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ट्रिपल तलाक पर बैन से मुस्लिम महिलाओं को कोई फायदे नहीं: जमात-ए-इस्लामी हिन्द

जमात-ए-इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने की प्रभावकारिता पर आशंका जताई है. उमरी के मुताबिक, ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाने से मुस्लिम महिलाओं को कोई फायदा नहीं होने वाला, बल्कि इसके उलट परिणाम निकलेंगे.

प्रतीकात्मक प्रतीकात्मक
अहमद अजीम
  • नई दिल्ली,
  • 12 मई 2017,
  • अपडेटेड 3:17 AM IST

जमात-ए-इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष और अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी ने तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाने की प्रभावकारिता पर आशंका जताई है. उमरी के मुताबिक, ट्रिपल तलाक पर प्रतिबंध लगाने से मुस्लिम महिलाओं को कोई फायदा नहीं होने वाला, बल्कि इसके उलट परिणाम निकलेंगे. उनके मुताबिक, अगर पति अपनी पत्नि को परेशान करना चाहे, तो वह ऐसा करता रहेगा और पत्नियों को उनके अधिकारों से वंचित रख सकता है.

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उमरी कहते हैं, ट्रिपल तलाक पर पाबंदी लगाना कई प्रकार की जटिल समस्याओं को जन्म देगा और इससे महिलाओं की मर्यादा और सम्मान को अघात पहुंचेगा. उमरी ने अपनी बात दोहराते हुए कहा कि तीन तलाक को लेकर जो मुस्लिम विरोधी लहर बनाई जा रही है, वह निराधार है. मुसलमानों में तलाक का जो अनुपात है, वह दूसरे धर्मों के मानने वालों से कई गुना कम है.

वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ जागरूकता अभियान के राष्ट्रीय संयोजक मोहम्मद जफर ने बताया कि उनका अभियान बहुत ही कामयाब रहा और इसके परिणाम भी सामने आने शुरू हो गए हैं. इस अभियान का मकसद मुसलमानों को उनके शरई कानूनों से जागरूक करने के साथ-साथ गैर मुस्लिमों में इस्लाम और इस्लामी पारिवारिक कानूनों के बारे में फैली ग़लतफहमियां को दूर करना था. इस अभियान के बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आए हैं.

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शीर्ष मुस्लिम धार्मिक उलेमा ने इस अभियान का समर्थन किया है. इस अभियान के प्रमुख विशेषताएं ये थी कि ज्यादातर प्रेस कांफ्रेंस और शरई सम्मेलनों को जमात-ए-इस्लामी हिन्द की महिला विंग की अधिकारियों ने संबोधित किया. जमात के हजारों कार्यकर्ताओं ने कई छोटे-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए. मुसलमानों को तलाक का सही तरीका समझाने के लिए जुमे (शुक्रवार) की नामाज में तक़रीरें की गईं. मुसलमानों को शादी में फिजूलखर्ची से बचने, दहेज न लेने-देने के साथ विरासत में अपनी बहन-बेटियों को हिस्सेदारी (दुख्त़री) देने के लिए प्रोत्साहित किया गया. उलेमाओं और वकीलों के साथ बैठकें आयोजित की गईं. इस अभियान के दौरान कस्बों में परामर्श केंद्र शरई पंचायतों का गठन किया गया. इस अभियान के जरिये 14.5 करोड़ लोगों तक पहुंचने के लक्ष्य को प्राप्त किया गया.

जमात-ए-इस्लामी हिन्द के राष्ट्रीय महासचिव मुहम्मद सलीम इंजीनियर भी मीडिया से मुखातिब हुए और देश में बढ़ती अराजकता पर उन्होंने चिंता व्यक्त की. इसके साथ ही उन्होंने निर्भया मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया.

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