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उच्च सदन में अब शक्ति संतुलन

राज्यसभा की 57 सीटों पर चल रहे चुनाव के बाद सदन में कांग्रेस और बीजेपी सदस्यों का बड़ा अंतर पट जाएगा. अब मोदी सरकार बाकी दलों को ढंग से मना ले तो बहुत-से मामलों में राज्यसभा में कांग्रेस के विरोध को नाकाम कर सकती है.

पीयूष बबेले
  • नई दिल्ली,
  • 01 जून 2016,
  • अपडेटेड 5:26 PM IST

जब यह तय हो चुका था कि नरेंद्र मोदी ही देश के प्रधानमंत्री बनेंगे, बस उनका शपथ लेना बाकी था, तब 20 मई, 2014 को मोदी ने संसद की चौखट पर मत्था टेककर यह संदेश दिया कि लोकतंत्र में संसद ही सर्वोच्च है. लेकिन आठ दिन बाद जब उनके प्रमुख सचिव की नियुक्ति संसद में कानून बनाने के बजाए अध्यादेश के जरिए की गई तो यह संदेश भी गया कि संसद है तो सर्वोच्च, पर इसे निभाना कठिन है. तब से लेकर मेडिकल प्रवेश परीक्षा एनईईटी तक मोदी सरकार को अहम विषयों पर एक के बाद एक कई अध्यादेश लाने पड़े. इसकी वजह सिर्फ यह नहीं थी कि संसद चल नहीं रही थी, वजह यह भी थी कि संसद के उच्च सदन राज्यसभा में अपने विधेयक पास कराने लायक बहुमत सरकार के पास नहीं था. अब दो साल बाद सियासत कुछ ऐसी करवट लेने जा रही है, जब मोदी सरकार के लिए राज्यसभा अभेद्य दुर्ग नहीं रह जाएगी. अगर सरकार बाकी दलों को ढंग से मना ले तो बहुत-से मामलों में राज्यसभा में वह कांग्रेस के विरोध को नाकाम कर सकती है.

राज्यसभा का अंकगणित देखें तो इस समय 241 सदस्यों में से कांग्रेस के 64 और बीजेपी के 49 सदस्य हैं. अन्य दलों के 119 सांसद हैं, जबकि नामित सांसदों की संख्या 9 है. इस तरह अपने 15 अतिरिक्त सांसद और अन्य विपक्षी दलों को साथ लेकर राज्यसभा में कांग्रेस पार्टी ने मोदी सरकार को किसी तरह की मनमानी नहीं करने दी. यहां तक कि सरकार नौ महीने सिर पटक कर रह गई, लेकिन विवादित भूमि अधिग्रहण अध्यादेश राज्यसभा से पास नहीं हो सका.
लेकिन राज्यसभा की 57 सीटों के लिए चल रहे द्विवार्षिक चुनाव के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या घटकर 57 हो जाएगी, वहीं बीजेपी के सदस्यों की संख्या बढ़कर 55 हो जाएगी. इसके अलावा 2016 में मनोनीत किए गए चार सदस्य भी वोटिंग की स्थिति में बीजेपी के साथ ही जाएंगे. हालांकि कांग्रेस के पास अब भी कुछ मनोनीत सदस्य बचे हैं, लेकिन किक्रेट सितारे सचिन तेंडुलकर और अभिनेत्री रेखा जैसे सदस्य भले ही कांग्रेस ने मनोनीत किए हों, लेकिन ये हर वक्त पार्टी के पीछे खड़े रहेंगे, ऐसा मानना कठिन है.

बदले हुए राजनैतिक समीकरण पर बीजेपी महासचिव भूपेंद्र यादव ने कहा, ''राज्यसभा में व्यावहारिक रूप से बीजेपी के पास कांग्रेस से ज्यादा सांसद हो जाएंगे. ऐसे में अन्य दलों के सकारात्मक सहयोग से देशहित का विधायी कार्य बेहतर ढंग से किया जा सकेगा.'' वैसे भी वित्त मंत्री अरुण जेटली जिस तरह बार-बार जोर देकर कह रहे हैं कि संसद के आगामी मानसून सत्र में जीएसटी विधेयक पारित हो जाएगा, उसके पीछे इस बदले हुए अंकगणित की बड़ी भूमिका है.

