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भीमा-कोरेगांव: जारी रहेगी वामपंथी विचारकों की नजरबंदी, SC का दखल देने से इनकार

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बहुचर्चित भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया है.

वामपंथी विचारक अरुण फेरेरा (पीटीआई फोटो) वामपंथी विचारक अरुण फेरेरा (पीटीआई फोटो)
मोहित ग्रोवर/संजय शर्मा/अशोक सिंघल
  • नई दिल्ली,
  • 28 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 1:39 PM IST

भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया. कोर्ट ने इस मामले में दखल देने से मना कर दिया है, साथ ही पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने को कहा गया है. कोर्ट के इस फैसले के बाद पांचों कार्यकर्ता सेशंस कोर्ट में जमानत की अपील दायर कर सकते हैं. सुधा भारद्वाज और वरवरा राव के बेटे जल्द ही अपील दायर कर सकते हैं.

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पांचों कार्यकर्ता की तत्काल रिहाई और SIT जांच की मांग को लेकर याचिका दायर की गई थी. बता दें कि पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं.

फैसला पढ़ते हुए जस्टिस खानविलकर ने कहा कि आरोपी ये तय नहीं कर सकते हैं कि कौन-सी एजेंसी उनकी जांच करे. तीन में से दो जजों ने इस मामले में दखल देने से इनकार कर दिया है साथ ही उन्होंने SIT का गठन करने से भी मना कर दिया है.

कोर्ट ने कहा है कि पुणे पुलिस अपनी जांच आगे बढ़ा सकती है. पीठ ने कहा है कि ये मामला राजनीतिक मतभेद का नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ता की नजरबंदी को 4 हफ्ते के लिए बढ़ा दिया है.

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हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ ने CJI दीपक मिश्रा और जस्टिस खानविलकर से अलग राय रखी. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि विपक्ष की आवाज को सिर्फ इसलिए नहीं दबाया जा सकता है क्योंकि वो आपसे सहमत नहीं है. उन्होंने कहा कि इस मामले में SIT बननी चाहिए थी.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था. इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी-अपनी दलीलें रखीं थी.

पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस को मामले में चल रही जांच से संबंधित अपनी केस डायरी पेश करने के लिए कहा था. रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों के लिए वकालत करने वाले माजा दारुवाला की ओर से दायर याचिका में इन गिरफ्तारियों के संदर्भ में स्वतंत्र जांच और कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी.

इस मसले पर 'आजतक' संवाददाता अशोक सिंघल से बातचीत में जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कहा कि वो अर्बन नक्सल्स शब्द की व्याख्या के खिलाफ हैं और इसे प्रचारित-प्रसारित करना ठीक नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने अगर ट्रायल को जरूरी माना है तो ये उन 4-5 लोगों के लिए झटका है, अदालतों के मामले में दखल का हक किसी को नहीं है.

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बीजेपी के बयान पर केसी त्यागी का कहना है कि बीजेपी के विचार और वामपंथी बुद्धिजीवियों के विचारों में जमीन और आसमान का फर्क है. वामपंथी भी उनको अपना वर्ग शत्रु मानते हैं. वैचारिक तौर पर संघ परिवार से जुड़े हुए लोग उनको अपना मुख्य दुश्मन मानते हैं. गुरु गोलवलकर ने तो एक पुस्तक में कम्युनिस्टों और मुसलमानों को एक जैसा ट्रीट करते हुए राष्ट्रद्रोही तक कह दिया था.

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