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बिहारः दोबारा परीक्षा देकर उम्र कम कराने वालों की खैर नहीं

बोर्ड को ये फैसला गणेश की वजह से लेना पड़ा, जिसने उम्र कम कराने के लिए 10वीं की परीक्षा दोबारा दी और इंटर में टॉप कर गया.

बिहार के CM नीतीश कुमार बिहार के CM नीतीश कुमार
सुजीत झा
  • पटना,
  • 16 जून 2017,
  • अपडेटेड 10:23 AM IST

फर्जी इंटर टॉपर गणेश कुमार की वजह से अब दोबारा परीक्षा देकर उम्र कम कराने वालों की खैर नहीं है. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति एक ऐसा ऐप बनवा रही है जिससे डबलिंग होने पर ऐप खुद ब खुद उन परीक्षार्थियों का नाम शार्ट लिस्ट कर लेगा, जिन्होंने अपनी उम्र कराने के लिए 10वीं की परीक्षा दोबारा दी है.

बोर्ड को ये फैसला गणेश की वजह से लेना पड़ा, जिसने उम्र कम कराने के लिए 10वीं की परीक्षा दोबारा दी और इंटर में टॉप कर गया. गणेश ने 1990 में बिहार बोर्ड से पहली बार मैट्रिक की परीक्षा पास की थी. उसके बाद दोबारा उसने 2015 में मैट्रिक की परीक्षा उम्र कम कराने के लिए पास की, ताकि वो सरकारी नौकरी पा सके.

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अपनी उम्र कम कराने के लिए गणेश जैसे हजारों लोग हैं जो मैट्रिक यानि 10वीं की परीक्षा दोबारा देते हैं. ऐसे उदाहरण आसपास भी मिलते हैं, लेकिन बोर्ड ने गणेश के रिजल्ट से सबक लेते हुए फैसला किया है, जिससे हजारों लोगों की नौकरी पर खतरा भी हो सकता है. बोर्ड अगले तीन महीनों के अंदर पिछले 30 सालों के रिकॉर्ड को इस ऐप में अपलोड करेगा.

अमूमन दोबारा परीक्षा देने वाले छात्र अपना नाम बदल लेते है. जैसे गणेश ने 1990 में गणेश राम के नाम से परीक्षा दी थी और 2015 में गणेश कुमार के नाम से, लेकिन रिकॉर्ड में पिता का नाम और पता एक ही होता है. ऐसे में ऐप के लिए ये पकड़ना कतई मुश्किल नहीं होगा. एक ही पिता के नाम और पता से दो-दो बार परीक्षा जिसने भी दी होगी वो सामने दिखने लगेंगे. यह ऐप ऐसे लोगों को शार्ट लिस्ट कर लेगा और फिर उनकी पहचान भी हो जायेगी.

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बोर्ड 1986 से लेकर अब तक के रिकॉर्ड को इस ऐप में अपलोड करेगा. यानि इन 30 वर्षों में जिसने भी मैट्रिक की परीक्षा दोबारा दी है उनका पता लग सकता है. बोर्ड के अध्यक्ष आनंद किशोर का कहना है कि जिसका भी पता चलेगा कि उन्होंने दोबारा मैट्रिक की परीक्षा दी है तो उनके सर्टिफिकेट को रद्द कर दिया जायेगा.

अगर 10वीं या मैट्रिक की परीक्षा का सर्टिफिकेट रद्द हो जाता है तो उस व्यक्ति की आगे की सारी डिग्रियां अपने आप अमान्य हो जायेगी. बोर्ड ने पहले ही मैट्रिक और इंटर के 2005 से 2016 तक के छात्रों की मार्क्स सीट को ऑनलाइन कर दिया है.

अब बोर्ड की तैयारी 96 से 2004 तक के डेटा को भी ऑनलाइन करने का है. बोर्ड का मानना है कि इसकी वजह से भी उम्र या नाम बदलकर दोबारा परीक्षा देने वाले छात्रों पर लगाम लग सकेगी.

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