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बिहारः एक मंच पर आएंगे मांझी-ओवैसी, NRC-CAA के खिलाफ किशनगंज में रैली

AIMIM के बिहार यूथ प्रदेश अध्यक्ष आदिल हसन आजाद ने बताया कि बिहार के किशनगंज में NRC-CAA के खिलाफ 29 दिसंबर को होने वाली रैली को जीतन राम मांझी और असदुद्दीन ओवैसी संबोधित करेंगे.

असदुद्दीन ओवैसी और जीतन राम मांझी असदुद्दीन ओवैसी और जीतन राम मांझी
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 26 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 6:12 PM IST

  • बिहार में ओवैसी और मांझी एक मंच पर आएंगे नजर
  • 2020 विधानसभा चुनाव में क्या होगी दोनों दलों की दोस्ती

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) को लेकर बिहार की विपक्षी पार्टियां लगातार विरोध कर रही हैं. सीएए और एनआरसी के खिलाफ बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हम पार्टी प्रमुख जीतन राम मांझी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी एक साथ एक मंच साझा करेंगे.

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AIMIM के बिहार यूथ प्रदेश अध्यक्ष आदिल हसन आजाद ने बताया कि बिहार के किशनगंज में NRC-CAA के खिलाफ 29 दिसंबर को होने वाली रैली को जीतन राम मांझी और असदुद्दीन ओवैसी संबोधित करेंगे. इस दौरान सीएए कानून पास होने पर आईपीएस के पद से इस्तीफा देने वाले अब्दुल रहमान भी उपस्थित रहेंगे. AIMIM का दावा है कि करीब पचास हजार से ज्यादा भीड़ NRC-CAA के खिलाफ किशनगंज में एकजुट होगी.

ओवैसी NRC-CAA के खिलाफ सख्त रुख अख्तियार किए हुए हैं. ऐसे में ओवैसी के संग मांझी के साथ आने पर सियासी मायने भी निकाले जाने लगे हैं. बिहार में अगले साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं. मांझी महागठबंधन से नाराज चल रहे हैं. ऐसे में ओवैसी उन्हें एक मजबूत विकल्प के तौर पर नजर आ रहे हैं, क्योंकि हाल ही में किशनगंज विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में ओवैसी की पार्टी AIMIM जीतने में सफल रही है.

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'मांझी AIMIM के साथ आते हैं तो यह अच्छा फैसला होगा'

आदिल हसन आजाद ने कहा कि अभी जीतन राम मांझी के साथ गठबंधन पर AIMIM के साथ किसी तरह की चर्चा नहीं हुई है. हालांकि अगर मांझी आते हैं तो बिहार के लिए एक अच्छा फैसला होगा. उन्होंने कहा कि मांझी का अपना जनाधार है और नीतीश कुमार और लालू यादव की तरह उनका दोहरा चरित्र नहीं है. आजाद ने कहा कि मांझी ने मुख्यमंत्री रहते हुए मुस्लिम समाज के विकास के लिए कई काम किए हैं.

AIMIM  नेता ने बताया कि जीतन राम मांझी ने अपने आठ महीने के कार्यकाल में गया में हज भवन का निर्माण कराया और दलित लड़कियों की तरह मुस्लिम लड़कियों को भी 12वीं तक मुफ्त शिक्षा का फैसला लिया था. उन्होंने मदरसा के लिए अपना भवन, अपनी जमीन देने का फैसला किया था. बिहार में 2494 मदरसा थे, जिन्हें मांझी ने नियमित किया था. इसी तरह से शिया-सुन्नी वक्फ बोर्ड को ग्रांट भी दिया था.

दलित-मुस्लिम एकजुटता से बदलेगा मगध का समीकरण

बता दें कि जीतन राम मांझी का बिहार के मगध इलाके में अच्छा खासा जनाधार है. मगध इलाके में 28 विधानसभा सीटें आती है, जिनमें गया, जहानाबाद, औरंगाबाद और नवादा जिले की सीटें शामिल हैं. जीतन राम मांझी के मुसहर समाज का यहां की हर विधानसभा सीट पर 10 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट हैं. ऐसे में अगर दलित मुस्लिम एकजुट होते हैं तो मगध के सियासी समीकरण गड़बड़ा सकते हैं.

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बिहार के सीमांचल इलाके के तहत आने वाली 24 विधानसभा सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता काफी निर्णायक भूमिका में हैं. सीमांचल में कटिहार, अररिया, पुर्णिया और किशनगंज जिले आते हैं. यहां दलित-मुस्लिम मतों को एकजुट करने में औवैसी और मांझी कामयाब रहते हैं तो महागठबंधन के लिए सत्ता में वापसी की राह काफी कठिन हो जाएगी. बिहार में कुल 243 सीटें हैं, जिनमें से मगध और सीमांचल में 50 सीटें आती हैं.

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