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एक महिला के सुसाइड नोट में 'बुरे आदमी' के रूप में दर्ज गोपाल कांडा से हाथ मिलाने को तैयार भाजपा

गीतिका के सुसाइड नोट में कांडा के लिए लिखे शब्द 'बुरा आदमी' ने उसकी तकदीर की रेखाएं उलझ दी हैं. कांडा की परवाज ऊंची होनी थी, लेकिन सत्ता और धन के अहंकार में वह यह भूल गया कि स्त्री, पुरुष के मोहपाश में तो जकड़ सकती है, लेकिन हमेशा के लिए उसकी तरक्की की बाजारू सीढ़ी नहीं बन सकती.

गोपाल कांडा गोपाल कांडा
aajtak.in
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  • 25 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 4:12 PM IST

पीयूष बबेले/संतोष कुमार

अगर एमडीएलआर एयरलाइंस की पूर्व एयरहॉस्टेस गीतिका शर्मा ने 5 अगस्त की सुबह पंखे से लटककर अपनी जान न दी होती, तो हरियाणा का पूर्व गृह राज्यमंत्री गोपाल गोयल कांडा देश में महिला सशक्तीकरण की मिसाल बन चुका होता. आखिर उसने अपनी 36 कंपनियों में 19 महिलाओं को डायरेक्टर या इसी तरह के ऊंचे ओहदों पर बिठाया है.

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वही ऐसा नेता है जिसने चुनाव प्रचार के लिए महिलाओं की अलग जनसभा बुलाई और वही ऐसा शख्स है जिसकी महफिल में आने के लिए पूजा बत्रा, रति अग्निहोत्री से लेकर हेमा मालिनी जैसी दिग्गज हिरोइनों ने भी कभी इनकार नहीं किया. उसने अपने साथ जुड़ी तकरीबन हर लड़की की किस्मत बदल दी. किसी को तोहफे में बीएमडब्ल्यू कार दी, तो किसी पर पूरा शोरूम ही न्योछावर कर दिया.

यह कांडा की नजरे इनायत ही थी कि गीतिका जैसी कई मामूली महिलाएं कर्मचारी रातोरात कंपनी में ऊंचे ओहदों पर पहुंच गईं. लेकिन यह महज इत्तेफाक नहीं है कि शराब से तौबा और शबाब से मुहब्बत करने वाले कांडा ने ज्यादातर उन्हीं हसीनाओं का उद्धार किया जो या तो अविवाहित थीं या फिर अपने पति को छोडऩे को तैयार.

1952 में जनसंघ के टिकट पर सिरसा से विधानसभा चुनाव हारने वाले कट्टर संघी मुरलीधर कांडा का सबसे बड़ा बेटा शुरू से ही जानता था कि सियासत के गलियारों में किन चीजों की तूती सबसे ज्यादा बोलती है.

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कांडा के आराध्य तारा बाबा की कुटिया में उसके सहयोगी रहे लीलाधर सैनी काफी सोच विचार कर यह दावा करते हैं, "गोपाल के दिमाग से श्कोक शास्त्र्य की तर्ज वाले सस्ते उपन्यासों की वे कहानियां कभी नहीं उतरीं जिनमें औरत और पैसे के बल पर हर चीज हासिल करने की मिसालें भरी होती हैं. उसकी किताबों की दुकान भले ही न चली हो, लेकिन इन किताबों ने उसके दिमाग को खूब चलाया." कभी उसके सियासी रहनुमा रहे अजय चैटाला कहते हैं, "वह शुद्ध रूप से दलाल है. अगर गहराई से जांच हो तो यह मामला देश का सबसे बड़ा सेक्स  रैकेट साबित होगा."

लेकिन इन आरोपों से बेपरवाह कांडा पैसा कमाने के सफर पर आगे बढ़ता गया और उसकी राजदार महिलाओं की संख्या भी बढ़ती रही. गीतिका शर्मा, अंकिता सिंह, नुपुर मेहता और अरुणा सिंह तो वे चंद नाम हैं जो कानूनी पचड़े में उलझने के कारण सार्वजनिक हो गए, लेकिन कांडा के संसार में और भी ऐसी लड़कियां हैं जिनकी तरक्की का ग्राफ इन महिलाओं से मिलता है. सिरसा में उसके परिवार के कारोबार को देखने वाली एक लड़की के परिवार की किस्मत चंद साल में बदल गई.

पहले इस लड़की के परिवार की माली हालत जहां खस्ता थी, वहीं अब उसके पिता कारों का शोरूम चला रहे हैं. कांडा की एक और कंपनी में एक महिला बहुत तेजी से सीओओ के पद तक पहुंच गई. लंबे समय तक कांडा के ड्राइवर रहे एक शख्स ने बताया, "गुड़गांव आने के बाद कांडा साहब ने एक महिला सेक्रेटरी की भर्ती की थी. सेक्रेटरी को साफ निर्देश था कि वह फाइल पास कराके लाए, भले ही इसकेलिए कुछ भी करना पड़े."

