
गुजरात चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने जीत का 'छक्का' तो लगा दिया, लेकिन इसे हासिल करने के लिए पार्टी को एड़ी-चोटी का जो जोर लगाना पड़ा, उसे देखते हुए लग रहा है कि डेढ़ साल बाद देश में होने वाले अगले आम चुनाव में राम मंदिर और तलाक जैसे मुद्दे उसके खास हथियार बन सकते हैं.
नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पिछले 3 साल में 25 से ज्यादा राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा विकास के नाम पर ही चुनाव लड़ रही थी और इस दौरान ज्यादातर राज्यों में जीत भी हासिल की, लेकिन गुजरात के परिणाम ने पार्टी के आलाकमान को चौंका दिया है.
2018 में भी 'सेमीफाइनल'
प्रधानमंत्री मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की चाह न सिर्फ देश के हर राज्य में भाजपा का शासन देखने की है बल्कि वे अगला आम चुनाव भी पिछले चुनाव की तरह ही अपने दम पर जीतना चाहते हैं. गुजरात चुनाव को मोदी सरकार की ओर से लिए गए आर्थिक सुधार (नोटबंदी और जीएसटी) के फैसलों के बाद यह चुनाव बड़े जनादेश के रूप में देखा जा रहा था. लेकिन गुजरात में बहुमत से महज 7 सीट ही ज्यादा पाने वाली भगवा पार्टी अंदर ही अंदर इससे सहमी होगी, हालांकि सार्वजनिक तौर पर पार्टी इसे बड़ी जीत मान रही है.
जीत के बाद अब 2019 के वास्ते पार्टी में बड़ा मंथन होगा क्योंकि इसके लिए महज डेढ़ साल का वक्त है. इससे पहले पार्टी को एक और बड़ा सेमीफाइनल खेलना होगा. 2019 से पहले 2018 में उसे अपने 3 सत्तारुढ़ राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अलावा कर्नाटक, मेघालय और त्रिपुरा समेत 8 राज्यों में चुनावी वैतरणी पार करनी होगी. इनमें से मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक दशक से भी ज्यादा पुराने समय से भाजपा ही सत्ता में है. इन राज्यों में सत्तारुढ़ पार्टी के खिलाफ माहौल निश्चित तौर होगा, जिससे पार पाना मोदी-शाह की जोड़ी के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं दिख रहा.
भाजपा का 'ट्रंप कार्ड'
भाजपा के लिहाज से देखें तो उसकी सरकार की ओर से किए गए आर्थिक सुधार का फायदा कुछ समय बाद दिखाई देगा, लेकिन उसके साथ दिक्कत यह है कि आम जनता वर्तमान में जीती है और नोटबंदी-जीएसटी जैसे बड़े आर्थिक फैसले से उसे तत्काल प्रभाव से दिक्कत उठानी पड़ती है. इसका असर बेरोजगारी और कम कमाई के रूप में लोगों में पड़ भी रहा है. गुजरात चुनाव के दौरान जीएसटी के कारण लोगों को हो रही परेशानी को देखते हुए ताबड़तोड़ कई बड़े बदलाव करने पड़े थे और खुद शीर्ष कमान को इन फैसलों को आम जनता तक पहुंचाने में खूब पसीना बहाना पड़ा था.
पार्टी के पास 2 दशक से भी पुराना मुद्दा राम मंदिर का है और अभी वही खुद सत्ता में है तो 2019 से पहले उसकी कोशिश होगी कि अगले आम चुनाव में ध्रुवीकरण के सहारे आसानी से वोट हासिल किए जा सकते हैं. सरकार की कोशिश होगी कि 2019 से पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करा दिया जाए और आम हिंदुओं को उनकी बरसों पुरानी सौगात देते हुए उनसे कीमती वोट हासिल कर लिए जाएं. शीर्ष कमान को इस बात का एहसास है कि अभी भाजपा की ही तूती बोल रही है और अब उसके पास यह कहने का बहाना भी नहीं होगा कि ऐसा करने के लिए उसके पास 'ताकत' नहीं है. ये जरूर है कि गुजरात में राम मंदिर का मुद्दा पार्टी के आखिरी पन्ने पर था, लेकिन अगला आम चुनाव में पार्टी के लिए राम मंदिर का मुद्दा सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड होगा.
राम मंदिर के अलावा तीन तलाक मामला भी उसके तरकश का दूसरा सबसे अहम तीर होगा. मुस्लिम समुदाय में प्रचलित विवादित तीन तलाक को खत्म करने को लेकर सरकार इन दिनों बेहद सक्रिय है और जारी शीतकालीन संसदीय सत्र में वह इस पर बिल भी पेश करने वाली है. इस मुद्दे के सहारे भी वह वोट हासिल करने की जुगत में होगी.
मोदी और शाह की जोड़ी को हार किसी भी सूरत में पंसद नहीं है और उम्मीद है कि इस जोड़ी ने 2019 के चुनाव पर लगातार नजर बनाए रखा होगा. अब देखना होगा कि भाजपा इस चुनाव में विकास के साथ जाता है या फिर राम मंदिर और तीन तलाक जैसे नाजुक मसलों के सहारे ध्रुवीकरण कर जीतने का सहारा ले सकती है.