
बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. महागठबंधन और एनडीए दोनों खेमों में शामिल छोटे दल सीटों के लिए कसमसा रहे हैं. महागठबंधन के सहयोगी हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख जीतन राम मांझी और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ज्यादा से ज्यादा सीटों के लिए बेचैन हैं. वहीं, एनडीए का तीसरा घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी अपनी बड़ी भूमिका चाहती है. यही वजह है कि बिहार के दोनों गठबंधनों में सीट शेयरिंग को लेकर सियासी संग्राम छिड़ गया है.
एनडीए से क्या अलग होगी एलजेपी?
एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान ने कार्यकर्ताओं को कहा, 'बिहार में गठबंधन का स्वरूप बदल रहा है और पार्टी कार्यकर्ताओं को हर परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए. एलजेपी को बिहार चुनाव को लेकर अपनी तैयारी पूरी रखनी चाहिए और अगर जरूरत पड़ी तो अकेले भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए.' चिराग पासवान पिछले कुछ दिनों से नीतीश सरकार के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं. ऐसे में एनडीए कुनबे को सहेजकर रखने के लिए खुद बीजेपी आगे आई है. रविवार को देर शाम बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र सिंह यादव ने चिराग पासवान से जाकर मुलाकात और डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की.
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क्या है चिराग की मांग
बिहार में एनडीए का चेहरा नीतीश कुमार को लेकर सभी सहमत हैं, लेकिन सीट शेयरिंग को लेकर पेच फंसा हुआ है. लोकसभा चुनाव में एलजेपी को बिहार की 40 में से 6 सीटें दी गई थी. इसके अलावा रामविलास पासवान को बीजेपी ने अपने कोटे से राज्यसभा भेजा है. इसी पैटर्न के तहत एलजेपी विधानसभा चुनाव में करीब 43 सीटों पर दावेदारी कर रही है. वहीं, बिहार की 243 सीटों में से बीजेपी-जेडीयू 105-105 सीटों पर चुनाव लड़ने का मन बना रही है और शेष 33 सीटें एलजेपी को देना चाहती है, जिस पर चिराग पासवान राजी नहीं है.
बता दें कि 2015 के चुनाव में एलजेपी ने 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद एलजेपी को पिछली बार की तरह तवज्जो नहीं मिल पा रही है. इसीलिए चिराग पासवान चिंतित हैं. एलजेपी 2005 के विधान सभा चुनाव का उदाहरण पेश कर रही. एलजेपी ने बिना तालमेल के 178 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें 29 पर जीत मिली और उसे 12.62 फीसदी वोट मिले थे. इसी आधार पर वो खास तवज्जो चाहते हैं.
मांझी की ज्यादा सीटों पर डिमांड
महागठबंधन में शामिल जीतन राम मांझी अपनी पार्टी के राजनीतिक भविष्य को लेकर बेचैन नजर आ रहे हैं. मांझी 2015 के विधानसभा चुनाव में एनडीए के साथ मिलकर 21 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इस बार आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन का हिस्सा हैं और पिछली बार से ज्यादा सीटों की डिमांड रख रहे हैं, लेकिन आरजेडी इस पर राजी नहीं है. आरजेडी मांझी को महज 10 से 15 सीटें ही देने का मन बना रही है, जिससे लेकर वो परेशान हैं. इसीलिए वो महागठबंधन से अलग होने का अल्टीमेटम जे रहे हैं, लेकिन नीतीश कुमार उन्हें जेडीयू से तालमेल के बदले पार्टी के विलय की शर्त रख रहे हैं. इस तरह से मांझी मझधार में फंसे हुए हैं.
उपेंद्र कुशवाहा भी सीटों के लिए बेचैन
आरएलएसपी के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा थे. 2015 में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी ने 23 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे. इस बार वो महागठबंधन का हिस्सा हैं और वो इस बार करीब 30 सीटों पर दावेदारी कर रहे हैं, लेकिन आरजेडी उन्हें महज 20 सीटें ही देने को राजी है. इस पर कुशवाहा तैयार नहीं है और वो कांग्रेस के जरिए आरजेडी पर दबाव बनाना चाहते हैं. ऐसे में कांग्रेस ने कुशवाहा को अपनी पार्टी आरएलएसपी को विलय का प्रस्ताव दे रखा है, जिस पर उपेंद्र कुशवाहा इस मनन कर रहे हैं.
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दरअसल, महागठबंधन में आरजेडी सबसे बड़े दल के रूप में है. ऐसे में तेजस्वी यादव ने बिहार की कुल 243 सीटों में से कम से कम 150 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है. इसके अलावा कांग्रेस ने भी 50 से ज्यादा सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारने का मन बनाया है. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी बिहार में महागठबंधन के तहत 12 सीटों पर लड़ने का ऐलान कर दिया है. इस तरह से आरएलएसपी और जीतनराम मांझी के लिए बहुत ज्यादा सीटों का विकल्प नहीं बचता है. यही वजह है कि छोटे सहयोगी अपने सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए बेताब नजर आ रहे हैं.