
राष्ट्रीय जनता दल के स्थानापन्न प्रमुख की भूमिका में खरे उतर चुके हैं. पटना में तेजस्वी यादव के दफ्तर की दीवार पर एक फोटो फ्रेम टंगा है—उनके पिता लालू प्रसाद यादव प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ गहन बातचीत करते हुए दिख रहे हैं.
वे कहते हैं, ''ये तस्वीरें अतीत के ऐतिहासिक क्षणों की हैं.'' 28 वर्षीय तेजस्वी अब पहले से कहीं ज्यादा चतुर राजनेता बन चुके हैं. वे अपने पिता और बड़े भाई तेज प्रताप यादव की तुलना में भावनाओं को काबू में रखना सीख गए हैं और अपनी योग्यता साबित भी कर रहे हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि हाल में हुए उपचुनाव—अररिया (लोकसभा), और जहानाबाद और भभुआ (विधानसभा), बिहार में तेजस्वी की तरक्की का रास्ता तैयार कर सकते हैं. रांची की जेल में बंद लालू की गैर-मौजूदगी में भी तेजस्वी ने अररिया और जहानाबाद में पार्टी को शानदार सफलता दिलाई.
राजद के उम्मीदवार सरफराज आलम ने 55,000 वोटों से अररिया में जीत दर्ज की और सुजय यादव ने मध्य बिहार के जहानाबाद में 35,000 मतों से जीत हासिल की. इन चुनाव नतीजों ने राज्य में भाजपा-जद(यू) गठबंधन के अजेय होने धारणा खत्म कर दी.
तेजस्वी ने अररिया में 12 और जहानाबाद में चार बड़ी जनसभाएं की थीं. चुनाव प्रचार से पहले वे बिहार में घूम-घूमकर न्याय यात्राएं भी कर चुके थे, जिससे लालू के परंपरागत जनाधार को फिर से मजबूत करने में मदद मिली.
तेजस्वी महादलित नेता जीतनराम मांझी को भी अपनी तरफ खींचने में सफल रहे. मांझी ने उपचुनाव प्रचार के बीच में ही पाला बदल लिया था, जिससे जद (यू) के उम्मीदवार अभिराम शर्मा को जहानाबाद में हार का सामना करना पड़ा.
अपने पिता और परिवार के दूसरे सदस्यों के विपरीत तेजस्वी गंभीर मिजाज वाले राजनेता हैं, न कि लालू दरबार के उन नेताओं की तरह जो हंसी-ठिठोली के लिए जाने जाते रहे हैं. वे अपने 'चाचाओं'—नीतीश और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की तरह सोच-समझकर मुंह खोलने वाले व्यक्ति हैं. जानकार उनके इस गुण की तरफ इशारा करते हुए बताते हैं कि वे ठोस सबूतों के बिना किसी पर जल्दी आरोप नहीं लगाते हैं.
लेकिन विपक्ष के नेता के तौर पर तेजस्वी एक कठिन स्थिति में हैं. उनके और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ सीबीआइ और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से कई मामले चल रहे हैं. इसके बावजूद उनका प्रदर्शन काबिलेतारीफ रहा है. 2019 के आम चुनावों को लेकर भाजपा बिहार पर बहुत भरोसा कर रही है ताकि सत्ता में फिर से आ सके. ऐसे में सबकी नजरें तेजस्वी यादव पर रहेंगी.
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