
हम और आप चाहे जितनी बातें कर लें. पर सच यही है कि खाकी वर्दी के पीछे भी वही दिल होता है और वैसा ही दिमाग. आज हम आपको पुलिस के तीन चेहरे दिखाएंगे. कमाल के हैं ये तीनों चेहरे. एक एसपी साहब अपनी तरक्की पर इतने खुश होते हैं कि थाने के थाने को ही डांस पर लगा देते हैं. दूसरे एसपी साहब वो हैं जो अपनी विदाई के दौरान अपनी ही पत्नी से दोबारा शादी कर दुल्हन के साथ विदाई लेते हैं. और तीसरे का तो कहना ही क्या. एसपी से एसएसपी बन कर दिल्ली सीबीआई में जा रहे थे. मगर दिल्ली पहंचने से पहले ही उन्होंने जिस तरीके से जश्न मनाया. उसे देख कर छटे हुए गुंडे भी शर्मा जाएं.
एसपी साहब ने चढ़ाया घोड़ा. चेहरे पर ओढ़ी मुस्कान. नजरों में उठाया आसमान और हवा में मारा ठांय ठांय ठांय. तीन गोली चलने की आवाज आई और गाना गाया गया ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे. डीएम साहब ने आनंद बख्शी के लिखे गाने को सातवें सुर में उठाया तो किशोर कुमार और मन्ना डे की आत्माएं पुनर्जन्म के लिए छटपटा उठीं.
कटिहार के इन कंटीले दृश्यों पर रमेश सिप्पी सोच रहे थे कि ये बैजू बावरा बयालिस साल पहले पैदा नहीं हो सकता था. अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र तो कसम से इस जोड़ी को देखकर हाथ जोड़ देते. भाई तेरे भीतर तो राजकपूर और मोहम्मद रफी दोनों का गजब कॉम्बिनेशन है. यहां कटिहार में क्या कर रहा है.
हां तो सरजी ये मत सोचिए कि कहीं झुमरी तिलैया, झंझारपुर, मोकामा में किसी टाकुर साहब की कोई बारात निकली है. ये बहार तो सरकार के माथे पर नाचने की बहार है. प्रशासन को जूते के तल्ले के नीचे रौंदने की बहार है. सरकारी ताकत की पतंग उड़ाने की बहार है.
सोचिए एक जिले के एसपी-डीएम के हाथ में कितनी ताकत होती है. एसपी सरकारी बंदूक को ऑर्केस्ट्रा का बैंजो बना देता है. और डीएम किशोर कुमार को कटिहार के चौराहे पर पटक देता है. शहर के छंटे हुए मवाली एसपी-डीएम को देखकर अपनी शराफत पर लानतें भेजते हैं. कसम से ऐसे खुल्ले में तो हम भी नहीं नाचते बंदूक लहराके.
ये वाले जो गोली दागने वाले भाई साहब हैं ना. इनको भारत रत्न मिला है. और ये वाले हैं ना जो मन्ना डे के मामा इनको दादा साहब फाल्के. अरे, आप तो हंस रहे हैं. ऐसे मजाक नहीं उड़ाते. कटिहार का एसपी दिल्ली में सीबीआई का एसएसपी हो जाए तो अपने आपको भारत रत्न से कम नहीं समझता और नाम भी कितना पवित्र है, सिद्धार्थ मोहन जैन.
सिद्धार्थ मतलब गौतम बुद्ध. मोहन मतलब सांवले सलोने बांके बिहारी और फिर जैन. एकदम शुद्ध सात्विक शाकाहारी. ऊपर से डॉक्टर भी लगा है. पीएचडी टाइप की डिग्री भी है. तो जश्न के लिए और क्या बहाना चाहिए.
हां तो हम कह रहे थे एसपी साहब कटिहार से दिल्ली में सीबीआई में गिरने वाले हैं और ये मन्ना डे की आत्मा का बोझ लिए घूम रहे डीएम मिथिलेश मिश्र जेल के आईजी हो गए हैं. क्या कॉम्बिनेशन बना. मोहन और मिथिलेश एक साथ. मतलब इधर मथुरापति और उधर मिथिला नरेश. कलियुग के कालखंड में द्वापर और त्रेता की मिट्टी के मिलन का सुखद संयोग बना तो एसपी साहब की बंदूक से बारूद के फूल बरसने लगे.
एक गोली. दो गोली. तीन गोली. इसके बाद दो गोली द्रुत ताल में. फिर तीन गोली झप ताल में. और अवरोह पर दसवीं गोली पर खाली की मात्रा. नीतीश कुमार की दी हुई पिस्तौल एसडी बरमन का हारमोनियम हो गया था. मेरे साजन हैं उस पार, मैं मन मार, हूं इस पार, ओ मेरे माझी, ले चल पार.
दोनों के गले में माला देख रहे हैं आप. इसी को कहते हैं हीरा-मोती की जोड़ी. देखिए आप तो फिर हंसने लगे. प्रेमचंद पर पहुंचने को नहीं कहा था. सिप्पी की शोले पर ही रहिए. हां सिद्धार्थ मोहन जैन नहीं, डॉक्टर सिद्धार्थ मोहन जैन को सरकार ने आसमान में बटेर मारते देखा तो भड़क गई. कहा अब माला पहनकर बिहार में ही बैठिए. सीबीआई से ज्यादा आराम यहीं है.
जैन साहब का तो कांड हो गया. यहीं कटिहार में बैठकर कीर्तन करेंगे. जरा फिर से देखिए पिस्तौल का घोड़ा. फिर से सुनिए आसमान में धांय और आंख मूंदके याद कीजिए कुमार गंधर्व को. क्योंकि जैन साहब तो फुर्सत में निर्गुण का मजा लेने वाले हैं.