
सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का फरमान भी सुनाया है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सुन्नी सेंट्रल वफ्फ बोर्ड को अयोध्या में ही मस्जिद निर्माण के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन मुहैया कराने का आदेश दिया.
क्या भगवान को है संपत्ति अर्जित करने का अधिकार?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद से चर्चा हो रही है कि क्या भगवान को संपत्ति अर्जित करने और केस करने का कानूनी अधिकार है? इस पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा का कहना है कि भारत में हिंदुओं के देवी-देवताओं को जूरिस्टिक पर्सन यानी लीगल व्यक्ति माना जाता है और इनको आम लोगों की तरह सभी कानूनी अधिकार होते हैं. उन्होंने बताया कि देवी-देवताओं को संपत्ति अर्जित करने, बेचने, खरीदने, ट्रांसफर करने और न्यायालय केस लड़ने समेत सभी कानूनी अधिकार होते हैं.
क्या कोर्ट में केस कर सकते हैं हिंदुओं के देवी-देवता?
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट शर्मा के मुताबिक आम लोगों की तरह हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ भी केस किया जा सकता है. जब उनसे सवाल किया गया कि देवी-देवता आम इंसानों की तरह सोच और विचार नहीं कर सकता है, तो वो कैसे संपत्ति का हस्तांतरण करेंगे, तो सीनिर एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने कहा कि जिस तरह कंपनी लीगल पर्सन होती है और अपने डायरेक्टर या ट्रस्टी के जरिए संपत्ति अर्जित करती है और कामकाज करती है, उसी तरह हिंदू देवी-देवता भी अपने प्रतिनिधि के जरिए अपने कानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करते हैं.
उन्होंने बताया कि हिंदुओं के देवी-देवता भी कंपनी या नाबालिग की तरह संपत्ति अर्जित करते हैं और प्रतिनिधि के जरिए कोर्ट में केस लड़ते हैं. हिंदुओं के देवी-देवताओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत संपत्ति के अधिकार मिलते हैं. हिंदू देवी-देवताओं के खिलाफ सिविल केस किए जा सकते हैं, लेकिन क्रिमिनल केस नहीं किए जा सकते हैं.
राम लला विराजमान को सुप्रीम कोर्ट में हुई लंबी बहस
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट जितेंद्र मोहन शर्मा ने बताया कि अयोध्या मामले में भी राम लला विराजमान के केस करने और संपत्ति अर्जित करने समेत सभी कानूनी अधिकार को लेकर लंबी बहस हुई थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने राम लला विराजमान को लीगल पर्सन माना.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष शर्मा ने यह भी बताया कि हिंदुओं के देवी-देवताओं यानी जूरिस्टिक पर्सन को नेचुरल पर्सन यानी आम इंसानों की तरह मौलिक अधिकार नहीं दिए गए हैं. इसका मतलब यह है कि नेचुरल पर्सन को संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार और कानूनी अधिकार दोनों दिए जाते हैं, जबकि जूरिस्टिक पर्सन यानी लीगल इंटिटी को सिर्फ कानूनी अधिकार ही दिए जाते हैं.
भारत में कब से हिंदू देवी-देवताओं को मिला कानूनी अधिकार?
भारत में हिंदू देवी-देवताओं को पहली बार साल 1888 में ब्रिटिश काल में जूरिस्टिक पर्सन माना गया था. हिंदू देवी-देवताओं को स्कूल, कॉलेज चलाने और ट्रस्ट बनाने का भी कानूनी अधिकार मिला है.
मनोहर गणेश तमबेकर बनाम लखमीरम गोविंद्रम, भूपति नाथ स्मृतितीर्थ बनाम राम लाल मैत्र, रामपत बनाम दुर्गा भारती, राम ब्रह्म बनाम केदारनाथ समेत दर्जनों मामलों में पहले ही न्यायालय हिंदू देवी-देवताओं को लीगल पर्सन मान चुका है. हालांकि सभी मंदिर के देवी-देवताओं को जूरिस्टिक पर्सन नहीं माना जाता है. इसके लिए जरूरी है कि उस देवी या देवता का पूरे विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा कराई गई हो.