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Birbhum loksabha:शांति निकेतन से है पहचान, तृणमूल के माथे पर ताज, गढ़ बचाने की चुनौती

1989 में बीरभूम से सीपीआई (M) राम चंद्र डोम सांसद चुने गए और लगातार 6 बार सांसद  रहे. इसके बाद यहां कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा कम होने लगा और 2009 में ऑल इंडिया कांग्रेस के शताब्दी रॉय ने विजय हासिल की, 2014 में भी शताब्दी राय को ही जनता ने बिजयी बनाया.

शांति निकेतन शांति निकेतन
अमित राय
  • नई दिल्ली,
  • 19 फरवरी 2019,
  • अपडेटेड 2:16 PM IST

बीरभूम को लाल मिट्टी और सर्पिली नदियों के लिए जाना जाता है. लेकिन यह कविता और गायन से समृद्द क्षेत्र है. बंगाली के कई फेमस कवि इस इलाके से आते हैं. यहां बाउल गायन की परंपरा है जिसे पूरे बंगाल माना जाता है. यहां की संस्कृति पर बौद्ध धर्म की छाप है. प्रसिद्द कवि चंडीदास का भी इस इलाके पर प्रभाव रहा है. सूफी परंपरा के लोग भी यहां मिलते हैं. रबींद्रनाथ टैगोर ने इसी इलाके में शांति निकेतन की स्थापना की थी. बीरभूम संसदीय सीट 1962 से 2004 तक अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व थी. 2009 में इस सामान्य सीट में बदल दिया गया.

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2009 और 2014 के चुनाव में यहां से ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस को विजय मिली है. हालांकि 2009 की अपेक्षा बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ा है और सीपीएम का वोट प्रतिशत घटा है. 2019 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम और बीजेपी में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

1952 से लेकर 1971 तक यहां कांग्रेस की राज रहा और 52 में कांग्रेस के कमल कृष्ण दास, 57 में अनिल कुमार चंदा, 62 में शिशिर कुमार दास चुने गए, इसके बाद कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (M) के गदाधर साहा ने 1971 में इस सीट पर कब्जा कर लिया और लगातार 3 बार यहां से जीते. 1984 में जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी तब भी सीपीएम के गदाधर साहा ने यहां से अपना परचम लहराए रखा. 1989 में बीरभूम से सीपीआई (M) राम चंद्र डोम सांसद चुने गए और लगातार 6 बार सांसद  रहे. इसके बाद यहां कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा कम होने लगा और 2009 में ऑल इंडिया कांग्रेस के शताब्दी रॉय ने विजय हासिल की, 2014 में भी शताब्दी राय को ही जनता ने बिजयी बनाया.

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सामाजिक ताना-बाना

बीरभूम संसदीय क्षेत्र पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में आता है 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की कुल आबादी 2247089 है. इसमें से 85.7 फीसदी ग्रामीण और 14.23 फीसदी शहरी है. यहां अनुसूचित जाति और जनजाति का रेश्यो 29.03 फीसदी और 6.11 फीसदी है. 2017 की मतदाता सूची के मुताबिक यहां मतादाताओं की कुल संख्या 1611374 है.

इस संसदीय क्षेत्र में 7 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, इसमें 6 सीटें तृममूल के पास और एक पर कांग्रेस का विधायक है.

1-हनसन से कांग्रेस के मिल्तान राशिद विधायक हैं.

2-सुरी से AITC के अशोक कुमार चटोपाध्याय जीते हैं.

3-रामपुरहाट से AITC के आशीष बनर्जी को विजय मिली है.

4-नलहटी से AITC के मोइनुद्दीन शम्स को विजय मिली है.

5-डुबराजपुर से AITC के नरेश बोराई जीते हैं.

6-मुरारै से AITC के अब्दुर रहमान विधायक हैं.

7-सैथिया से AITC की नीलाबती साहा जीती हैं.

