असम का फॉर्मूला यूपी में दोहराएगी बीजेपी! रणनीति बनाने में जुटे नेता

असम से सीख लेकर बीजेपी ने अभी से यूपी में पार्टी के चेहरे को तलाशना शुरू कर दिया है. पार्टी ऐसे नेता की तलाश में है जो बहनजी यानी मायावती को टक्कर दे सके और जातिगत समीकरण भी बिठा सके.

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अमित कुमार दुबे / रीमा पाराशर

  • नई दिल्ली,
  • 19 मई 2016,
  • अपडेटेड 11:38 PM IST

असम की जीत और 4 राज्यों में अच्छे प्रदर्शन ने बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं के चेहरों पर वो मुस्कान ला दी है जो बिहार और दिल्ली में हार के बाद गायब हो गई थी. अब जश्न जीत का भी है और केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के 2 साल पूरे होने का भी. लेकिन इन नतीजों की समीक्षा में लगे बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को अभी से भविष्य के सवाल घेरे हुए हैं. उनकी पहली प्रेस वार्ता में बार-बार अगर कोई सवाल उन्हें घेर रहा था तो ये कि अब उत्तर प्रदेश में पार्टी की रणनीति क्या होगी, क्या मुख्यमंत्री का चेहरा पार्टी देगी? अमित शाह का जवाब एक ही था की वक़्त आने पर तय होगा.

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अमित शाह के इस ऑफिशल जवाब के पीछे चिंता की वो लकीर साफ देखी जा सकती है जो पार्टी के हर नेता के चेहरे पर उत्तर प्रदेश चुनाव का नाम आते ही गहरी हो जाती है. वो पार्टी जिसने मोदी लहर में प्रदेश की रिकॉर्ड 72 सीटें जीती अब विधानसभा चुनाव के लिए उस फॉर्मूले की तलाश में है जो मायावती और समाजवादी पार्टी को मात दे सके.

चुनाव से पहले पार्टी मुख्यमंत्री का चेहरा सामने लाए
असम की जीत पार्टी के लिए कई सबक लेकर आई है. दिल्ली में मुख्यमंत्री का चेहरा चुनाव से पहले सामने लाने का नुकसान पार्टी को हुआ और उसने बिहार में मोदी और अमित शाह के चेहरे पर ही चुनाव लड़ डाला, नतीजा सबके सामने है. असम में स्थानीय यूनिट कि बात मानते हुए सबसे पसंदीदा चेहरे सर्बानंद सोनोवाल को उम्मीदवार बनाने का फायदा पार्टी की ऐतिहासिक जीत में दर्ज हुआ. असम से सीख लेकर बीजेपी ने अभी से यूपी में पार्टी के चेहरे को तलाशना शुरू कर दिया है. पार्टी ऐसे नेता की तलाश में है जो बहनजी यानी मायावती को टक्कर दे सके और जातिगत समीकरण भी बिठा सके. स्मृती ईरानी, महेश शर्मा, योगी आदित्यनाथ को जिम्मेवारी देना इस रणनीति का हिस्सा ही है.

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स्थानीय नेताओं की अनदेखी ना हो
पार्टी यूपी में स्थानीय नेताओं को तवज्जो देने की रणनीति पर काम कर रही है. पार्टी प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने जिला अध्यक्षों की घोषणा में इस बात पर पूरा जोर दिया है. हर ज़िले में जाति के आधार पर ऐसे नेताओं को चुना गया जो पार्टी के काम में बरसों से लगे हैं. यही नहीं, वरिष्ठ नेता कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह के करीबियों को भी जगह दी गई ताकि गुटबाजी पर लगाम कसी जा सके.

असम का संदेश: प्रचार की शैली में हो बदलाव
असम में पार्टी ने स्थानीय मुद्दों को आगे रखा. बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ बयानबाजी हुई मगर ये ध्यान रखा गया कि ध्रुवीकरण न हो सके. बीजेपी बांग्लादेशी मुस्लिमों को भारतीय मुस्लिमों से अलग कर दिखाती रही. पार्टी की कोशिश रहेगी की यूपी में इस सीख को अपनाया जाए. मंडल कमंडल के नारे के साथ-साथ विकास और केंद्र के कामकाज पर जनता के बीच जाया जाए. ये संकेत अमित शाह ने देने शुरू भी कर दिए हैं.

गुटबाजी पर लगे लगाम
असम की तरह यूपी में भी अंदरुनी गुटबाजी पर पार्टी को लगाम लगाना होगा. सर्बानंद सोनोवाल और हेमंत बिस्व सरमा के आपसी मतभेद किसी से छिपे नहीं लेकिन राज्य में रणनीति इस हिसाब से बनाई गई कि दोनों की महत्वकांक्षा पार्टी पर भारी ना पड़े. अगर उत्तर प्रदेश में भी अमित शाह लोकसभा चुनाव की तरह विधानसभा में पार्टी की इस दुखती रग को दूर कर पाए तो उनकी राजनीतिक डॉक्टरी का लोहा शायद विरोधी भी मानने लगेंगे.

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