
बॉलीवुड के दिग्गज एक्टर परेश रावल ने जब अपने बेटे आदित्य रावल के डेब्यू का ऐलान किया था, तो सभी को देखना था कि हुबहू अपने पिता जैसे दिखने वाले आदित्य क्या पर्दे पर वैसा ही जादू दिखा पाएंगे. स्टार किड्स को हमेशा से उनके माता-पिता के काम से आंका गया है और यहां आदित्य के साथ भी कुछ अलग नहीं होने वाला था. Zee5 की ओरिजिनल फिल्म बमफाड़ से आदित्य रावल ने डेब्यू किया है और ये कैसा है हम आपको बता रहे हैं.
क्या है कहानी?
बॉलीवुड से लेकर OTT प्लेटफॉर्म्स ने हमें बहुत सी बढ़िया क्राइम ड्रामा फिल्में दी हैं. ऐसे में बमफाड़ की कहानी सबसे साधारण है. एक लड़का जो दिलेर है और अपनी कॉलोनी का हीरो है. किसी से नहीं डरता और शहरभर में घूमता-फिरता है. एक लड़की जो गलत चक्करों में फंस गई है और अपनी जिंदगी में प्यार और इज्जत तलाश रही है, और एक शहर का गुंडा जिसका नाम सुनकर लोग कांपते हैं और जिसपर बड़े-बड़े लोगों का हाथ है.
बमफाड़ की कहानी शुरू होती है नाटे उर्फ नासिर जमाल (आदित्य रावल) के अपने स्कूल में आतंक मचाने से. वो अल्हड़ है, खुशमिजाज है और उनका खून उबलने में चंद सेकंड भी ढंग से नहीं लगते. नासिर की मुलाकात होती है नीलम (शालिनी पांडे) से और दोनों को प्यार हो जाता है. वहीं शहर के गुंडे जिगर फरीदी (विजय वर्मा) का बोलबाल भी हर तरफ है और नीलम का जिगर से 'जरूरत' का कनेक्शन है.
नीलम कौन है, कहां से आई है और इलाहाबाद में यूं अकेली क्यों रहती है नाटे नहीं जनता. वो अपने सच को नासिर से छुपाती है और जब उसका भेद खुलता है तो शुरू होती है एक ऐसी कहानी, जिसे दर्शकों को अपने साथ बांधकर रखना था लेकिन अफसोस ऐसा हुआ नहीं.
परफॉरमेंस
परफॉरमेंस की बात करें तो आदित्य रावल और शालिनी पांडे का ये डिजिटल डेब्यू है. आदित्य से पहले शालिनी की बात करें तो उनके रोल में कुछ खास मसाला नहीं था और न ही उनके काम में कोई नयापन. शालिनी को हम पहले अर्जुन रेड्डी जैसी फिल्म में देख चुके हैं और उनके काम की खूब तारीफें भी सुन चुके हैं. लेकिन बमफाड़ में उन्होंने कुछ ऐसा नहीं किया, जो आपको उनके किरदार के साथ जोड़े.
आदित्य रावल को पहली बार लीड रोल में देखा गया है और कहना सही होगा कि उनमें एक्टिंग की काबिलियत है. लेकिन इस फिल्म में उनका टैलेंट कुछ खास उभरकर सामने नहीं आया. नासिर के किरदार के साथ उन्होंने न्याय करने की कोशिश बहुत की लेकिन फिर भी उसमें कुछ कमी रह गई. आदित्य का किरदार दबंग है और बिना सोचे समझे चीजें करता है, ये बात आपको फिल्म में दिखाई देती है लेकिन जब फील की बात आती है तो वे फेल हो जाते हैं. उनका जूनून स्क्रीन पर दिखाई तो दिया लेकिन उस जोश के साथ कहानी को रोमांचक नहीं बना पाया.
विजय वर्मा एक कमाल के एक्टर हैं और उन्होंने ये बात कई फिल्मों से साबित की है. यहां उन्होंने एक दबंग गुंडे का किरदार निभाया और वो काफी अच्छे भी लगे. विजय ने जिगर फरीदी के किरदार को अच्छे से निभाया, लेकिन शायद फिल्म की कहानी और अन्य बातों की वजह से उनका काम कुछ फीका लगा. जतिन सरना ने जाहिद के रोल में अपना काम अच्छे से किया. उनका काम काफी अच्छा था.
डायरेक्शन
डायरेक्टर रंजन चंदेल ने इस कहानी को लेयर्स जरूर दीं लेकिन उन्हें ढंग से खोला नहीं. जिगर के कारोबार की कहानी, जाहिद की सोच ये बातें फिल्म में की गईं लेकिन कभी उभरकर बाहर नहीं आईं. फिल्म में बहुत अच्छा युवा प्यार देखने को मिला, जहां आपको सामने वाले की हर छोटी-बड़ी बात पसंद होती है. लव जिहाद के बारे में भी बात हुई, लेकिन वो आगे नहीं बढ़ी.
फिल्म का अच्छा पार्ट था एक मुस्लिम हीरो का होना और डायरेक्टर का उसे स्टीरियोटाइप ना करना. इस फिल्म में नासिर जमाल हर उस अन्य हीरो जैसा है, जिन्हें हमने पहले देखा है. फिल्म में और भी कुछ एलिमेंट हैं, लेकिन फिर भी फिल्म में उस जोश की कमी थी, जो आपको एक कहानी से जोड़ने के लिए चाहिए. फिल्म का म्यूजिक ठीक था. बैकग्राउंड स्कोर की बात करें तो वो बहुत सी जगह रोमांचक सीन्स के फील को मार देता है. इस कहानी को बमफाड़ होना था, लेकिन अफसोस ऐसा पूरी तरह हुआ नहीं.