
चुनाव आयोग ने दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (AAP) को तगड़ा झटका दिया, तो बीजेपी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी. शुक्रवार को आयोग ने संसदीय सचिव के रूप में लाभ के पद धारण करने के आरोप में AAP के 20 विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने की राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से सिफारिश कर दी. इससे बीजेपी और कांग्रेस जैसी विपक्षी पार्टियां बेहद खुश हैं.
इनकी खुशी की वजह यह है कि अगर AAP के इन विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द होती है, तो दिल्ली में इन सीटों पर फिर से चुनाव होंगे. ये पार्टियां आगामी विधानसभा चुनाव में जीत की आस लगाए बैठी हैं. सात फरवरी 2015 को दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली AAP को ऐतिहासिक जीत मिली थी, जबकि बीजेपी और कांग्रेस को करारी हार का मुंह देखना पड़ा था. पिछले विधानसभा चुनाव में बुरी तरह हारने वाले इन दलों ने फिर से चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है.
इसी कड़ी में शुक्रवार को कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अपने हारे हुए प्रत्याशियों के साथ बैठक की, जिसमें दिल्ली के मौजूदा राजनीतिक हालात और आगे की रणनीति पर चर्चा हुई. वहीं, बीजेपी भी चुनाव को लेकर अलग रणनीति बना रही है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी को आम आदमी पार्टी ने बुरी तरह हराया था. इसमें कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नहीं मिली और बीजेपी सिर्फ तीन सीटों पर सिमट कर रह गई. हालांकि विधानसभा चुनाव के बाद हुए नगर निकाय चुनाव में बीजेपी को शानदार जीत मिली थी.
उधर, विधानसभा चुनाव के मुकाबले MCD चुनाव में AAP अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई, जिससे बीजेपी और कांग्रेस की उम्मीदें और भी बढ़ गईं हैं. इन दलों को लगता है कि अगर अब दिल्ली में चुनाव होते हैं, तो पिछली बार के मुकाबले इस बार उनके पक्ष में बेहतर नजीते आएंगे. खासकर कांग्रेस को विधानसभा में एंट्री मिलने की उम्मीद है. फिलहाल 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा में बीजेपी के तीन विधायक हैं, लेकिन कांग्रेस का पत्ता साफ है. अगर AAP के इन 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होती है, तो विधानसभा में इनकी संख्या 66 से घटकर सीधे 46 पर आ जाएगी.
इसके अलावा विधायक कपिल शर्मा बागी हो चुके हैं. जबकि कुमार विश्वास राज्यसभा में नहीं भेजे जाने से नाराज हैं और बताया जाता है कि उनके पास करीब 10 विधायकों का समर्थन हैं और मौका देखते हुए वह पाला बदल सकते हैं. लिहाजा केजरीवाल सरकार पर संकट के बादल मंडराते दिख रहे हैं. हालांकि AAP ने चुनाव आयोग की सिफारिश के खिलाफ हाईकोर्ट में गुहार लगाई है, लेकिन वहां से उसको फौरी राहत नहीं मिली है. अब सोमवार को मामले की सुनवाई होगी. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए एक बात तो साफ है कि आने वाले समय में दिल्ली का राजनीतिक घटनाक्रम बेहद रोमांचक होने वाला है. हालांकि यह तो वक्त ही बताएगा कि राजनीतिक पलड़ा किसका भारी होता है.
स्थानीय निकाय चुनावों में हार चुकी है आप
वहीं दिल्ली में हुए स्थानीय निकायों में आप पार्टी का खराब प्रदर्शन भी उसे खासा परेशान कर रहा है. पिछले साल अप्रैल में हुए चुनाव में उत्तरी दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 64 सीट मिली जबकि आप को 21 सीट हासिल हुई. वहीं दक्षिण दिल्ली नगर निगम में भाजपा को 70 और आप को 16 सीटें मिली जबकि कांग्रेस 12 सीटों पर सिमट गई.
यही हाल पूर्वी दिल्ली नगर निकाय चुनाव में हुआ, जहां भाजपा को 47, आप को 13 और कांग्रेस को 3 सीटें हासिल हुईं. आप पार्टी की सरकार रहते हुए भाजपा ने लगातार तीसरी बार दिल्ली नगर निकाय चुनाव में बहुमत हासिल की. 20 विधायकों की सदस्यता जाने की सूरत में दिल्ली में उपचुनाव कराए जाएंगे ही. साथ ही उपरोक्त की सारी इन परिस्थितियां आपस में जुटती हैं तो नए सरकार के अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है और दिल्ली को नए चुनाव का सामना करना पड़ सकता है, फिलहाल इसमें अभी वक्त है.
साल 2015 में AAP ने बीजेपी की उम्मीदों पर फेर दिया था पानी
चार दिसंबर 2013 को हुए चुनाव में बीजेपी को आस थी कि वह सत्ता में लौटेगी, लेकिन त्रिशंकु विधानसभा ने उसके अरमानों पर पानी फेर दिया. 31 सीट हासिल कर वह राज्य में शीर्ष पार्टी बनकर उभरी जरूर, लेकिन आठ सीट हासिल करने वाली कांग्रेस ने 28 सीट जीतने वाली आप पार्टी को अपना समर्थन दे दिया, जिससे अरविंद केजरीवाल ने सरकार बना ली थी. हालांकि यह सरकार महज 49 दिन ही चल सकी, क्योंकि केजरीवाल ने जनलोकपाल बिल पास नहीं कर पाने की नाकामी को स्वीकारते हुए इस्तीफा दे दिया.
इसके बाद यह कहा जा रहा था कि केजरीवाल दिल्ली में मिली चुनावी कामयाबी से उत्साहित होकर साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने का दाव चलना चाह रहे थे, लेकिन इस बार वो नाकाम रहे. फिर करीब एक साल के इंतजार के बाद दिल्ली ने दोबारा विधानसभा चुनाव (2015) हुए और इस बार AAP ने सारे कयासों को धता बताते हुए 70 में से 67 सीट अपने नाम कर ली. बीजेपीऔर कांग्रेस सिर्फ मूक दर्शक बनकर रह गए. केजरीवाल ने बंपर बहुमत के साथ अपने दम पर दूसरी बार सरकार बना ली.