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साजिश के सुराग! 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ, सरेआम हुआ

5 साल पहले का वो मंजर आज भी कल्पना से बाहर हो सकता है. आखिर कारसेवकों के जमावड़े के साथ ऐसे कैसे हो गया, जिसे कानून व्यवस्था के तमाम इंतजामों और सख्त पहरेदारों के बीच रोका नहीं गया? 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ, वो सरेआम हुआ

बाबरी मस्जिद (फाइल फोटो) बाबरी मस्जिद (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 06 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 8:30 AM IST

साजिश के सुराग मिले, चेहरे भी पहचाने गए, फिर हालात जस का तस क्यों? सियासी रस्साकशी के साथ अयोध्या में वो हुआ, जिसकी कल्पना भी नहीं कोई कर सकता था. 25 साल पहले का वो मंजर आज भी कल्पना से बाहर हो सकता है. आखिर कारसेवकों के जमावड़े के साथ ऐसे कैसे हो गया, जिसे कानून व्यवस्था के तमाम इंतजामों और सख्त पहरेदारों के बीच रोका नहीं गया? 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में जो हुआ, वो सरेआम हुआ, मगर सीबीआई जांच में सुराग कुछ साजिशों के भी हाथ लगे.

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विरासत जब सदियों पुरानी हो, तो सियासत की कहानी में तमाम पेंच तो अपने आप ही जुड़ जाते हैं. ऐसे में अयोध्या की ये जमीन और इस पर खड़ी ये विरासत भला अपवाद कैसे हो सकती है.

अगर अपवाद होती, तो इसके वजूद की कहानी में विवादों और बवाल से भरा ये पन्ना नहीं जुड़ा होता, इस पर मस्जिद और मंदिर की दावेदारी नहीं होती.

6 दिसंबर 1992 के साजिशकर्ता

बता दें कि 25 साल पहले अयोध्या में जो भी हुआ वो खुल्लम खुल्ला हुआ. हजारों की तादाद में मौजूद कारसेवकों के हाथों हुआ. घटना के दौरान मंच पर मौजूद मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती, साध्वी ऋतम्भरा और लालकृष्ण आडवाणी के सामने हुआ.

ये सभी नाम तब दर्ज की गई सीबीआई की चार्जशीट में शामिल किये गये थे. इन पर आपराधिक साजिश में शामिल होने के सुराग भी सीबीआई की उसी जांच के दौरान सामने आए थे.

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शहर जले घर उजड़े

6 दिसंबर 1992 की उस घटना में वो शायद साजिश के ही सुराग थे, जिसके साथ सियासत के मंसूबे और इसे लेकर अयोध्या की आशंकाएं बदलती चली गईं. मंदिर-मस्जिद को लेकर दलीलें दोनों तरफ से उग्र हो चली थीं. सियासी तनाव के बीच मजहबी टकराव की घटनाएं उस दौर में बढ़ती चली गई. कई शहर जले और कई घर इस आंच झुलसे हैं.

1990 के उस दशक की वो उथल-पुथल आजाद हिंदुस्तान में सबसे मुश्किल मानी गई. वो दौर अपने हिंसक रूप से तो उबर गया, मगर मजहब को लेकर जनमानस की संवेदना दो धड़ों में बंट गई. अयोध्या का मसला सियासत का सबसे बड़ा एजेंडा बन गया.

रथयात्रा के जरिए उग्र हुआ आंदोलन

अयोध्या की कहानी उसी रथयात्रा के साथ बदलनी शुरू होती है. इस बात का जिक्र तब सीबीआई ने भी अपनी चार्जशीट में किया था. 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद कारसेवकों पर दर्ज हुए मामलों की जांच करते हुए सीबीआई ने महसूस किया ये एक दिन की औचक घटना नहीं, बल्कि इसके पीछे बड़ी तैयारी और साजिश थी.

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