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बिहार में वोटों का समीकरण, आरजेडी और जेडीयू ने खेला मुस्लिम दांव

बिहार विधान परिषद के लिए सभी दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है. मुस्लिम वोट बेंक को साधने के मद्देनजर आरजेडी और जेडीयू दोनों दलों ने अपने-अपने कोटे से मुस्लिम समुदाय के नेता को उच्चसदन में भेजने का फैसला किया है. ऐसे में देखना है कि विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद कौन बनता है.

जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार (फाइल फोटो) जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार (फाइल फोटो)
कुबूल अहमद
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2020,
  • अपडेटेड 2:08 PM IST

  • बिहार में एमएलसी के जरिए विधानसभा का समीकरण
  • आरजेडी और जेडीयू ने MLC चुनाव में खेला मुस्लिम दांव

बिहार विधान परिषद (एमएलसी) चुनाव के जरिए आगामी विधान सभा की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बिहार विधान परिषद के लिए सभी दलों ने अपने-अपने प्रत्याशी को मैदान में उतार दिया है. मुस्लिम वोट बेंक को साधने के मद्देनजर आरजेडी और जेडीयू दोनों दलों ने अपने-अपने कोटे से मुस्लिम समुदाय को उच्चसदन में भेजने का फैसला किया है. ऐसे में देखना है कि विधानसभा चुनाव में मुस्लिम मतदाताओं की पहली पसंद कौन बनता है.

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जेडीयू प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किया था. इसके चलते मुस्लिम वोटर से जेडीयू को खतरा नजर आ रहा था, ऐसे में नीतीश कुमार ने विधानसभा चुनाव से पहले अपने मुस्लिम वोटबैंक के समीकरण को साधने की कवायद शुरू कर दी है. इसी के तहत जेडीयू ने अपने तीन एमएलसी उम्मीदवारों में एक गुलाम गौस को टिकट दिया है. गुलाम गौस पहले आरजेडी में रहे हैं और ओबीसी मुस्लिम समुदाय से आते हैं.

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आरजेडी ने अपने परंपरागत मुस्लिम वोटबैंक को देखते हुए तीन एमएलसी में से एक मुस्लिम को उतारा है. आरजेडी ने फारुख शेख पर दांव लगाया है. फारुख शिवहर जिले से आते हैं और मुंबई में लंबा चौड़ा कारोबार है. फारुख शेख का आरजेडी से और राजनीति से सीधा वास्ता नहीं रहा है. वहीं, कांग्रेस ने अपनी एकलौती सीट से मुस्लिम समुदाय के दिग्गज नेता तारिक अनवर को विधान परिषद का टिकट दिया था, लेकिन नामांकन से ठीक पहले उनका टिकट काट दिया है. कांग्रेस ने तारिक अनवर की जगह समीर सिंह को अब उतारा है.

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बिहार की मुस्लिम बाहुल्य सीटें

बिहार में मुस्लिम आबादी 17 प्रतिशत के आसपास है. राज्य की 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक स्थिति में हैं. इन इलाकों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे भी अधिक है. बिहार की 11 सीटें हैं जहां 40 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम मतदाता है और 7 सीटों पर 30 फीसदी से ज्यादा हैं. इसके अलावा 29 विधानसभा सीटों पर 20 से 30 फीसदी के बीच मुस्लिम मतदाता हैं.

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2015 के विधानसभा चुनाव में बिहार की कुल 243 सीटों में से 24 मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे. इनमें से 11 विधायक आरजेडी, 6 कांग्रेस, 5 जेडीयू, 1 बीजेपी और 1 सीपीआई (एमएल) से जीत दर्ज किए थे. बीजेपी ने दो मुस्लिम कैंडिडेट को उतारा था, जिनमें से एक जीत दर्ज की थी. साल 2000 के बाद सबसे ज्यादा मुस्लिम विधायक जीते थे.

कांग्रेस से दूर हुए मुसलमान

बिहार में 1970 तक मुसलमान कांग्रेस के साथ रहे हैं. इन सबने बिहार में कांग्रेस के लिए मुस्लिम-ब्राह्मण-दलित वोटरों का वोट बैंक तैयार किया था. 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद बिहार में मुसलमानों की राजनीति में बदलाव का दौर शुरू हुआ. उन दिनों उर्दू भाषी बिहारी प्रवासियों की कई जगह हत्याएं हुई थी. इन्ही दिनों गुलाम सरवर, तकी रहीम, जफ़र इमाम और शाह मुश्ताक जैसे नेताओं ने इस मुद्दे को उठाया और मुसलमानों के बीच कांग्रेस विरोधी भावनाओं को जगाया. जेपी आंदोलन ने मुस्लिम मानस पर भी अपना प्रभाव डाला, जिसके कारण 1977 में कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में जनता सरकार बनी.

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लालू यादव के साथ मुस्लिम वोटर

1989 के भागलपुर दंगों के बाद, मुसलमानों ने एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ मतदान किया, जिसके कारण लालू प्रसाद के नेतृत्व में बिहार में जनता दल की सरकार बनी. लालू ने 15 सालों तक बिहार पर शासन किया. लालू को मुस्लिम-यादव फॉर्मूले का फायदा मिला. लालू ने उन दिनों मंडल आयोग की सिफारिशों के मुताबिक पिछड़ी मुस्लिम जातियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया था.

नीतीश ने कैसे जीता था मुसलमानों का दिल?

साल 2005 में चुनाव से ठीक पहले मुसलमानों के कमज़ोर वर्ग ने जेडीयू को समर्थन दिया. इसके अलावा पिछड़ी जाति के मुस्लिम और अति पिछड़ी जातियां जैसे लालबेगिस, हलालखोर और मेहतर ने अली अनवर के नेतृत्व में जद (यू) का समर्थन किया. विधानसभा चुनावों में वोटिंग के पैटर्न ने स्पष्ट रूप से संकेत दिया कि मुसलमान बीजेपी प्रत्याशियों का समर्थन नहीं करते थे, लेकिन जद (यू) प्रत्याशियों को प्राथमिकता देते थे, जिन्हें वे धर्मनिरपेक्ष मानते थे.

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