही है सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की स्पेशल बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा बेंच में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर हैं. माना जा रहा है कि डॉक्यूमेंट्स का ट्रांसलेशन पूरा हो गया है. सुन्नी वक्फ बोर्ड के मुताबिक डॉक्युमेंट्स ट्रांसलेशन के चलते सुनवाई नहीं टलेगी. साथ ही अदालत ने भी कहा था कि 8 फरवरी के बाद सुनवाई नहीं टलेगी. सबसे पहले ओरिजनल टाइटल सूट दाखिल करने वाले दलीलें रखेंगे. फिर बाकी अर्जियों पर बात होगी.

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हर रोज 3 घंटे होगी सुनवाई

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार तीन जजों की बेंच प्रतिदिन 3 घंटे सुनवाई करेगी. माना जा रहा है कि 30 दिन की कार्यवाही में सभी पक्षों की सुनवाई पूरी हो जाएगी और 16 मई से गर्मी की छुट्टियां शुरू होने से पहले ही बेंच फैसला सुरक्षित कर लेगी.

पिछले साल दिसंबर में 3 जजों की स्पेशल बेंच ने इस मामले की सुनवाई की थी. कोर्ट ने सभी पक्षों से साफ कहा था कि 8 फरवरी से सुनवाई की तारीख नहीं बढ़ेगी. बता दें कि इस मामले से जुड़े 9,000 पन्नों के दस्तावेज और 90,000 पन्नों में दर्ज गवाहियां पाली, फारसी, संस्कृत, अरबी सहित विभिन्न भाषाओं में हैं, जिसपर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कोर्ट से इन दस्तावेजों को अनुवाद कराने की मांग की थी. 

मामले को ज्यादा खींचने की कोशिश न करेंः रिजवी

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा कि इस मामले में जितनी जल्दी फैसला आ जाएगा, उतना ही देश के लिए अच्छा होगा. उन्होंने कहा, '' जो लोग मामले की सुनवाई को खींचने की कोशिश कर रहे हैं, मैं उनसे अपील करता हूं कि वो ऐसा न करें, ताकि फैसला जल्द आ जाए. अदालत ने अयोध्या में मंदिर बनाने की बात को स्वीकार कर लिया है. मस्जिद लखनऊ में बननी चाहिए. यह फॉर्मूला कोर्ट में दर्ज है. इससे बेहतर कोई फॉर्मूला नहीं हो सकता है.''

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2010 में आया था हाईकोर्ट का फैसला

अयोध्या मामले में टाइटल विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में तमाम पक्षकारों की ओर से विशेष अनुमति याचिका दायर की हुई है. अयोध्या के विवादास्पद ढांचे को लेकर हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 में फैसला दिया था. फैसले में कहा गया था कि विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए जबकि बाकी का एक तिहाई जमीन का हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए.

अयोध्या मामले में 16 पक्षकार

हाईकोर्ट के फैसले के बाद तमाम पक्षों की ओर से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की गई थी और याचिका सुप्रीम कोर्ट में 7 साल से लंबित है. मामले में मुख्य पक्षकार हिंदू महासभा, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड सहित 16 पक्षकार हैं.

अयोध्या की विवादित जमीन पर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. वहीं, दूसरी तरफ सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अर्जी दाखिल कर दी. इसके बाद इस मामले में कई और पक्षकारों ने याचिकाएं लगाई. सुप्रीम कोर्ट ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने की बात कही थी. सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद से यह मामला पेंडिंग है.

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