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महाराष्ट्रः उद्धव ठाकरे का उदय

उद्धव ठाकरे बालासाहेब के चुने हुए वारिस के रूप में उभरे और उन्हें 2003 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया

मंदार देवधर मंदार देवधर
किरण डी. तारे
  • महाराष्ट्र,
  • 03 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 3:57 PM IST

अपने निवास, मुंबई के 'मातोश्री' के भूतल की बैठक में, उद्धव ठाकरे की मेज पर एक सफेद ऐक्रेलिक स्टैंड पर अंकित है, 'मुझे वे लोग पसंद हैं जो कोई काम पूरा करके दिखाने का माद्दा रखते हैं.' यह शिवसेना प्रमुख की सोच का सार है.

जब 1995 में पहली बार शिवसेना-भाजपा सरकार सत्ता में आई थी, तो बालासाहेब ठाकरे के तीन पुत्रों में सबसे छोटे उद्धव, जो अब 59 वर्ष के हैं, वन्यजीव फोटोग्राफी के अपने जुनून में ही बहुत खुश थे. शांत और संकोची स्वभाव के उद्धव से जब भी पार्टी कार्यकर्ता कुछ बोलने का आग्रह करते, वे अपने करिश्माई चचेरे भाई राज की ओर इशारा कर देते थे. हालांकि, 1996 में उनके सबसे बड़े भाई बिन्दुमाधव की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तो उद्धव अपने पिता के साथ मातोश्री में रहने आ गए, जहां दूसरे भाई जयदेव की पत्नी स्मिता ठाकरे की चलती थी.

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वैसे, राजनीति में उद्धव की दिलचस्पी 1999 में ही शुरू हुई, जब शिवसेना-भाजपा गठबंधन की कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी गठबंधन के हाथों हार हुई. अगले पांच वर्षों में, वे बालासाहेब के चुने हुए वारिस के रूप में उभरे और उन्हें 2003 में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उद्धव भले ही शर्मीले और मृदुभाषी रहे हों, लेकिन उनके विचार बहुत स्पष्ट थे. वे शिवसेना के पुनर्निर्माण को तैयार थे, ताकि वह हुड़दंगियों की पार्टी की बजाय, समावेशी विकास में विश्वास रखने वाली पार्टी के रूप में जानी जाए. 2003 में, उद्धव ने 'मी मुंबइकर' नाम से एक अभियान शुरू किया, जिसका उद्देश्य मुंबई के विकास में सभी धर्मों और क्षेत्रों के लोगों को शामिल करना था. उन्होंने शिवसेना नेताओं और काडर के बीच अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाने के लिए राज्य भ्रमण शुरू किया.

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यह उनके और राज के बीच विवाद का विषय बन गया, जो उद्धव को ठाणे, पुणे और नासिक के अपने इलाके से दूर रखना चाहते थे. उसी दौरान उद्धव ने पार्टी में अपने अधिकार का दावा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को अपना आदेश मानने के लिए दवाब बनाना शुरू कर दिया.

राणे और राज दोनों ने 2005 में शिवसेना छोड़ दी. बीमार होने के कारण बालासाहेब ने मातोश्री से बाहर निकलना बंद कर दिया और 2007 के अंत तक उद्धव ठाकरे ने पार्टी को पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले लिया. ''उद्धव ने जबरन वसूली करने वालों के गिरोह को मुक्त कराया'' बालासाहेब ने अपने बेटे की प्रशंसा में यही शब्द कहे थे.

पार्टी और बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) पर पूर्ण नियंत्रण के साथ, उद्धव ने शहर के लिए अपने दृष्टिकोण को लागू करना शुरू कर दिया. उन्होंने पीने का पानी ले जाने के लिए पाइपलाइनें डालने के बजाए सुरंगों से निर्माण कार्य कराया और शहर को मॉनसून में बाढ़ से बचाने के लिए तीन पंपिंग स्टेशन स्थापित किए. यह अलग बात है कि ये स्टेशन तभी कारगर साबित होते हैं जब बारिश मध्यम स्तर की होती है और जब भी शहर में बाढ़ आती है तो उद्धव और बीएमसी आलोचना का विषय बन जाते हैं.

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2009 से, उद्धव महाराष्ट्र के किसानों की कर्ज माफी की बात उठा रहे हैं. जब शरद पवार भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के अध्यक्ष थे, तो उद्धव ने आइपीएल में दिन और रात के मैचों की अनुमति देने के लिए यह कहते हुए उनकी आलोचना की कि किसान रात में बिजली पाने के लिए जूझ रहे हैं और मैच के लिए बिजली दी जा रही है.

कृषि को लेकर उनकी दृष्टि के बारे में जब पूछा गया तो उनका जवाब था, ''मैं खेती-बाड़ी की जानकारी तो नहीं रखता लेकिन यह जानता हूं कि किसानों के दुख-दर्द कैसे कम किए जा सकते हैं.'' यह भी गौरतलब है कि कोंकण में एक रासायनिक रिफाइनरी और परमाणु ऊर्जा परियोजना के विरोध ने उनकी छवि उद्योग विरोधी नेता की बनाई है, जिसमें उन्हें सुधार करना पड़ सकता है.

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