
तीन साल तक सेना प्रमुख के तौर पर जिम्मेदारी निभाने के बाद आज जनरल बिपिन रावत इस पद से रिटायर हो रहे हैं. भारत ने 2016 में जब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक की थी, तब माहौल काफी गर्म था. उसी बीच बिपिन रावत ने आर्मी चीफ के तौर पर कमान संभाली थी, अपने तीन साल के कार्यकाल में वह काफी चर्चा में रहे. फिर चाहे उनकी अगुवाई में चला कश्मीर में ऑपरेशन ऑलआउट हो या फिर उनके द्वारा दिए गए राजनीतिक बयान. बिपिन रावत ने 31 दिसंबर, 2016 में सेना प्रमुख का कार्यभार संभाला था और अब वह देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ होंगे.
जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन ऑलआउट
जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान की तरफ से फैलाए जा रहे आतंक ने पिछले कुछ दशकों से अपनी जड़ें जमा ली हैं. बिपिन रावत के कमान संभालने के बाद 2017 में भारतीय सेना की तरफ से ऑपरेशन ऑलआउट लॉन्च किया गया. इस ऑपरेशन के जरिए जम्मू-कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद समेत अन्य आतंकी संगठनों के टॉप आतंकियों को ठिकाने लगाया गया.
तब से लेकर अभी तक भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर में करीब 600 से अधिक छोटे-बड़े आतंकियों को मौत के घाट उतारा. हालांकि, इस दौरान कई बड़े आतंकी हमले भी हुए, जिसमें सेना भी निशाने पर रही. फिर चाहे पुलवामा आतंकी हमला हो, जम्मू-कश्मीर में नागरिकों को निशाना बनाना हो या फिर किसी जवान को ही निशाना बनाना हो.
बॉर्डर पर पाकिस्तान को जवाब
पाकिस्तान की ओर से लगातार कोशिश रही है कि वह भारत की परेशानी को बढ़ाता ही जाए. एक तरफ तो वह जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से हमले करवाता था, तो वहीं दूसरी ओर बॉर्डर पर गोलीबारी कर घुसपैठ कराने की कोशिश करता रहा. बिपिन रावत के कार्यकाल में ऐसे कई मौके आए, जब भारतीय सेना ने बॉर्डर पर पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया.
हालांकि, गोलीबारी में भारत के कुछ जवान शहीद भी हुए. लेकिन हर बार पाकिस्तान की कई चौकियां, रेंजर्स भी भारत की जवाबी कार्रवाई का शिकार हुए. इसके अलावा पाकिस्तान की ओर से कई बार बॉर्डर पर BAT ऑपरेशन की कोशिश की गई, जिसे हर बार सेना ने नाकाम किया.
जम्मू-कश्मीर से हटा अनुच्छेद 370
मोदी सरकार ने इसी साल जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटा दिया, इस दौरान सबसे बड़ी चुनौती थी कि घाटी में शांति को किस तरह स्थापित किया जाए. सरकार की ओर से पहले ही सेना के हजारों जवानों को जम्मू-कश्मीर में तैनात कर दिया गया था, ऐसे में सेना प्रमुख बिपिन रावत की ही जिम्मेदारी थी कि वह ज़मीन पर तैयारी को मजबूत करे.
सेना के जवानों ने जम्मू-कश्मीर के चप्पे-चप्पे पर मोर्चा संभाला, घाटी में सुरक्षा बढ़ाई गई, हर जगह नाकेबंदी हुई. इस दौरान किसी तरह की बड़ी घटना नहीं हुई, सरकार की ओर से घाटी में पाबंदियों को बढ़ाया गया. लेकिन अब जब अनुच्छेद 370 हटे कुछ महीने बीत चुके हैं, तो फिर जवानों को वापस बुलाना भी शुरू हो गया.
डोकलाम में चीन को कड़ी टक्कर
डोकलाम में 2017 में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गई थीं. चीन की ओर से इस हिस्से में सड़क बनाई जा रही थी, लेकिन भारतीय सेना जो कि वहां पर भूटान के समर्थन में तैनात थी उसने इसका विरोध किया. इसी दौरान दोनों सेनाओं के जवान आमने-सामने आए और ये विवाद 73 दिन तक चलता रहा.
भारत की ओर से आरोप लगाया गया कि चीन ने भूटान के साथ समझौते का उल्लंघन किया है, यही कारण रहा कि उस स्थान से दोनों देशों की सेना हटने से तैयार नहीं थी. इस दौरान भारतीय सेना ने जिस तरह चीनी सेना PLA का सामना किया और किसी भी तरीके से पीछे हटने से इनकार कर दिया उसकी चर्चा दुनियाभर में हुई. जून में शुरू हुआ ये विवाद अगस्त में जाकर खत्म हुआ था.
लगातार चर्चा में रही बयानबाजी
सेना प्रमुख होने के नाते बिपिन रावत कई बार मीडिया से मुखातिब हुए, काफी जगह उन्होंने भाषण भी दिए. लेकिन इस दौरान कई बार उनके द्वारा दिए गए बयान सुर्खियों में रहे, वो भी राजनीतिक बयान. जैसे हाल ही में जब देश के कई हिस्सों में नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है, उसको लेकर बिपिन रावत ने बयान दिया था.
उन्होंने कहा था कि देश की यूनिवर्सिटी में जिस तरह प्रदर्शन हो रहे हैं, वह ठीक नहीं है. कुछ युवा इस प्रदर्शन को गलत ओर ले जा रहे हैं, इससे कभी लीडर पैदा नहीं होते हैं. बिपिन रावत के इस बयान पर काफी बवाल हुआ और विपक्ष ने ऐसी टिप्पणी से परहेज करने को कहा.