
कालेधन पर नकेल कसने के लिए 500 और 1000 रुपये के नोटों का चलन बंद करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चौंकाने वाले ऐलान से कुछ ही घंटों पहले भारतीय रिजर्व बैंक ने इसकी सिफारिश की थी. दरअसल रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट- 1934 में केंद्र सरकार को किसी भी बैंक नोट का चलन बंद करने की शक्ति दी गई है. हालांकि सरकार यह फैसला खुद नहीं, बल्कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर ही कर सकती है.
आरबीआई बोर्ड ने 8 नवंबर को पारित किया था नोटबंदी का प्रस्ताव
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सूचना के अधिकार कानून के तहत उसके सवालों के जवाब में आरबीआई ने बताया कि केंद्रीय बैंक के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने 8 नवंबर को हुई बैठक में नोटबंदी की सिफारिश पारित की थी. इस बैठक में 10 बोर्ड मेंबर्स में से केवल आठ ही शरीक हुए थे, जिनमें आरबीआई प्रमुख उर्जित पटेल, कंपनी मामलों के सचिव शक्तिकांत दास, आरबीआई के डिप्टी गवर्नर आर गांधी और एसएस मुंद्रा शामिल थे.
यहां आरबीआई बोर्ड की बैठक और प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बीच सरकार के पास बैंक के आधिकारिक प्रस्ताव पर अमल के लिए कुछ ही घंटों का वक्त था. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने कैबिनेट की बैठक में इस फैसले के बारे में अपने मंत्रियों का बताया.
लंंबे अर्से से चल रही थी नोटबंदी की तैयारी
हालांकि कई पूर्व आरबीआई अधिकारियों का कहना है कि इससे पता चलता है कि आरबीआई बोर्ड की रजामंदी बस एक औपचारिकता थी, क्योंकि सरकार और आरबीआई दोनों का ही कहना है कि नोटबंदी की इस योजना पर काफी लंबे समय से विचार-विमर्श किया जा रहा है. देश में चल रहे 86 फीसदी नोटों पर पाबंदी को लेकर जारी इस चर्चा को पूरी तरह गोपणीय रखा गया था. वहीं कंपनी मामलों के सचिव शक्तिकांत दास का नोटबंदी के फैसले पर कहना है कि यह इस फैसले के पीछे की प्रक्रिया पर नहीं बल्कि इस फैसले से मिलने वाले फल पर ध्यान देने की जरूरत है.
बता दें कि नोटबंदी के इस फैसले से देश भर में लोग नकदी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं और बैंक व एटीएम के बाहर अब भी लंबी कतारें बरकरार हैं. इसे लेकर विपक्षी पार्टियां सरकार पर सही ढंग से तैयारी ना करने का आरोप लगा रहे हैं, तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इसे आर्थिक लूट तक करार दिया है.