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कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच बिहार विधान परिषद की 17 सीटें रिक्त होने के साथ ही उच्चसदन के सभापति का पद भी खाली हो गया है, जबकि उपसभापति का पद पहले से ही खाली है. बिहार सरकार ने कार्यकारी व्यवस्था के तहत किसी के नाम की सिफारिश नहीं की है, जिसके चलते फिलहाल सभापति की शक्तियां राज्यपाल के पास होंगी. बिहार के सियासी इतिहास में यह तीसरी बार हुआ है जब विधान परिषद के सभापति-उपसभापति दोनों पद खाली हैं.
दरअसल, बिहार के विधान परिषद के 17 सदस्यों का कार्यकाल बुधवार को यानी 6 मई को पूरा हुआ है. इसमें सदन के कार्यकारी सभापति हारूण रशीद की सदस्यता खत्म हुई है. वो 2015 में उपसभापति और 2017 में विधान परिषद के कार्यकारी सभापति चुने गए. बुधवार को हुई बिहार कैबिनेट की बैठक में विधान परिषद के कार्यकारी सभापति या उपसभापति के नाम की सिफारिश नहीं की गई है, जिसके चलते दोनों पद अब खाली हो गए हैं.
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बिहार विधान परिषद के इतिहास में यह तीसरा अवसर है जब सभापति और उपसभापति दोनों पद खाली रहेंगे. इससे पहले सात मई 1980 से 13 जून 1980 और 13 जनवरी 1985 से 17 जनवरी 1985 तक दोनों पद खाली रहे थे. कोरोना संकट और लॉकडाउन के बीच 6 मई को रिक्त हुई विधान परिषद के सभापति की सीट भी खाली रहेगी. ऐसी स्थिति में संविधान के मुताबिक दोनों पदों की शक्तियां राज्यपाल में निहित हो गई हैं.
माना जा रहा है कि अब बिहार की विधान परिषद की खाली हुई सीटों को भरने के बाद ही पूर्णकालिक सभापति का चयन होगा. इसके अलावा बुधवार को परिषद की 17 सीटें खाली हुईं, जिनमें विधानसभा कोटे की नौ और शिक्षक एवं स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से भरी जाने वाली आठ सीटें शामिल हैं. इसके अलावा 23 मई को 12 सीटें राज्यपाल के द्वारा मनोनीत होने वाली सीटें रिक्त हो रही हैं.
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बिहार में 23 मई तक 75 सदस्यीय विधान परिषद की 29 सीटें खाली हो जाएंगी. कोरोना के चलते बिहार के शिक्षक-स्नातक के विधान परिषद के चुनाव को अनिश्चितकाल के लिए चुनाव आयोग ने टाल दिया है. हालांकि, हालत सामान्य हो तो 25 दिनों के भीतर विधानसभा कोटा और शिक्षक-स्नातक क्षेत्र के विधान परिषद सदस्यों के चुनाव कराए जा सकते हैं. राज्यपाल के मनोनयन की 12 एमएलसी सीटें भी कैबिनेट की सिफारिश से भरी जा सकती हैं. ऐसे में देखना होगा कि बिहार के 29 एमएलसी सीटों पर चुनाव का ऐलान कब होता है.