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बमकांड के बाद जेलर को भगत सिंह की चिट्ठी: 'वजन 6 पौंड घटा, मुझे विशेष खाना दो'

8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली असेंबली में बम फेंके. दोनों ने बम फेंकने के बाद नारेबाजी की, पर्चे फेंके लेकिन वहां से भागे नहीं बल्कि वहां पर ही डटे रहे ताकि पुलिस गिरफ्तार कर ले.

युवा आज भी हैं भगत सिंह के फैन (फोटो: IANS) युवा आज भी हैं भगत सिंह के फैन (फोटो: IANS)
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 20 सितंबर 2019,
  • अपडेटेड 10:25 AM IST

  • 28 सितंबर, 1907 को हुआ था भगत सिंह का जन्म
  • जेल में रहकर लिखे थे कई खत-लेख
  • बम कांड के बाद हुई थी उम्रकैद

28 सितंबर को शहीद-ए-आजम भगत सिंह की जयंती है. इस मौके पर aajtak.in लगातार भगत सिंह से जुड़े हुए कुछ किस्से और उनके द्वारा लिखे खत-लेख आपके सामने ला रहा है. इसी कड़ी में आज पढ़िए, भगत सिंह का जेलर को वो खत जिसमें उन्होंने भूख हड़ताल की जानकारी दी थी.

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8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली असेंबली में बम फेंके. दोनों ने बम फेंकने के बाद नारेबाजी की, पर्चे फेंके लेकिन वहां से भागे नहीं बल्कि वहां पर ही डटे रहे ताकि पुलिस गिरफ्तार कर ले.

और ऐसा ही हुआ, दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया, कोर्ट में पेशी हुई. दोनों ने अदालत में जोरदार दलीलें दीं, जिनकी जज ने भी तारीफ की थी. लेकिन सज़ा दोनों को फिर भी मिली और उम्रकैद का ऐलान हुआ.

सज़ा के ऐलान के बाद भगत सिंह को दिल्ली से पंजाब की मियांवाली जेल, बटुकेश्वर दत्त को लाहौर जेल ले जाया गया. लेकिन दोनों ने देखा कि राजनीतिक कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जा रहा है, इसके विरोध में भगत सिंह ने आवाज़ उठाई.

इसी मसले पर भगत सिंह ने 17 जून, 1929 को मियांवाली जेल के जेलर को चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने अपनी मांगें बताईं. भगत सिंह की चिट्ठी इस प्रकार है:

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इंस्पेक्टर जनरल, जेल्स, पंजाब, लाहौर!

असेंबली बमकांड दिल्ली के मामले में मुझे उम्रकैद की सज़ा मिली है, यानी मैं राजनीतिक बंदी हूं. दिल्ली जेल में मुझे विशेष भोजन मिलता था, लेकिन यहां सामान्य कैदी जैसा व्यवहार हो रहा है. इसलिए मैं 15 जून से भूख हड़ताल पर हूं.

पिछले कुछ दिनों में वजन दिल्ली जेल के मुकाबले 6 पौंड घट गया है, इसलिए मुझे हर हाल में राजनीतिक कैदी के नाते विशेष खाना मिलना चाहिए.

मेरी मांगें हैं कि मुझे अच्छा भोजन (दूध-घी-दाल-चावल), मशक्कत ना कराई जाए, स्नान की सुविधा (तेल-हजामत सहित), साहित्य (किताबें और अखबार) मिलें. मुझे उम्मीद है, आप इनपर जल्द विचारकर फैसला लेंगे.

भगत सिंह,

आजीवन बंदी न. 117,

मियांवाली जेल. 17 जून, 1929

इसे पढ़ें: 11 साल के भगत सिंह की चिट्ठी: ‘दादाजी, संस्कृत में 150 में 110 नंबर मिले’

(नोट: भगत सिंह ने ये खत उर्दू भाषा में लिखा था. इस खत को राहुल फाउंडेशन की किताब ‘भगत सिंह और उनके साथियों के संपूर्ण उपलब्ध दस्तावेज’ ने हिंदी में छापा है.) भगत सिंह से जुड़े कुछ ऐसे ही दिलचस्प किस्सों को आप अगले कुछ दिनों में aajtak.in पर पढ़ सकते हैं.

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