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बिहार उपचुनाव में बीजेपी पर क्यों भारी पड़े जेल में बंद लालू, ये रहे कारण

बिहार उपचुनाव में बीजेपी-जदयू गठबंधन की हार से यह स्पष्ट हो गया है कि नीतीश से अलग होने के बावजूद लालू यादव कमजोर नहीं साबित होंगे. आरजेडी चीफ का जेल जाना उपचुनाव में आरजेडी के लिए प्लस प्वाइंट साबित हुआ है.

लालू यादव के साथ तेजस्वी यादव लालू यादव के साथ तेजस्वी यादव
नंदलाल शर्मा
  • नई दिल्ली ,
  • 14 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 5:10 PM IST

बिहार उपचुनाव नतीजों में राष्ट्रीय जनता दल ने अररिया लोकसभा सीट पर बड़ी बढ़त हासिल कर ली है और उसकी जीत लगभग तय मानी जा रही है. आरजेडी की ये जीत कई मायनों में खास है, क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी ने बिहार में बड़ी जीत हासिल की थी और मौजूदा समय में नीतीश के साथ आ जाने से माना जा रहा था कि बीजेपी और जदयू का गठबंधन आरजेडी पर भारी पड़ सकता है, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आरजेडी अपनी सीट बचाने में कामयाब रही है.

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यही नहीं आरजेडी ने जहानाबाद और भभुआ विधानसभा उपचुनाव में भी बीजेपी-जदयू गठबंधन को कड़ी चुनौती दी है. बीजेपी भभुआ विधानसभा सीट बचाने में कामयाब रही है. हालांकि जहानाबाद में बीजेपी-जदयू गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा है.

लालू को जेल, आरजेडी को मिली सहानुभूति

बिहार उपचुनाव में बीजेपी-जदयू गठबंधन की हार से यह स्पष्ट हो गया है कि नीतीश से अलग होने के बावजूद लालू यादव कमजोर नहीं साबित होंगे. आरजेडी चीफ का जेल जाना उपचुनाव में आरजेडी के लिए प्लस प्वाइंट साबित हुआ है. जनता ने लालू के प्रति समर्थन जताते हुए अररिया और जहानाबाद में जनमत आरजेडी के पक्ष में दिया है. अररिया और जहानाबाद की जीत बीजेपी-जदयू के लिए पचा पाना काफी मुश्किल होगा.

लालू के पक्ष में फिट बैठा मुस्लिम-यादव समीकरण

अररिया उपचुनाव का परिणाम नीतीश कुमार के लिए बड़ी चिंता का सबब है, क्योंकि यहां लालू के पक्ष में मुस्लिम-यादव समीकरण फिट बैठा है. अररिया में जहां 42 प्रतिशत मुस्लिम वोटर हैं, वहीं 10 प्रतिशत यादव हैं. इन दोनों वर्गों को लालू का वोट बैंक माना जाता है और फैसला आरजेडी के पक्ष में रहा है.

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नीतीश के लिए चिंता की बात ये है कि जब वे पहली पारी में एनडीए के साथ थे तो 2004 और 2009 के चुनावों में मुस्लिमों का वोट जेडीयू को मिलता था, और दोनों बार नीतीश की पार्टी के उम्मीदवार को जीत मिली थी. लेकिन 2014 और अब 2018 के उपचुनावों में मुस्लिम वोटर नीतीश से छिटका है. और जदयू के लिए ये ठीक संकेत नहीं है.

2014 के लोकसभा चुनावों में आरजेडी के मोहम्मद तस्लीमुद्दीन को जहां 4,07,978 वोट मिले थे, वहीं बीजेपी के प्रदीप सिंह को 2,61,474 वोट मिले. यहीं नहीं जेडीयू के विजय कुमार मंडल को 2,21,769 वोट मिले.

यही नहीं चुनावों से ठीक पहले सुखदेव पासवान ने बीजेपी से नाता तोड़कर आरजेडी का दामन थामा. इसके अलावा पूर्व सीएम जीतनराम मांझी ने भी एनडीए से अलग होकर आरजेडी के साथ दोस्ती की. ये समीकरण भी आरजेडी के पक्ष में एकदम फिट बैठे हैं.

बिहार में बेटों ने बचाई पिता की विरासत

अररिया में जहां दिवंगत मोहम्मद तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम मैदान में थे, तो जहानाबाद में सुदय यादव के सामने भी अपने वालिद दिवंगत मुंद्रिका यादव की विरासत बचाने की चुनौती थी. और दोनों लोग इस पर खरे उतरे हैं. सरफराज आलम पहले जेडीयू से विधायक थे. वे नीतीश कुमार का साथ छोड़कर अपने पिता की विरासत को संभालने के लिए आरजेडी से उतरे थे.

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जहानाबाद में आरजेडी उम्मीदवार कृष्ण मोहन उर्फ सुदय यादव ने जीत दर्ज कर ली है. उन्होंने जेडीयू के अभिराम शर्मा को 35036 वोटों से हराया है. ये सीट उनके पिता मुंद्रिका सिंह यादव के देहांत के बाद खाली हुई थी, जिसके बाद आरजेडी ने उन्हें टिकट दिया था. अररिया और जहानाबाद में बेटों ने पिता की विरासत को बचाने में कामयाबी पाई है. और यही बात तेजस्वी यादव के लिए भी सटीक बैठती है.  

बिहार में नीतीश का लालू को दगा देना

बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ लालू यादव और नीतीश कुमार एक महागठबंधन की शक्ल में जनता के दरवाजे पर पहुंचे थे. जनता ने महागठबंधन के पक्ष फैसला देते हुए आरजेडी-जदयू गठबंधन को शानदार बहुमत दिया, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लालू यादव को झटका देते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया. अररिया-जहानाबाद उपचुनाव परिणामों से यह भी माना जा सकता है कि जनता ने बीजेपी के साथ जाने के नीतीश कुमार के फैसले को स्वीकार नहीं किया है.

यही नहीं इस चुनाव परिणाम ने लालू यादव के उत्तराधिकारी के रूप में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में अररिया और जहानाबाद की जनता ने भरोसा जताया है. जेल में बंद लालू और मैदान में बीजेपी-जदयू से लड़ रहे तेजस्वी भविष्य में नीतीश और मोदी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं.

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हिंदी पट्टी के उपचुनावों में बीजेपी की हार

केंद्र की सत्ता में नरेंद्र मोदी सरकार को चार साल हो गए हैं. जाहिर है कि 2014 के चुनावों में नरेंद्र मोदी ने जनता से जितने वादे किए थे, उन पर केंद्र की सरकार खरी नहीं उतरी है. रोटी-रोजगार को लेकर जनता में आक्रोश का माहौल है. रोजगार के मुद्दे पर छात्र सड़कों पर हैं, तो अपने हक की मांग किसान भी कर रहे हैं. यही वजह है कि राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश तक के चुनावों में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और यूपी-बिहार के उपचुनावों में भी बीजेपी को हार झेलनी पड़ी है.

यूपी में जहां बीजेपी को सपा-बसपा गठबंधन के हाथों मुंह की खानी पड़ी है. वहीं बिहार में आरजेडी ने, तो मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस ने बीजेपी को धूल चटाई है. जाहिर है कि हिंदी पट्टी के राज्यों में लगातार मिल रही हार बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं है.

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