Advertisement

"आडवाणी जी, कुछ बचा तो नहीं न? बिल्कुल साफ कर दिया न?"

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में 19 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित आठ लोगों पर आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया था.

फाइल फोटो फाइल फोटो
महेन्द्र गुप्ता
  • नई दिल्ली,
  • 06 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 4:56 PM IST

''जो स्वप्न देखते बाबर के, अरमान मिटाकर मानेंगे, जो खेल रही है आंगन में, इस बेल कुचलकर मानेंगे"

जब 25 सितंबर, 1990 को गुजरात के सोमनाथ से रामरथ यात्रा चली तो रास्ते में कारसेवक यही गीत गा रहे थे. आखिरकार, 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवकों ने इस बेल को कुचल दिया. 25 साल पहले घटी इस भयंकर घटना के पन्ने फिर खुल गए हैं. एक ओर इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है, वहीं दूसरी ओर बुधवार को बाबरी ढहाए जाने के 25 साल पूरे हो रहे हैं.  बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में 19 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती सहित आठ लोगों पर आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया था.

Advertisement

इस सबके बीच वे प्रसंग याद करना जरूरी हो जाते हैं, जो आडवाणी ने अपनी ऑटोबायोग्राफी 'माय कंट्री, माय लाइफ' में लिखे थे. वे एक जगह लिखते हैं,  "मैं अयोाध्या से लखनऊ के रास्ते के अपने ताजा अनुभव (6 दिसंबर, 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद) को याद करता हूं. 135 किलोमीटर के इस सफर के दौरान मैं देख सकता था कि कड़ी सुरक्षा के बावजूद लोग हर तरफ जश्न मना रहे हैं.

अयोध्या से निकलने में डेढ़ घंटे का समय लगा, इस दौरान जब पुलिस ने प्रमोद महाजन और मुझे कार से ले जाते हुए देखा तो पुलिस ने हमारी कार रोक ली. तभी यूपी सरकार का एक सीनियर ऑफिसर हमारे पास आया और बोला, "आडवाणीजी, कुछ बचा तो नहीं न? बिल्कुल साफ कर दिया न?" मैं जनता की मनोस्थिति को बताने के लिए इस घटना का दोबारा जिक्र कर रहा हूं. कर्मचारी और राज्य सरकार के अधिकारी भी अयोध्या की इस भयंकर घटना से खुश थे."

Advertisement

अपनी रथयात्रा के बारे में आडवाणी किताब में एक जगह लिखते हैं, 'जल्द ही यह आजाद भारत का सबसे बड़ा आंदोलन बनकर उभरा. सितंबर-अक्टूबर 1990 को सोमनाथ से अयोध्या तक की मेरी राम रथ यात्रा को शानदार प्रतिक्रियाएं मिलीं, जो मेरी उम्मीद से बहुत ज्यादा थीं. जैसा कि आजादी के खिलाफ लोगों के संघर्ष ने उनके लोकतंत्र में भरोसे के प्रति मेरी आंखें खोली थीं, उसी तरह अयोध्या आंदोलन के दौरान देश के हिन्दुओं की विभिन्न जाति और वर्ग में धर्म के प्रति गहरे प्रभाव के संबंध में मेरी आंखें खुलीं.'   

बता दें कि अयोध्या में 25 साल पहले हुए इस आंदोलन का नेतृत्व लालकृष्ण आडवाणी ने किया था. आंदालेन से पहले आश्वस्त किया गया था कि इसमें किसी तरह की हिंसा नहीं होगी, लेकिन देश के कई हिस्सों में बाबरी विध्वंस के बाद हिंसक घटनाएं हुईं. बाबरी मस्जिद पर चली एक-एक कुल्हाड़ी की आवाज मुंबई बम धमाकों में मारे गए लोगों की चीख बनकर लौटी.

(लालकृष्ण आडवाणी की आत्मकथा में लिखे इस प्रसंग का जिक्र पूर्व गृह सचिव माधव गोडबोले ने अपनी किताब 'सेक्यूलरिज्म इंडिया एट अ क्रॉसरोड्स' में भी किया है)

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement