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अयोध्या फैसले पर रिव्यू पेटिशन का मकसद क्या वाकई सिर्फ संवैधानिक हक का इस्तेमाल ?

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जमियत उलेमा-ए-हिंद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मिलकर रिव्यू पेटिशन डाल रहा है. लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर कहना है कि यह कुछ लोग पूरे समुदाय की आवाज नहीं हैं.

फोटो सौजन्यः इंडिया टुडे फोटो सौजन्यः इंडिया टुडे
संध्या द्विवेदी
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  • 28 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 4:09 PM IST

अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) और जमियत उलमा-ए-हिंद रिव्यू पेटिशन डालेगा. इसका ड्राफ्ट तैयार हो चुका है. और नौ दिसंबर से पहले सुप्रीम कोर्ट में इसे दाखिल कर दिया जाएगा. एआइएमपीएलबी के एडवोकेट जफरयाब जिलानी साहेब का कहना है कि रिव्यू पेटिशन का आधार उन्हीं तथ्यों को बनाया गया है जिन्हें खुद सुप्रीम कोर्ट ने माना है. सबसे बड़ा आधार यही है कि सुप्रीम कोर्ट जब यह मानता है कि 1949 में विवादित स्थल पर मूर्ति रखना गैर कानूनी था तो फिर एक तरफा फैसला कैसे आ गया? उधर जमियत उलमा-ए-हिंद के चेयरपर्सन अरसद मदनी के मुताबिक उन्होंने सिर्फ अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल किया है. 

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मदनी कहते हैं, फैसले के बाद माननीय कोर्ट ने खुद कहा था कि अगर कोई शंका हो तो इस पर रिव्यू पेटिशन डाली जा सकती है. हमें कुछ शंकाएं हैं, बस उसे खत्म करना चाहते हैं. सुप्रीम कोर्ट इस पेटिशन की सुनवाई करे या ना करे यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. 

यह पूछने पर कि फैसला आने से पहले जमियत और एआइएमपीएलबी ने कहा था कि कोर्ट जो भी फैसला करेगा हमें स्वीकार होगा. लेकिन अब रिव्यू पेटिशन से लगता है कि फैसला स्वीकार नहीं है. मदनी जवाब देते हैं, ''हमने (मैं जमियत की बात कर रहा हूं.) कहा था हम फैसले का सम्मान करेंगे. और रिव्यू डालने का मतलब यह कतई नहीं कि हम फैसले का अपमान करते हैं.'' 

इस रिव्यू पेटिशन पर सुप्रीम कोर्ट के वकील और अयोध्याज राम टेम्पल इन कोर्ट्स किताब के लेखक विराग गुप्ता कहते हैं, ''दरअसल यह रिव्यू के बहाने अपील की जा रही है जिसकी संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत इजाजत नहीं है. रिव्यू पेटिशन डालने वालों ने खुद भी स्वीकार किया है कि यह सौ फीसदी निरस्त हो जाएगी. ऐसे में यह संवैधानिक न्याय की बजाए सियासी नेतृत्व हासिल करने की लडाई ज्यादा दिखाई पड़ती है.''

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उधर, महिला मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर के मुताबिक पहली बात तो यह समझ लेना चाहिए कि रिव्यू पेटिशन डालने का फैसला पूरे समुदाय का नहीं है. सुन्नी वक्फ बोर्ड ने रिव्यू डालने से साफ मना कर दिया है. दरअसल, इंसाफ के लिए नहीं बल्कि सियासत के तहत कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसला आने से पहले का था कि उन्हें माननीय अदालत का फैसला स्वीकार होगा. फिर यह रिव्यू क्यों?

रिव्यू पेटिशन के मुख्य आधार

- रिव्यू पेटिशन का सबसे पहला और सबसे अहम आधार है, 1949 में विवादित स्थल में मूर्ति रखे जाने को माननीय अदालत द्वारा गैर कानूनी करार देना. अगर यह गैरकानूनी है तो फिर वहां मंदिर बनाने का फैसला कैसे सही हो सकता है? 

-दूसरा आधार है कि जब खुद माननीय कोर्ट ने माना है कि विवादित ढांचे जहां था वहां मस्जिद थी, इसे 1928 में मीर बाकी ने बनवाया था तो फिर यह तो फिर मस्जिद होना तो स्थापित हो गया!

- माननीय कोर्ट ने यह भी माना कि 1992 में मस्जिद गिराए जाना असंवैधानिक था.

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