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कामयाबी के लिए कुछ भी करना जैसे कांडा का मंत्र ही बन गया. उसकी किताबों की दुकान (1979), ज्यूपिटर इलेक्ट्रॉनिक्स (1982), जूतों की दुकान (1985), बोतलबंद पानी और जूता बनाने की फैक्टरी एक के बाद एक नाकाम हुईं लेकिन उसके हौसले कभी पस्त नहीं हुए. उसने एमडीएलआर एयरलाइंस खोली लेकिन वह घाटे में रही. गोवा में दो कैसिनो खोले, वे भी कभी चल नहीं सके. लेकिन उसकी जिंदगी और कारोबार में लड़कियों की संख्या बढ़ती ही रही. साथ ही शानदार पार्टियां और बेशकीमती गिफ्ट देने के उसके शौक पर भी कोई असर नहीं पड़ा.

सैनी बताते हैं, "मैंने कांडा से पूछा कि भार्ई तेरे धंधे तो घाटे में चल रहे हैं, फिर एयरलाइंस में इतनी लड़कियां क्यों रख ली हैं? तू घाटे के धंधे से ही क्यों चिपका रहता है. जवाब में कांडा ने कहा था कि सैनी तुम ठहरे भगत आदमी. तुम धंधे की बातें क्या समझेंगे. ये लड़कियां और हवाई जहाज मुनाफा कमाने के लिए नहीं, रसूखदार लोगों में अपनी पहुंच बनाने के लिए हैं."

और हुआ भी कुछ ऐसा ही. 1997 में तारा बाबा के 'आदेश' पर सिरसा छोड़ गुडग़ांव आए कांडा ने रियल एस्टेट के मैदान में उभरते इस कस्बे की नब्ज को जैसे पकड़ लिया. हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल के बेटे दिवंगत सुरेंद्र सिंह के करीब आकर कांडा गुडग़ांव के रियल एस्टेट कारोबार में छा गया. फिर गरज पड़ी तो अजय चैटाला के 'जूते' भी खाए. 2003 के बाद एक समय वह भी आया जब अनुसूचित जाति के लोगों को आवंटित प्लॉट को लैंड यूज बदलकर बिकवाने का छोटा-मोटा धंधा करने वाले कांडा के बिना गुडग़ांव में कोई भी बड़ी लैंड डील करना नामुमकिन-सा हो गया.

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उसके सहयोगी सुरेंद्र मिंचनावादी कहते हैं, "कांडा प्रॉपर्टी का कीड़ा है. जैसे कोई कबाड़ी कबाड़ के पहाड़ में से एक नजर में बेशकीमती चीज पहचान लेता है, वैसे ही कांडा सही प्रॉपर्टी पर दांव लगाता है." कांडा ने प्रॉपर्टी के धंधे में अपने बेमिसाल हुनर से पैसा कमाया. उसने राजनीति की नब्ज समझ्ने में कभी देरी नहीं की. जब कांडा ने देखा कि 2009 में भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा के तख्त पर दोबारा काबिज हो गए हैं तो वह तुरंत हुड्डा के खेमे में शामिल हो गया. हुड्डा से उसकी दोस्ती गहरार्ई तक पहुंची औैर मुख्यमंत्री उसकी बर्थडे पार्टी में केक खिलाने पहुंचने लगे (देखें बॉक्स).

दरअसल, बर्थडे पार्टी शुरू से ही कांडा के जनसंपर्क अभियान का बड़ा मंच रही. उसने अपनी पहली बड़ी बर्थडे पार्टी 1998 में गुडग़ांव के ब्रिस्टल होटल में दी थी, जहां सुरेंद्र सिंह भी मौजूद थे. कांडा ने जल्द ही गुड़गांव में अपना फार्म हाउस बनाया. और इसी फार्म हाउस में उसकी गिरफ्तारी से पहले तक हफ्ते में दो बार शानदार पार्टियां हुआ करती थीं. खुद शराब को हाथ न लगाने वाला कांडा इन पार्टियों में शराब की नदियां बहा देता था.

पार्टियों में शरीक रहे एक शख्स की मानें तो यहां भारतीय लड़कियों के साथ रूसी और उज्बेक लड़कियां भी नजर आती थीं. दौलत का नशा बढ़ा तो कांडा ने 2009 में गोवा में मिंट कैसिनो भी खरीदा. हरियाणा के बड़े से बड़े रईसों ने जो काम नहीं किया था वह कांडा ने किया और कैसिनो के उद्घाटन में हरियाणा के 40 लोगों को ले गया. उसके निमंत्रण पत्र की खासियत यह थी कि कार्ड के साथ आने-जाने के हवाई टिकट चस्पां थे. कैसिनो पार्टी में गए कई लोगों ने यह तस्दीक की कि वह उनकी जिंदगी की सबसे बेहतरीन पार्टी थी, जहां उन्होंने वह सारा लुत्फ उठाया जो आम आदमी अपने सपनों में सोचता है.

