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बिहार: बाहुबली अनंत के छूटे पसीने

परवीन अमानुल्ला की पहल पर बाहुबली अनंत सिंह को अवैध निर्माण को ढहाने के लिए मजबूर होना पड़ा. बिहार की सियासत में यह बड़ी घटना है.

अनंत सिंह अनंत सिंह
अमिताभ श्रीवास्‍तव
  • पटना,
  • 20 फरवरी 2013,
  • अपडेटेड 4:21 PM IST

हर क्रिया की उसके बराबर  प्रतिक्रिया भी होती है. खतरनाक डॉन से विधायक बन चुके अनंत सिंह ने यह सबक मुश्किल से ही सही लेकिन सीख लिया लगता है कि फिजिक्स का यह नियम जीवन में भी लागू होता है, खासकर नासमझी भरे कामों की प्रतिक्रिया के रूप में. हालांकि यह भी सच है कि कई बार संतुलन बनाने वाली ताकत सतह पर आने में कुछ समय लेती है.

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बिहार की राजनीति के कुख्यात बाबली के रूप में पहचाने जाते रहे 52 वर्षीय जेडी (यू) विधायक को इस हफ्ते पटना के पॉश पाटलिपुत्र कॉलोनी स्थित अपने होटल के सामने की उस खाली जमीन को छोडऩा पड़ा, जिस पर उन्होंने कथित तौर पर अतिक्रमण करने की कोशिश की थी. दिलचस्प बात यह है कि अपनी दबंग छवि से आतंक पैदा करने वाले और लोगों को झुकने पर मजबूर करने वाले अनंत सिंह को अपनी पार्टी की ही एक विधायक और समाज कल्याण मंत्री परवीन अमानुल्ला की वजह से पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा.

होटल के अधिकारियों ने बच्चों के खेल के लिए इस्तेमाल की जा रही पिच और बुजुर्गों की सैर के लिए इस्तेमाल होने वाली जगह की घेराबंदी कर ली थी. घेरी गई जगह को अस्थायी रूप से तो होटल की पार्किंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, लेकिन अगर अमानुल्ला ने समय से आगे आकर इस मुद्दे को उठाया न होता और अतिक्रमण का विरोध न किया होता तो इस जगह को होटल के साथ मिला लेने का अंदेशा था. अमानुल्ला बताती हैं, ''उन्होंने तो वहां एक दीवार बनानी भी शुरू कर दी थी. ''

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बेहद पॉश पाटलिपुत्र इलाके में 10,000 वर्गफुट से ज्यादा जगह में फैला अनंत सिंह का बुद्ध हेरिटेज होटल (जो करीब 8 करोड़ रु. का होगा) हाल ही में चालू हुआ है. पाटलिपुत्र सोसाइटी के नियमों के मुताबिक, इस इलाके में कोई व्यावसायिक गतिविधि नहीं चलाई जा सकती. लेकिन किसी में यह हिम्मत नहीं थी कि वह इस मामले में अनंत सिंह से सवाल करता. पिछले एक हफ्ते में यहां तगड़ा ड्रामा देखने को मिला. और इसका नतीजा जेडी (यू) के दो नेताओं में टकराव के रूप में सामने आया. आखिरकार बढ़ते दबाव की वजह से अनंत सिंह जगह छोडऩे को राजी हो गए.

हालांकि, आरटीआइ एक्टिविस्ट से मंत्री बनीं परवीन अमानुल्ला के लिए यह सब इतना आसान नहीं था. शुरू में जब अमानुल्ला ने होटल प्रबंधन से अतिक्रमण हटाने को कहा तो अनंत ङ्क्षसह ने उनकी बात को खारिज कर दिया, यहां तक कि उन्होंने इस बात से भी इनकार किया कि उन्होंने कोई अतिक्रमण किया है. इस पर अमानुल्ला ने पाटलिपुत्र हाउस कांस्ट्रक्शन सोसाइटी से संपर्क किया तो उसके कार्यवाहक अध्यक्ष बी.के. सिन्हा और दो निदेशकों—कुमकुम नारायण और मेजर एम.के. मुखर्जी ने इस्तीफा दे दिया ताकि ऐसे प्रभावशाली अतिक्रमणकारी पर कोई कार्रवाई करने से वे अपने को बचा लें. अब अमानुल्ला की बड़ी पहल की बारी थी. वे बिना किसी सुरक्षा के अनंत सिंह के होटल के सामने जा पहुंचीं और होटल के अधिकारियों को तुरंत अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए.

