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फिर कप्तान बने अजहर, कैप्टन और सिद्धू को करीब लाने की कवायद

कभी टीम इंडिया में नवजोत सिंह सिद्धू के कप्तान रहे मोहम्मद अजहरूद्दीन एक बार फिर उन्हें टीम में लेने की कोशिशों में जुटे हैं. हालांकि इस बार टीम क्रिकेट की नहीं बल्कि राजनीति की है.

अजहर सिद्धू की पार्टी और कांग्रेस के बीच पुल का काम कर रहे हैं अजहर सिद्धू की पार्टी और कांग्रेस के बीच पुल का काम कर रहे हैं
अभि‍षेक आनंद/अभिजीत श्रीवास्तव
  • नई दिल्ली,
  • 05 अक्टूबर 2016,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST

हिंदी के जुमलों के साथ छोटे पर्दे के कॉमेडी शो में नजर आने वाले बीजेपी के पूर्व नेता और बीते जमाने के टीम इंडिया के ओपनिंग बैट्समैन रहे नवजोत सिंह सिद्धू एक बार फिर चर्चा में हैं. आगामी पंजाब विधानसभा चुनाव में नवजोत सिंह सिद्धू किस करवट बैठेगा इस पर कयासों का बाजार गर्म है. अंदरखाने से मिली खबरों के अनुसार कभी टीम इंडिया में नवजोत सिंह सिद्धू के कप्तान रहे मोहम्मद अजहरूद्दीन एक बार फिर उन्हें टीम में लेने की कोशिशों में जुटे हैं. हालांकि इस बार टीम क्रिकेट की नहीं बल्कि राजनीति की है. अजहर उनकी (सिद्धू की) पार्टी और कांग्रेस के बीच गठबंधन के लिए पुल का काम कर रहे हैं.

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आज भले ही इन दोनों क्रिकेटरों के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं लेकिन 1996 में क्रिकेट के मैदान पर दोनों के रिश्तों में खटास पैदा हो गई थी जो अभी पिछले साल ही खत्म हुई है.

क्रिकेट के मैदान पर कैसे पनपी खटास?
पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू और मोहम्मद अजहरूद्दीन के बीच 1996 में रिश्ते तल्ख हो गए थे. भारतीय क्रिकेट टीम 1996 में इंग्लैंड के दौरे पर गई थी. उस दौरे पर अजहर बार बार सिद्धू की खिंचाई कर रहे थे. इसी दौरान इंग्लैंड के खिलाफ ओल्ड ट्रैफर्ड में तीसरे वनडे मैच के दिन सिद्धू को यह लगा कि वो अब और इस टीम का हिस्सा नहीं रहना चाहते.

दरअसल, उन्हें ना तो कप्तान अजहर और ना ही मैनेजर संदीप पाटिल ने कहा कि वो तीसरा वनडे नहीं खेल रहे, बल्कि टीम के कुछ सदस्यों ने बताया कि ड्रेसिंग रूम में एक चिट लगी है जिसपर उन्हें टीम से बाहर किए जाने की बात लिखी गई है. अजहर ने टॉस जीता और पहले बैटिंग ली. सिद्धू पैड लगाकर बैटिंग के लिए तैयार थे. इसके बाद टीम के कुछ सदस्यों ने उनका मजाक उड़ाया और इससे सिद्धू बेहद खफा हो गए. सिद्धू दौरे के बीच से ही टीम छोड़कर वापस लौट गए. हालांकि पिछले साल अक्टूबर के महीने में अजहर बीमार सिद्धू से मिलने हॉस्पिटल पहुंचे और इसके साथ ही पिछले 19 सालों से चल रहे इन दोनों के बीच मनमुटाव की खबरों पर विराम लग गया.

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बेल्ट कसी, अब पतलून संभालने में लगे सिद्धू
कप्तान अजहर एक बार फिर क्रिकेट टीम के पुराने ओपनर को कांग्रेस के साथ जोड़ने की कवायद में तो लगे हैं लेकिन सिद्धू का हाथ कांग्रेस के साथ संभव हो सकेगा या नहीं यह कहना मुश्किल हैं क्योंकि पंजाब कांग्रेस के कद्दावर नेता अमरिंदर सिंह पर विगत दिनों में उन्होंने (सिद्धू ने) बहुत ही छींटाकशी भरे बयान दिए हैं. अमरिंदर पर उन्होंने पर्दे के पीछे अकाली नेता बादल के परिवार का साथ देने की बात कही थी. अपनी पार्टी को लॉन्च करने के दौरान उन्होंने यह बयान दिया और कहा कि सही और गलत में से एक का चयन करना है.

पॉलिटिक्स एक मिशन है ना कि प्रोफेशन, पंजाब की जनता को धोखा देने का प्रश्न ही नहीं उठता. दूसरी ओर अमरिंदर सिंह ने भी सिद्धू को एक कॉमेडियन बताया और कहा कि आवाज-ए-पंजाब ‘तांगा पार्टी’ है. उन्होंने यहां तक कह डाला कि जनसमुदाय के बीच सिद्धू का कोई कद नहीं हैं. सिद्धू को भी यह पता है कि पंजाब में कांग्रेस के पास अमरिंदर सिंह से बड़ा नेता नहीं है और उनके सहारे ही आगामी विधानसभा चुनाव की नैया पार करने की कोशिश होगी.