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गोवा के ये दो कैसिनो 'मिंट' और 'कैसिनो रियो' कांडा की जिंदगी में खास महत्व रखते हैं. दरअसल, कांडा अपनी कथित पार्टनर अंकिता सिंह को सिरसा से दूर किसी ऐसी जगह सेटल कराना चाहता था, जहां उसका परिवार दखल न दे सके और ऐसी जगह की तलाश गोवा के कैसिनो के रूप में खत्म हुई.

हालांकि इसके बाद भी अंकिता गुडग़ांव आती-जाती रही. गीतिका आत्महत्या कांड के बाद से ही अंकिता अपने बच्चे के साथ सिंगापुर में है और अब तक पुलिस उससे पूछताछ नहीं कर सकी है. इन्हीं कैसिनो में बाद में कांडा अपनी एक और पुरानी सहयोगी नूपुर मेहता को भी ले आया. ये नूपुर मेहता वही हैं जिनका नाम कुछ महीने पहले क्रिकेट मैच फिक्सिंग विवाद में भी आया था. कांडा-नूपुर के रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे.

पुलिस सूत्रों की मानें तो कांडा ने कहा है कि उसने गुडग़ांव में नूपुर को 500 वर्ग गज का मकान तोहफे में दिया था. लेकिन जब नूपुर पहली बार उससे अलग हुई तो 2009 में कांडा ने गुंडे भेजकर उस मकान को खाली भी करा लिया. हालांकि नूपुर ने ऐसे किसी भी तोहफे की बात से इनकार किया है.

इसे कांडा की बदकिस्मती ही कहेंगे कि उसने गीतिका को भी गोवा भेज दिया. पुलिस की मानें तो यही कांडा से नजदीकी को लेकर तीनों महिलाओं में घमासान शुरू हुआ. नूपुर और अंकिता ने यहां गीतिका के खिलाफ केस भी दर्ज कराया था. उधर कांडा की सबसे पुरानी राजदार अरुणा चड्डा को तो गीतिका ने अपने सुसाइड नोट में सारी खुराफात का सरगना बताया है. एक बच्चे की मां अरुणा भी अपने पति से अलग रहती है.

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कभी पूरे एमडीएलआर समूह को अपनी उंगलियों पर नचाने वाली अरुणा फिलहाल जेल में है और कोर्ई उसका हाल पूछने भी नहीं जा रहा है. उस पर आरोप है कि कंपनी की एचआर विभाग की प्रमुख होने के नाते वह कंपनी में लड़कियों की भर्ती करने और उन्हें कांडा की करतूतों में शामिल होने के लिए मजबूर करती थी. पुलिस कांडा की इस राजदार से एक-एक राज उगलवा रही है और कांडा न्यायिक हिरासत में हनुमान चालीसा का पाठ कर रहा है.

गीतिका के सुसाइड नोट में कांडा के लिए लिखे शब्द 'बुरा आदमी' ने उसकी तकदीर की रेखाएं उलझ दी हैं. गीतिका की मौत से दो दिन पहले कांडा ने लाल रंग की एक नई हमर गाड़ी खरीदी. इसी दिन उसने मीडिया से अनौपचारिक बातचीत में कहा था कि उसने हरियाणा में ऐसी 24 सीटों की पहचान की है जहां वैश्य वोटरों का दबदबा है. इन सीटों पर वह अपने प्रत्याशी उतारेगा और फिर उसकी मर्जी के बिना हरियाणा में कोई मुख्यमंत्री नहीं बन सकेगा. यानी कांडा होगा हरियाणा की सियासत का बेताज बादशाह.

कांडा की परवाज ऊंची होनी थी, लेकिन सत्ता और धन के अहंकार में वह यह भूल गया कि औरत कोई खिलौना नहीं है. स्त्री, पुरुष के मोहपाश में तो जकड़ सकती है, लेकिन हमेशा के लिए उसकी तरक्की की बाजारू सीढ़ी नहीं बन सकती. कांडा के एहसान तले दबे होने के बावजूद गीतिका ने समर्पण की बजाए खुद को खत्म करना बेहतर समझ. उसकी मौत ही कांडा की बरबादी की वजह बन गई. राजनेता ऐसे सबक अकसर ऊंची कीमत चुकाकर सीखते हैं. और तब तक देर हो चुकी होती है.

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यह लेख इंडिया टुडे के सितंबर 2012 के अंक से लिया गया है

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