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बुधवार को होटल प्रबंधन को ढहाई गई चारदीवारी की टाइल्स एक मिनी वैन में रखते और वहां से हटाते देखा गया.

अनंत सिंह के खिलाफ अतिक्रमण विरोधी अभियान की अमानुल्ला की सफलता का असर कहीं बहुत आगे तक होगा क्योंकि इसने पूरे समाज को जगाकर यह यकीन दिला दिया है कि बाहुबलियों को चुनौती दी जा सकती है और उन्हें नियमों के पालन के लिए मजबूर किया जा सकता है. गौर करने वाली बात है कि पिछले कुछेक सालों में अनंत सिंह की संपत्ति कई गुना बढ़ गई है. 2005 में उन्होंने अपने चुनावी हलफनामे में 3.40 लाख रु. की मामूली संपत्ति होने की घोषणा की थी जो 2010 में बढ़कर 38.84 लाख रु. तक पहुंच गई. अब तक सार्वजनिक तौर पर ऐसी कोई जानकारी सामने नहीं आई है कि उनसे कभी इस दुर्लभ तरीके से और तत्काल अमीर बनने के बारे में कोई सवाल किया गया हो.

नीतीश कुमार के अच्छी सरकार के मॉडल के ठीक उलट सिंह अपने इलाके में समानांतर सरकार चलाने के लिए कुख्यात हैं. यह भी उतना ही सच है कि सत्ता ने शायद ही उन पर कभी लगाम लगाने की कोशिश की हो. जनवरी, 2008 में जब हत्या के एक मामले में पीडि़त परिवार ने आरोप लगाया कि इस अपराध की साजिश अनंत सिंह ने रची है, तब भी बिहार पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करना पसंद नहीं किया.

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सिंह को पिछली बार नवंबर, 2007 में गिरफ्तार किया गया था, जब उन्होंने एक टीवी पत्रकार को पीटा था. हालांकि, 10 दिन के अंदर ही वे न्यायिक हिरासत से बाहर आ गए थे. अजगर पालने जैसी अपनी सनक के लिए चर्चित ये विधायक महोदय पहले भी कई विवादों में फंस चुके हैं. मसलन, दूसरे की मर्सिडीज का मनमाने ढंग से दबावपूर्वक इस्तेमाल करना या फिर 2004 में एक कार्यक्रम के दौरान हवाई फायरिंग करना. वैसे चुनावी हलफनामे में सिंह खुद को पढ़ा-लिखा बताते हैं.

हालांकि देर से ही सही, लेकिन पिछले कुछ साल में वे विवादों से बचते दिख रहे हैं. फिर भी जेडी (यू) और सरकार में उनके असर को कोई चुनौती देने वाला नहीं है. दबंग विधायक के खिलाफ परवीन अमानुल्ला की सफलता मौजूदा राजनैतिक परिवेश में काफी महत्वपूर्ण है.

अब अमानुल्ला की बात. राजनीति में उतरने से पहले वे आरटीआइ आंदोलन की अगुवाई कर रही थीं और बिहार सूचना अधिकार मंच की संयोजक थीं. पूर्व सांसद और राजनयिक सैयद शहाबुद्दीन की बेटी और राज्य सरकार में मंत्री अमानुल्ला पूरे आत्मविश्वास के साथ कहती हैं, ''मुझे डराया नहीं जा सकता. मैं हमेशा गलत चीजों का विरोध करती रहेंगी. '' सरकार में उनके साथियों को उनसे थोड़ी प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि बिहार का माहौल और बेहतर हो सके.

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