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राम जन्मभूमि विवाद-फैसले के इंतजार में भगवान

सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि अयोध्या में विवादित स्थल की 1,480 वर्ग गज जमीन पर मालिकाना हक हिंदुओं का है या मुसलमानों का. हिंदू उसे राम जन्मस्थान घोषित करने की मांग कर रहे हैं जबकि मुसलमानों का कहना है कि वह बाबरी मस्जिद थी और उसे मस्जिद घोषित किया जाए. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और फैसला सुरक्षित है. दोनों पक्षों की दलीलों और पूरे केस के बारे में बता रहे हैं मनीष दीक्षित

राम जन्मभूमि राम जन्मभूमि
मनीष दीक्षित
  • नई दिल्ली,
  • 21 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 10:32 PM IST

4 केस

अयोध्या विवाद में चार मुख्य केस हैं. पहला केस 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने दाखिल किया, जिसमें जन्मस्थान से मूर्तियां हटाने पर स्थायी रोक की मांग की गई. ये केस फैजाबाद की जिला अदालत में दाखिल हुए और फिर हाइकोर्ट में चले. जन्मभूमि मामले में सीधे इलाहाबाद हाइकोर्ट के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई. 1959 में निर्मोही अखाड़े ने प्रबंधन और पूजा का अधिकार मांगते हुए केस किया. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 1961 में अपने केस में मालिकाना हक और कब्जा मांगा. 1989 में रामलला विराजमान की तरफ से केस दाखिल हुआ.

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3 हिस्से: हाइकोर्ट का फैसला

30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद हाइकोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने फैसला दिया. बहुमत से दिए फैसले में राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों मे बांटने का आदेश था. जहां रामलला विराजमान हैं वह हिस्सा रामलला को दिया. दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़े को और तीसरा हिस्सा मुसलमानों को दिया गया. एक जज ने पूरी जमीन रामलला को दी और बाकी केस खारिज किए.

14 अपीलें

मूलवाद के हिंदू-मुस्लिम दोनों पक्षों की 14 अपीलें सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुईं.

संविधान पीठ

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस.ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाइ. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस.ए. नजीर

हिंदू पक्ष के मुख्य वकील

निर्मोही अखाड़ा-एस.के. जैन, रामलला- के. पारसरन और

सी.एस. वैद्यानाथन, हिंदू महासभा- हरिशंकर जैन,

श्री राम जन्मभूमि पुनरोद्धार समिति—पी.एन. मिश्र

मुस्लिम पक्ष के मुख्य वकील

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सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और एम. सिद्दीक—वकील राजीव धवन, मीनाक्षी अरोड़ा, जन्मस्थान पर जिरह—जफरयाब जिलानी, इस्लामी मान्यताओं पर निजामुद्दीन पाशा

अहम कड़ी एएसआइ रिपोर्ट

राम जन्मभूमि केस की महत्वपूर्ण कड़ी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की खुदाई रिपोर्ट है. एएसआइ ने हाइकोर्ट के आदेश पर खुदाई की थी. रिपोर्ट के मुताबिक, विवादित ढांचे के ठीक नीचे एक बड़ी संरचना मिली जो उत्तर भारत के मंदिरों जैसी है. यहां 10वीं शताब्दी से लेकर ढांचा बनाए जाने तक लगातार निर्माण हुआ. 10वीं शताब्दी से पहले उत्तर वैदिक काल तक की प्रतिमाओं और अन्य चीजों के अवशेष मिले हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एएसआइ की रिपोर्ट कोई साधारण राय नहीं है. हाइकोर्ट जज के कहने पर खुदाई हुई.

सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष

 भगवान नाबालिग माने जाते हैं और नाबालिग की संपत्ति छीनी नहीं जा सकती. राम जन्मस्थान स्वयं देवता है, उसे स्थानांतरित नहीं किया जा सकता.

6 दिसंबर, 1992 को जो ढांचा ढहाया गया, उसे इस्लामिक कानून के मुताबिक मस्जिद नहीं माना जा सकता. मस्जिद के लिए जरूरी शर्त है कि इसका वाकिफ जमीन का मालिक होना चाहिए जबकि बाबर मालिक नहीं था. वह कभी अयोध्या नहीं गया. मस्जिद में किसी तरह की मूर्ति, चित्र या जीवित चीज अथवा जानवर, फूल, पत्ती मूर्तियां आदि नहीं होतीं जबकि जन्मस्थान पर देवताओं की मूर्तियां थीं.

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एएसआइ की खुदाई में मिले अवशेष भी वहां मंदिर होने की पुष्टि करते हैं. विवादित ढांचे के नीचे मंदिर जैसी विशाल संरचना मिली है. खुदाई में कलश, कमल और देवी-देवताओं की मूर्तियां थीं जिससे साबित होता है कि वहां पहले मंदिर था जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई और मंदिर की सामग्री का प्रयोग मस्जिद बनाने मे हुआ.

हिंदू वृक्ष, पहाड़, सूर्य, नदी, सभी की पूजा करते हैं और उन्हें देवता मानते हैं. दुनिया में खोजे गए सबसे छोटे कण को भी गॉड पार्टिकल कहा गया है. वहां भगवान राम का जन्म हुआ था इसलिए वह स्थान स्वयं में देवता है और उसे न्यायिक व्यक्ति माना जाए.