लेकिन यह भूमिका इतनी साफ भी नहीं है. इन समीकरणों के बदलने के साथ ही क्षेत्रीय दलों का पैमाना भी ऊपर-नीचे होगा. इस समय समाजवादी पार्टी 15 सदस्यों के साथ राज्यसभा की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है और जुलाई में इसके सदस्यों की संख्या 19 हो जाएगी. सपा भले ही सांप्रदायिकता के मुद्दे पर बीजेपी से अलग दिखती रही हो, लेकिन जनहित के नाम पर कुछ मुद्दों पर उसे अपने साथ लाना बीजेपी के लिए कठिन नहीं होगा. हालांकि पार्टी सांसद मुनव्वर सलीम कहते हैं, ''सपा मूल्यों की राजनीति करती है,
इसमें सौदेबाजी की जगह नहीं है.''

बसपा की सीटें 10 से घटकर 6 हो जाएंगी. उधर, जयललिता की पार्टी के पास इस समय 12 सीटें हैं और उनकी राजनैतिक ताकत यथावत रह सकती है या हद से हद एक सीट की कमी आएगी. जिस तरह तमिलनाडु में जयललिता की विरोधी द्रमुक यूपीए का अंग है, उसमें जयललिता की जोड़ी कांग्रेस के साथ नहीं बनती और उन्हें मुद्दों पर साथ लाने का विकल्प हमेशा बीजेपी के पास है.

ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के पास भी राज्यसभा में 12 सीटें हैं और इस बार पश्चिम बंगाल में कांग्रेस जिस तरह मुख्य विपक्षी दल बन गई है, ऐसे में बीजेपी तृणमूल पर कम से कम कुछ मुद्दों पर डोरे डाल सकती है. मोदी के धुर विरोधी नीतीश कुमार के जेडीयू की राज्यसभा सीटें 13 से घटकर 9 हो जाएंगी, हालांकि इसी अनुपात में लालू यादव की सीटें बढ़ जाएंगी. बीजेपी की सहयोगी तेलुगुदेशम पार्टी की सीटें भी 6 से बढ़कर 8 हो जाएंगी. उधर, तेलंगाना से तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) की सीटें 3 हो जाएंगी. ये दोनों बीजेपी के पाले की सीटें होंगीं. शिवसेना की सदस्य संख्या भी 6 से बढ़कर 8 हो जाएगी, उधर शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सदस्य संख्या 6 से घटकर पांच रह जाएगी.

7 सीटों वाले बीजू जनता दल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आएगा, लेकिन बीजेडी वैसे भी हर मुद्दे पर बीजेपी का विरोध करने वाला दल नहीं रहा है. बदले हुए समीकरणों पर कांग्रेस महासचिव और मध्य प्रदेश से राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह का दो-टूक कहना है, ''कांग्रेस शुरू से ही संसद और सड़क दोनों जगह जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभा रही है. हमारी इस भूमिका में कोई बदलाव नहीं आने वाला. हम संसद में संघ का एजेंडा नहीं चलने देंगे.''

लेकिन यह भी सच है कि राज्यसभा का खेल अब कांग्रेस के हाथ से पूरी तरह न भी निकला हो तो भी अब बात बराबरी की है. अब बीजेपी के रणनीतिकारों को यह दिखाना है कि किस तरह सपा, एआइएडीएमके, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल जैसे दलों के साथ समय-समय पर समीकरण साधकर वे राज्यसभा को चला ले जाते हैं. ऐसे में सबकी नजर उन आर्थिक सुधारों और रोजगार के वादों पर होगी, जिन्हें अब तक विपक्ष के नाम पर टाला गया है. जाहिर है कि मुलायम सिंह यादव, जयललिता और ममता बनर्जी न सिर्फ रसूखदार नेता हैं, बल्कि अच्छा खासा मान मनौवल करवाने में यकीन रखते हैं. ऐसे में मोदी के विश्वस्तों को इन्हें मनाने के लिए भले ही उतना मत्था न टेकना पड़े जितना नरेंद्र मोदी ने संसद की सीढिय़ों पर टेका था, लेकिन रीढ़ को कम से कम 60 डिग्री पर तो घुमाना ही पड़ेगा.

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