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बिहार चुनाव से पहले कोरोना-बाढ़, आपदा को अवसर में बदल पाएंगे नीतीश?

बिहार में नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के साथ हाथ मिलाने के बाद राजनीतिक समीकरण अभी तक भले ही उनके पक्ष में दिख रहा हो, लेकिन अब बाढ़-कोरोना आपदा ने उनकी टेंशन बढ़ा दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि नीतीश कुमार क्या इस प्राकृतिक आपदा को चुनावी अवसर में बदल पाएंगे?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2020,
  • अपडेटेड 2:48 PM IST

  • बिहार में कोरोना के करीब 29 हजार मामले
  • बाढ़ से आधा बिहार तबाह और लोग परेशान

विधानसभा चुनाव से पहले बिहार दोहरी चुनौतियों से जूझ रहा है. एक तरफ कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरों से बिहार एक नया हॉटस्पॉट बनता जा रहा है तो दूसरी तरफ बाढ़ ने लाखों लोगों की जिंदगी मुहाल कर दी है. ऐसे में नीतीश कुमार के लिए राजनीतिक समीकरण अभी तक भले ही उनके पक्ष में दिख रहा हो, लेकिन अब इन बाढ़-कोरोना आपदा ने उनकी टेंशन बढ़ा दी है. ऐसे में सवाल उठता है कि नीतीश कुमार क्या इस प्राकृतिक आपदा को चुनावी अवसर में बदल पाएंगे?

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कोरोना वायरस ने भले ही बिहार में देरी से अपने पैर पसारे हों, लेकिन अब काफी तेजी से मामले बढ़े हैं और यह आंकड़ा 29 हजार के करीब पहुंच गया है जबकि 217 लोगों की मौत हो गई है. हालत यह है कि लोगों को इलाज के लिए दर-दर भटकना पड़ रहा है. बिहार के कई अस्पतालों से डराने वाली तस्वीर सामने आई है, जहां पर मरीजों को सही इलाज नहीं मिल रहा है. डॉक्टरों को परेशानी हो रही है. केंद्रीय टीम ने भी बिहार से टेस्टिंग बढ़ाने को कहा है.

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वहीं, हर साल की तरह इस साल भी बाढ़ बिहार पर अपना कहर बरपा रही है. उत्तरी और पूर्वी बिहार में हर साल की तरह बाढ़ एक बड़ी आबादी के लिए परेशानी का सबब बन गई है. बिहार के 38 जिलों में से करीब 14 जिलों की 50 लाख आबादी पर इस वक्त बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. कोसी, गंडक और बागमती नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही है. नेपाल के जल ग्रहण क्षेत्रों और बिहार में लगातार हो रही बारिश तबाही की वजह बनती जा रही है.

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कोरोना और बाढ़ के कहर को लेकर विपक्ष नीतीश सरकार को घेरने में जुटा है. आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि नीतीश सरकार को लोगों की नहीं, वोट की चिंता है. पूरा प्रदेश बाढ़ और कोरोना से परेशान हैं जबकि पूरी सरकार चुनावी माहौल बनाने में व्यस्त है. इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि नीतीश सरकार लाशों की ढेर पर चुनाव कराना क्‍यों चाहती है? हालांकि, नीतीश कुमार बाढ़ क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं और लगातार बैठकें भी कर रहे हैं. सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि वह हर तरह से कोरोना के खिलाफ जंग के लिए प्रतिबद्ध है और तैयार है.

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बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संजय सिंह ने कहा कि बिहार पहले से ही स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में सबसे निचले पायदान पर है. ऐसे में कोरोना संक्रमण के प्रकोप ने और भी हालत खराब कर दी है. एक तरह बाढ़ और दूसरी तरफ कोरोना की मार से बिहार की आम जनता असहाय अवस्था में है. सरकार के दावे जमीनी स्तर पर नजर नहीं आ रहे है. बाढ़ ने हर वर्ग के लोगों को तबाह किया है तो कोरोना की मार से मिडिल क्लास परेशान है. यही नीतीश कुमार और बीजेपी का वोटर है, जो पूरी तरह से निराश है. ऐसे में अगर इस तबके की नाराजगी वोटों में तब्दील होती है तो निश्चित तौर पर नीतीश कुमार के लिए परेशानी का सबब बन सकता है.

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संजय सिंह कहते हैं कि नीतीश कुमार जब सत्ता में आए थे तो उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सड़क को बेहतर बनाने का काम किया था. बिहार के ब्लाक से लेकर जिला अस्पतालों में डाक्टर बैठने लगे थे और लोगों को दवाएं मिलने लगी थीं. लेकिन आज तीनों कामों की हालत यह है कि स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था लचर हो गई है अस्पतालों की हालत बिगड़ गई है और सड़के चलने लायक नहीं है. ऐसे में नीतीश की ताकत ही उनकी चुनौती बन गई है.

हालांकि, संजय सिंह कहते हैं कि बिहार की इस कदर हालत खराब होने के बाद भी लोगों के सामने कोई बेहतर विकल्प नजर नहीं आ रहा है. विपक्ष इस बात को उठा तो रहा है, लेकिन चुनावी मुद्दे में तब्दील नहीं कर पा रहा है. तेजस्वी यादव बाढ़ क्षेत्र का दौरा कर सरकार को घेरने की कवायद कर रहे हैं लेकिन आरजेडी की छवि को अभी तक बदल नहीं पाए हैं. बिहार में अब यादव-मुस्लिम के दम पर सत्ता नहीं हासिल की जा सकती है जबतक कि आप अन्य दूसरे वोटों को अपने साथ नहीं जोड़ लेते हैं. ऐसे में विपक्ष के पास राजनीतिक मौका है, लेकिन कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसके दम पर नीतीश कुमार को मात दे सकें.

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