
मध्य प्रदेश के उमरिया जिले की बांधवगढ़ विधानसभा सीट 2003 के पहले उमरिया के नाम से जानी जाती थी. मगर 2006 में परिसीमन के दौरान बांधवगढ़ विधानसभा सीट का गठन हुआ था. इस सीट पर अब तक दो बार 2008 और 2013 में चुनाव हुए हैं जबकि अप्रैल 2017 में उप चुनाव हुए थे. इन तीनों चुनावों में यहां पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जीत हासिल करने में सफल रही है.
दिलचस्प यह है कि बांधवगढ़ विधानसभा के लिए उपचुनावों से पहले भाजपा के ज्ञान सिंह ने दोनों बार कांग्रेस प्रत्याशी को हराया. 2013 में ज्ञान सिंह ने 18 हजार 6 सौ 45 मतों से कांग्रेस के प्यारेलाल बैगा को हराया था. 2008 के विधानसभा चुनाव में ज्ञान सिंह कांग्रेस की सावित्री सिंह धुर्वे को हरा चुके हैं. मगर शहडोल लोकसभा क्षेत्र से ज्ञान सिंह के निर्वाचित होने के बाद यह सीट खाली हो गई थी. उपचुनाव में ज्ञान सिंह के बेटे शिवनारायण सिंह ने सावित्री सिंह को 25,476 मतों से शिकस्त देकर भाजपा के लिए जीत की हैट्रिक जमाई.
कांग्रेस के पुराने गढ़ पर भाजपा का कब्जा
परिसीमन से पहले यह सीट कांग्रेस का गढ़ मानी जाती थी, 2006 के परिसीमन में क्षेत्र में थोड़ा बहुत बदलाव करते हुए इस विधानसभा का नाम बांधवगढ़ कर दिया गया. तब से ज्ञान सिंह 2008 और 2013 के चुनावों में लगातार जीतते रहे और 2017 के उपचुनाव में उनके बेटे शिवनारायण सिंह ने जीत दर्ज की. कभी कांग्रेस का गढ़ रही बांधवगढ़ विधानसभा अब भाजपा के कब्जे में है. अब एक बार फिर विधानसभा चुनाव नजदीक हैं तो दोनों दल सक्रिय हो गए हैं. कांग्रेस नेता सावित्री सिंह की आदिवासी वोट बैंक पर तगड़ी पकड़ मानी जाती है. स्थानीय नेताओं का भी उन्हें पूरा समर्थन हासिल है.इस बार भी सावित्री सिंह कांग्रेस की उम्मीदवार मानी जा रही हैं, लेकिन सवाल है कि क्या वह भाजपा की हैड्रिक को यहीं रोक देंगी?
बांधवगढ़ विधानसभा कई समस्याओं से घिरी नजर आती है. बांधवगढ़ में सबसे बड़ी समस्या है बेरोजगारी. क्योंकि उद्योग और रोजगार के संसाधनों की कमी है. कहने को तो कोयला खदानें हैं लेकिन उसमें भी स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं मिल पाता तो वहीं मनरेगा का भुगतान भी नहीं हो रहा है. नतीजतन लोग पलायन के लिए मजबूर हैं.
वरुण शैलेश