
बिहार की सत्त्ता परिवर्तन का असर झारखंड की राजनीति पर भी पड़ना तय है. दरअसल, नीतीश कुमार को केंद्र में रखकर बनाए जाने वाले महागठबंधन का अस्तित्व ही अब खतरे में पड़ गया है. ऐसे में झारखण्ड में बाबूलाल मरांडी के महागठबंधन के मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करने का मिशन भी फेल हो गया है. बदलते राजनीतिक माहौल में अब बाबूलाल मरांडी को नए सिरे से अपना रास्ता तय करना होगा.
नीतीश कुमार ने शराबबंदी को लेकर झारखंड में कई सभाएं की थी, जिसमें झारखंड विकास मोर्चा के सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी भी शामिल हुए थे. शराबबंदी लागू करने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार से बाहर पहला दौरा 10 मई 2016 को धनबाद में किया था. न्यू टाउन हॉल धनबाद में नारी संघर्ष मोर्चा के बैनर तले आयोजित कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने झारखंड में भी शराबबंदी की आवाज बुलंद की थी.
इस दौरान उन्होंने कहा था कि अगर रघुवर दास शराबबंदी लागू नहीं करते हैं, तो अगली बार बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बनेंगे और महिलाओं की मांग को पूरा करेंगे. बिहार की तर्ज पर झारखंड में महागठबंधन बनाने की योजना थी. सूबे के विपक्षी दलों ने जोरशोर के साथ बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की रणनीति बनाने में लग गए थे. उनकी इस मंशा के केंद्र में बाबूलाल मरांडी थे.
इस सिलसिले में नीतीश कुमार ने बीते एक साल के अंदर झारखंड में बाबूलाल के साथ आधा दर्जन से ज्यादा जनसभाएं की थी. वहीं आपसी सामंजस्य के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा, राजद और कांग्रेस सहित राज्य के अन्य छोटे दलों के साथ बातचीत भी चल रही थी, लेकिन नितीश के अचानक पाला बदलने से सारी परिस्थितियां बदल गयी है, जिसकी वजह से झारखण्ड में महागठबंधन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है.