कैसा था 2014 का चुनाव

2013 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया. इसके बाद मोदी ने पूरे देश में रैलियों की झड़ी लगा दी लेकिन 2014 में पश्चिम बंगाल में बीजेपी को उस तरह की सफलता नहीं मिल पाई. इसका सबसे बड़ा कारण यह था कि तृणमूल कांग्रेस यहां मजबूत थी और पार्टी की मुखिया ममता बनर्जी यहां मुख्यमंत्री का पद संभाल रही थीं. अधिकतर जगहों पर तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई (M) के बीच ही भिडंत हुई. लेकिन बीजेपी इतना मजबूत हो चुकी थी कि तृणमूल का वोट 2009 की अपेक्षा घट गया.

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2014 में तृणमूल के शताब्दी रॉय को 460,568 वोट मिले यह कुल वोटिंग का 36.09 फीसदी थे लेकिन 2009 की अपेक्षा 11.72 फीसदी कम थे. दूसरे नंबर पर सीपीआई (M) के डॉक्टर मोहम्मद कमर इलाही रहे जिन्हें 393,305 वोट मिले जो कुल वोटिंग का 30.82 फीसदी थे. बीजेपी के जॉय बनर्जी को 235,753 वोट मिले जो कुल वोटिंग का 18.47 फीसदी थे, 2009 की अपेक्षा बीजेपी को 13.85 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे. कांग्रेस का कभी इस सीट पर दबदबा रहता था लेकिन 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार को सैय्यद सिराज जिम्मी को केवल 132084 वोट मिले. पश्चिम बंगाल में कुल 42 सीटें हैं जिसमें से 34 सीटें तृणमूल कांग्रेस जीतने में सफल रही. बीजेपी को 42 में से केवल 1 सीट मिल पाई थी.

सासंद का रिपोर्ट कार्ड   

हर सासंद को क्षेत्र के विकास के लिए हर साल 5 करोड़ रुपये मिलते हैं. इसमें सांसद को जिला प्रशासन को देना होता है कि वह क्या काम कराना चाहते हैं. इसके बाद जिला प्राशसन उस काम के लिए फंड रिलीज करता है. 15वीं लोकसभा के दौरान जितना फंड मिला था शताब्दी रॉय ने उसका 105 फीसदी खर्च किया, जो ज्यादा रकम खर्च की गई वह ब्याज के रूप में मिली थी. एक भी पैसा बेकार नहीं गया.

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इसी तरह अगर 16वीं लोकसभा के बारे में बात की जाए तो उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक शताब्दी रॉय के संसदीय क्षेत्र बीरभूम को कुल 25 करोड़ रुपये दिए गए थे. इसमें से उन्होंने 98.16 फीसदी बजट का इस्तेमाल कर लिया है. लोकसभा में शताब्दी राय की उपस्थिति 76 फीसदी रही. शताब्दी रॉय ने 16वीं लोकसभा में कुल 4 डिबेट में हिस्सा लिया. कोई प्राइवेट मेंबर बिल नहीं ला पाईं.

जरा हटके

अगर शताब्दी रॉय बंगाली में 10 किताबें लिख चुकी हैं इनमें से कुछ कविता की हैं और कुछ फिक्शन. उनकी रुचि कविताओं में ज्यादा है. किताबें लिखना उनका शौक है. फिल्मों में काम कर चुकीं शताब्दी रॉय ने संसद में जेंडर इक्विटलिटी पर बोलते हुए कहा था पुरुषों और महिलाओं को बराबरी का हक मिलना चाहिए चाहे वह फिल्म का क्षेत्र हो या खेल का. उन्होंने उदाहरण के साथ बताया था कि किस तरह हीरो को ज्यादा पैसे मिलते हैं जबकि हीरोइनों को बहुत कम रकम दी जाती है. इसी तरह  क्रिकेट की बात की जाए तो सचिन तेंदुलेकर सौरव गांगुली को करोड़ों में भुगतान होता है जबकि महिला क्रिकेटर लाख में ही सिमट जाती हैं.

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