भगवान राम ने अयोध्या में ही जन्म लिया था और उसी जगह राम जन्मस्थान है यह साबित करने के लिए ऐतिहासिक, दस्तावेजी और पुरातात्विक सबूत पेश किए गए. सात विदेशी 19वीं शताब्दी में पहली बार इसे बाबरी मस्जिद कहा गया. इससे पहले बाबरी मस्जिद कहे जाने के दस्तावेजी सबूत नहीं हैं.

मुस्लिम पक्ष कह रहा है कि वहां ईदगाह थी तो क्या मस्जिद ईदगाह को तोड़कर बनाई गई थी.

 अयोध्या मे बहुत-सी मस्जिदें हैं, जन्मस्थान बदला नहीं जा सकता.

सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष

ढांचे के नीचे विशाल मंदिर नहीं था. बाबर ने मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई थी. हिंदुओं ने 1934 में मस्जिद पर हमला किया, 1949 में वे जबरन अंदर घुसे, 1992 में मस्जिद ढहा दी और अब वे लोग कोर्ट से अधिकारों की रक्षा की गुहार लगा रहे हैं.

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 भगवान राम की ओर से पहली बार केस 1989 में दायर हुआ, जिसमें पूरी जमीन पर मालिकाना हक मांगा गया. देवता न्यायिक व्यक्ति होता है लेकिन खुद केस नहीं लड़ सकता. जब निर्मोही अखाड़ा सेवादार की हैसियत से मौजूद है तो फिर अलग केस का कोई मतलब नहीं.

अयोध्या में पंचकोसी और चौदह कोसी परिक्रमा को साक्ष्य नहीं माना जा सकता. विदेशी यात्रियों और इतिहासकारों के द्ब्रयोरे सुनी-सुनाई बातों पर आधारित.

एएसआइ की खुदाई में कई परतें मिली हैं. अलग-अलग अवशेषों को एक साथ मिला कर नहीं देखा जा सकता. अवशेषों को एक साथ मिलाकर यह नहीं कहा जा सकता कि ढांचे के नीचे विशाल संरचना थी. एएसआइ ने अपारंपरिक तकनीक से खुदाई की. खंडहरों को मंदिर कहना गलत. वहां ईदगाह थी. ये रिपोर्ट विशेषज्ञ राय है न कि सबूत. कमल का फूल और अन्य चित्र सजावट के लिए हैं. इसे इस्लाम के खिलाफ नहीं कहा जा सकता.

 हिंदू पक्ष साबित करे कि 22-23 दिसंबर, 1949 (जब अंदर मूर्तियां रखी गईं थी) के पहले उनका वहां क्या अधिकार था. निर्मोही अखाड़ा बाहर चबूतरे पर पूजा करता था, अंदर नहीं. अंदर मुसलमानों का अधिकार.

जन्मस्थान को देवता और न्यायिक व्यन्न्ति बनाना अनुचित. ऐसा होगा तो बाकी पक्षों और धार्मिक विश्वास रखने वालों के अधिकार खत्म हो जाएंगे.

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बाबरी मस्जिद के दावे के पक्ष में इमाम के वेतन और 1934 में हुए दंगे में मस्जिद के कुछ टूटे हिस्से की मरम्मत और मुआवजे से संबंधित कागजात कोर्ट में रखे.

बाबर संप्रभु शासक था और कोर्ट उसके काम का विश्लेषण नहीं कर सकता. संप्रभु शासक जमीन का मालिक होता है और उसके काम को गैरकानूनी नहीं कहा जा सकता.

 हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील और दलील

हिंदू पक्ष

उच्च न्यायालय ने ये तो माना कि विवादित भूमि में वह हिस्सा शामिल है जिसे राम जन्मस्थान माना जाता है लेकिन पूजा का अधिकार नहीं दिया. ये बात विरोधाभासी है. मूर्ति हटाने पर स्थाई रोक लगाए बगैर पूजा का अधिकार बेमानी. यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन.

हिंदू पूरी भूमि को देवता मानते हैं और देवता पर बंटवारे का नियम नहीं लागू होगा. हाइकोर्ट का जमीन का बंटवारा करने का बहुमत का फैसला सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों में दी गई देवता की अवधारणा के खिलाफ है.

 मुस्लिम पक्ष

इलाहाबाद हाइकोर्ट ने मुख्य गुंबद के नीचे भगवान राम का जन्मस्थान कहा है जबकि इसका कोई सुबूत नहीं था. यह कहना गलत है कि 1949 के पहले दशकों से मस्जिद परिसर में हिंदू और मुसलमान दोनों का संयुक्त कब्जा था. एएसआइ रिपोर्ट में कहीं यह नहीं कहा गया कि मंदिर ढहाकर मस्जिद

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बनाई गई.

 हाइकोर्ट यह समझ नहीं पाया कि संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 मे सभी लोगों की आस्था और विश्वास को समान संरक्षण मिला है. मालिकाना हक आस्था और विश्वास के आधार पर तय नहीं हो सकता.

शिया वक्फ बोर्ड हिंदुओं के समर्थन में

उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में हिंदुओं के मुकदमे का खुल कर समर्थन किया. बोर्ड ने कहा कि हिंदू देवता कानून की निगाह में कानूनी व्यक्ति होते हैं लेकिन अल्लाह कानूनी व्यक्ति नहीं होते. जब अल्लाह ज्यूडीशियल पर्सन नहीं तो सुन्नी वक्फ बोर्ड प्रतिकूल कब्जे का दावा कैसे कर सकता है.

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