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कैसे मायावती की राजनीति के लिए चुनौती है भीम आर्मी?

भीम आर्मी के समर्थन में जंतर मंतर पर हुआ विरोध प्रदर्शन राज्य और केंद्र सरकारों के प्रति दलितों के मन में गुस्से का प्रतीक तो था ही, साथ ही इसने बहुजनों की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती को भी संभवत: चिंतित कर गया.

भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रेशखर आजाद और बसपा सुप्रीमो मायावती भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रेशखर आजाद और बसपा सुप्रीमो मायावती
साद बिन उमर
  • नई दिल्ली,
  • 24 मई 2017,
  • अपडेटेड 11:20 AM IST

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में ठाकुरों और दलितों के बीच संघर्ष गंभीर रूप लेता दिख रहा है. यहां भड़की ताजा हिंसा में अब तक एक शख्स की मौत हो गई, जबकि करीब गंभीर 10-12 घायल हुए हैं.

जिले के शब्बीरपुर गांव में यह हिंसा बसपा सुप्रीमो मायावती के दौरे के ठीक बाद भड़की. प्राप्त जानकारी के मुताबिक, मायावती की रैली से लौट रहे लोगों पर हमला हुआ, जिसके बाद इलाके में महीने भर के अंदर तीसरी बार हिंसा भड़क उठी.

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सहारनपुर में भड़की हिंसा के बीच वहां भीम आर्मी और उसके प्रमुख चंद्रशेखर आजाद 'रावण' दलितों की नई आवाज बन कर उभरी है. पिछले दिनों दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान चंद्रशेखर को भारी समर्थन मिलता दिखा. इस रैली में उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार, हरियाणा, झारखंड और पंजाब जैसे राज्यों से भी बड़ी संख्या में दलित यहां पहुंचे थे.

कुछ अनुमानों के मुताबिक, इस विरोध प्रदर्शन में करीब 50,000 लोग शामिल हुए थे. भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और गुजरात के गिजणेश मवानी के नेतृत्व में दलितों के बीच काफी लंबे अर्से बाद इस तरह की एकता देखी गई. भीम आर्मी के समर्थन में जंतर मंतर पर हुआ विरोध प्रदर्शन राज्य और केंद्र सरकारों के प्रति दलितों के मन में गुस्से का प्रतीक तो था ही, साथ ही इसने बहुजनों की राजनीति करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती को भी संभवत: चिंतित कर गया. जानकारों के मुताबिक, दलित के बीच अपनी जमीन खिसकती देख ही मायावती ने करीब एक महीने बाद सहारनपुर जाने का फैसला किया.

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दलितों के बीच मायावती की लोकप्रियता में काफी गिरावट दिखी है और उनका कोर दलित वोटबैंक भी छिटका है. 2014 के लोकसभा चुनाव में जहां उनकी पार्टी बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिल पाई थी, तो वहीं यूपी के हालिया विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 403 में से महज 19 सीटों से ही संतोष करना पड़ा. जानकारों की मानें तो युवा दलितों के एक बड़े तबके का मायावती से मोहभंग होता दिखा है. इन युवाओं के बीच भीम आर्मी की बढ़ती लोकप्रियता ने मायावती के माथे पर शिकन जरूर ला दी है.

दरअसल शहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में 5 मई को दलितों के घर जलाए जाने के विरोध में 9 मई को भीम आर्मी ने दलित महापंचायत बुलाई थी. इसे लेकर पुलिस ने चंद्रशेखर पर कथित रूप से हिंसा भड़काने को लेकर केस किया था. इसके बाद ही वह छिपते फिर रहे थे और फिर वह सार्वजनिक रूप से जंतर मंतर पर देखे गए, जहां समर्थकों की भारी भीड़ के बीच उन्होंने खुद समर्पण का ऐलान किया था.

आजाद ने 2015 में भीम आर्मी एकता मिशन की स्थापता की थी और देखते ही देखते वे इलाके में खासा प्रसिद्ध हो गए. पेशे के वकील आजाद ने देहरादून से कानून की पढ़ाई और खुद को 'रावण' और 'द ग्रेट चमार' की उपाधि से पुकारा जाना पसंद करते हैं. उनका दावा है कि उनकी संस्था में यूपी, हरियाणा और राजस्थान सहित सात राज्यों में कुल 40,000 सदस्य हैं.

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