
अप्रैल की 20 तारीख की सुबह आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू विजयवाड़ा में एक दिन के उपवास पर बैठने जा रहे थे. उन्हें बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उन्हें फोन पर जन्मदिन की बधाई देना चाहते हैं. नायडू ने कोई जवाब नहीं दिया और उपवास के लिए बने मंच पर अपने समर्थकों के साथ जा बैठे. धीरे-धीरे उपवास स्थल पर समर्थकों की भीड़ बढ़ती चली गई और मंच से भाषणों का सिलसिला शुरू हो गया.
उपवास कार्यक्रम को "धर्म पोराता दीक्षा'' (न्याय के लिए संघर्ष) का नाम दिया गया. नाम के अनुरूप तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के नेताओं ने यह बताने की कोशिश की कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा न देकर राज्य की पांच करोड़ जनता के साथ अन्याय किया है. लेकिन कुछ महीने पहले मोदी के विश्वस्त दोस्त रहे नायडू के लिए अब भाजपा अछूत-सी बन गई है. नायडू ने शाम को साढ़े सात बजे अनशन समाप्त करने से पहले अपना भाषण दिया. उन्होंने मोदी को राजनीति में अपना जूनियर बताते हुए उन पर राज्य के साथ छल करने का आरोप लगाया.
राजनीति के माहिर खिलाड़ी नायडू ने न सिर्फ राज्य में अपनी विरोधी वाइएसआरसी कांग्रेस (जगनमोहन रेड्डी) को अपनी सियासी व्यूह रचना में घेरने की कोशिश की, बल्कि 2019 में केंद्रीय राजनीति में अपनी महती भूमिका के लिए भी ताल ठोक दी. आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी अहम भूमिका होगी या उनका फोकस सिर्फ आंध्र प्रदेश में अपनी सरकार बरकरार रखना है? नायडू कहते हैं, "राष्ट्रीय राजनीति टीडीपी के लिए नई नहीं है. नेशनल फ्रंट, थर्ड फ्रंट और एनडीए के गठन में हमने निर्णायक भूमिका निभाई थी.'' नायडू का आकलन है कि 2019 में भाजपा को कई राज्यों में नुक्सान होगा और दूसरे दलों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी.
इस आकलन को उनके बेटे लोकेश एक कदम आगे ले जाकर कहते हैं, "अगले कुछ महीनों में कई राज्यों में चुनाव हैं जिसमें भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. ऐसे में चुनाव पूर्व अगर कोई गठबंधन बनता है या चुनाव बाद यह संभावना बनती है कि केंद्र में भाजपा को रोका जा सकता है तो दक्षिण भारत की भूमिका जरूर होगी और टीडीपी की जिम्मेदारी बढ़ेगी.'' तो, क्या टीडीपी राज्य से अधिक केंद्र पर फोकस कर रही है? लोकेश कहते हैं, "टीडीपी का पूरा फोकस राज्य है. राज्य के लिए हम न्याय की मांग कर रहे हैं लेकिन एक प्रमुख नेता (जगन) अंदरखाने केंद्र के साथ हैं. दिल्ली में मोदी के पैर छूते हैं और राज्य के स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रहे हैं.''
दरअसल, नायडू और उनके बेटे लोकेश के बयान को खुद-ब-खुद राज्य की पूरी सियासत को स्वाभिमान केंद्रित बनाने की स्वीकारोक्ति माना जा रहा है. आंध्र प्रदेश के राजनीतिक मामलों के जानकार जी. मुरली कहते हैं, "नायडू यह अच्छी तरह जानते हैं कि राज्य का स्वाभिमान ऐसा मुद्दा है जिसके सहारे दूसरी बार सत्ता मिल सकती है. जगन से पार पाने के लिए टीडीपी इस ओर बढ़ चुकी है. वह जगन पर मोदी के पैर छूने, उनसे अंदरखाने मिलीभगत रखने का आरोप तो लगाती है, पार्टी कार्यकर्ता उन गांवों में जाकर रास्ते को पानी से धोकर शुद्धीकरण करते हैं, जहां जगन पदयात्रा निकालते हैं.''
हालांकि मोदी पर सियासी हमला, राज्य के स्वाभिमान का मुद्दा और शुद्धीकरण जैसे मुद्दे को एक साथ चलाना अनायास नहीं है. दरअसल जगन ने नायडू के लिए ऐसे हालात पैदा कर दिए जिसकी वजह से आंध्र प्रदेश में उनके लिए करो या मरो की स्थिति पैदा हो गई. आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने के मुद्दे को जगन ने राज्य में उठाना शुरू किया. इससे असहज हुई टीडीपी ने मोदी सरकार से अपने मंत्रियों का इस्तीफा कराया. लेकिन समर्थन जारी रखा. जगन ने इसे एक छलावा बताया. मजबूर होकर टीडीपी ने एनडीए से बाहर होने का ऐलान किया. जगन एक और कदम बढ़ाकर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए. बाद में नायडू भी अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए बाध्य हुए.
जगन राज्य में यह संदेश देने में काफी हद तक सफल हुए कि राज्य के हित के लिए वाइएसआर कांग्रेस अधिक समर्पित है. नायडू तो अपनी स्थिति बचाने के लिए मजबूरी में मोदी से दूर होने का नाटक कर रहे हैं. लिहाजा, नायडू ने अपने जन्मदिन के मौके पर ही आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के नाम पर उपवास का कार्यक्रम रखा.
आरोप-प्रत्यारोपों के बीच बीते चार साल में खासकर पिछले कुछ महीनों में राज्य की सियासत में काफी कुछ बदल गया. 2014 में टीडीपी और भाजपा साथ मिलीं. फिल्म अभिनेता पवन कल्याण की पार्टी जनसेना का समर्थन मोदी-नायडू की जोड़ी को मिला. अब स्थिति बदल गई है. पवन कल्याण टीडीपी की आलोचना कर रहे हैं. जगन पिछले चार वर्षों में विभिन्न जांच एजेंसियों के घेरे में थे लेकिन अब काफी हद तक जांच के दायरे से बाहर निकल गए हैं. उनके खास सिपहसलार माने जाने वाले विजय साई रेड्डी ने वह रास्ता लगभग बना दिया है जिसके जरिए भाजपा को जगन को साथ लेने में मुश्किल नहीं होगी.
नायडू चाह भी यही रहे हैं. जी. मुरली कहते हैं कि राज्य में भाजपा इस स्थिति में नहीं है कि अपने दम पर जीत हासिल कर सके. नायडू, जगन और भाजपा अलग-अलग लड़ती हैं तो अधिक नुक्सान टीडीपी को हो सकता है. वजह है सत्ता विरोधी रुझान. दूसरी वजह है पिछले चार साल में नायडू ने सुधार के बहुत सारे काम तो किए हैं लेकिन वे सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का सुधार से तालमेल नहीं बिठा सके हैं.
इसके उलट जब वाइ. राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने अपने पूर्ववर्ती सीएम नायडू के शुरू किए गए सुधार कार्यों को अपनी योजनाओं के साथ जोड़ा. लिहाजा वे सुधार और जनकल्याण दोनों योजनाओं के जरिए राज्य का विकास भी कर सके और लोकप्रियता भी बनाए रख सके. नायडू का पूरा फोकस सिर्फ सुधार के कार्य में है. ऐसे में जनकल्याण के मोर्चे पर वे सिर्फ राजशेखर रेड्डी के कार्यों को ही आगे बढ़ाते दिख रहे हैं.
सुजीत ठाकुर / संध्या द्विवेदी / मंजीत ठाकुर