आपको अपनी बेल्ट कसने या पतलून गंवाने में से एक को चुनना होता है. यह सिद्धू का एक और जुमला है और वर्तमान में राजनीति में उनकी स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. बीजेपी छोड़ने के बाद से सिद्धू की हालत भी कुछ ऐसी है कि उन्हें राजनीतिक पिच पर बने रहने के लिए एक बड़ी पार्टी के सहारे की जरूरत है. ऐसे में उन्होंने बेल्ट तो कस लिया है और पतलून संभालने की कवायद में कांग्रेस का दामन थामने में लगे हैं.

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छक्का मारने के उम्मीद में छोड़ा बीजेपी
जो पासा नहीं फेंकता, वो कभी छक्का मारने की उम्मीद नहीं कर सकता. यह सिद्धू का खास जुमला है और इसी अंदाज में अपने राजनीतिक करियर के अहम मोड़ पर, जबकि उन्हें राज्यसभा सदस्य मनोनीत कर दिया गया था, सिद्धू ने बीजेपी का दामन छोड़ दिया. इसकी वजह पार्टी से उनका मोहभंग बताया गया. बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान सिद्धू को पंजाब के अमृतसर से टिकट नहीं दिया. जबकि लोकसभा की इसी सीट पर उन्होंने पहले भी दो बार जीत दर्ज की है

बीजेपी छोड़ने के बाद उन्होंने एक जैसे विचार वाली पार्टी के साथ राजनीतिक ताल्लुक रखने की बात कहते हुए बीजेपी और इसकी साथी और पंजाब की सत्तासीन पार्टी अकाली दल को आगामी विधानसभा चुनाव में हराने का संकल्प भी लिया. लेकिन यहां से उनके राजनीतिक सितारे कुछ डगमगाने लगे. जुलाई की शुरुआत से ही आम आदमी पार्टी से उनके जुड़ने की खूब चर्चा थी. लेकिन कुछ दिनों बाद ही इसका नतीजा भी सिफर रहा जब भीतरखाने से मिली खबरों के मुताबिक पंजाब चुनाव में ‘आप’ का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किए जाने की सिद्धू की मांग को नकार दिया गया.

अंडा फोड़ कर ऑमलेट, आवाज-ए-पंजाब लॉन्च
बिना अंडा फोड़े आप ऑमलेट नहीं बना सकते. ये सिद्धू का एक और जुमला है. इसी तर्ज पर बीजेपी छोड़ने और आप से ठुकराये जाने के बाद उलझते समीकरणों के बीच सिद्धू ने पिछले महीने की आठ तारीख को नवजोत सिद्धू ने पूर्व ओलंपियन परगट सिंह के साथ मिलकर अपनी राजनीतिक पार्टी आवाज-ए-पंजाब का ऐलान कर दिया.

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इस दौरान वो केजरीवाल के साथ लंबे समय से चल रही बातचीत पर भी बोले. उन्होंने केजरीवाल पर निशाना साधा कि उन्हें केवल ‘यस मैन’ यानी हां बोलने वाले लोग चाहिए. इतना ही नहीं सिद्धू ने यह भी कहा कि केजरीवाल ने उन्हें पंजाब विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने की सलाह दी और बदले में उनकी पत्नी को मंत्री बनाने की पेशकश दी.

कोशिश के बिना सिर्फ डैंड्रफ ही मिल सकते हैं!
अपनी पार्टी लॉन्च करने के बाद भी सिद्धू को पंजाब की दूसरी क्षेत्रीय पार्टी की ओर से समर्थन मिल रहा है. अक्टूबर महीने की पहली तारीख को आम आदमी पार्टी से निकाले गए सुच्चा सिंह छोटेपुर ने अपनी राजनीतिक पार्टी अपना पंजाब पार्टी (AAP) की घोषणा की और सिद्धू को इसका नेतृत्व करने का निमंत्रण भी दिया. अब बॉल सिद्धू के कोर्ट में है, वो अभी अपनी राजनीतिक मंशाओं को साधने की कोशिशों में लगे हैं. उनके एक और जुमले के मुताबिक जीवन में कोशिश किए बिना सिर्फ डैंड्रफ मिल सकते हैं.

सिद्धू की कोशिशें क्या रंग लाएंगी यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. उनकी पार्टी का गठबंधन कांग्रेस या अन्य पार्टी के लिए कितना कारगर साबित होगा इस पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है. दिल्ली की सत्ता पर काबिज और लोकसभा चुनावों में पंजाब में अपनी पहचान बनाने वाली आप उनसे किनारा कर चुकी है और कांग्रेस को उनके कद का आकलन करना बचा है. ऐसे में सिद्धू का राजनीतिक करियर फिलहाल धीमी पिच पर बैटिंग करने के समान होता जा रहा है. विकेट पर तो टिके हैं लेकिन रन बनते नहीं दिख रहे.

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