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विधायक ने कहा- मगरमच्छों को गोली मार दो, कुलसचिव बोले- तोप से उड़ा दो

राजावत का कहना है कि वो विधानसभा में नीलगायों की तरह मगरमच्छ मारने का कानून बनाने की भी मांग करेंगे. कहा जाता है कि एक समय था जब यहां चंबल नदी में काफी मगरमच्‍छ थे, पूरी नदी में घडि़यालों की भारी संख्‍या का बसेरा था लेकिन 20 वीं सदी के मध्‍य के दौरान इनका शिकार तेजी से किया जाने लगा और इनकी संख्‍या में काफी कमी आ गई थी. वर्तमान में इन मगरमच्‍छों को बचाने की कोशिश सरकार कर रही है.

गांव में घुसे मगरमच्छ गांव में घुसे मगरमच्छ
अंजलि कर्मकार/शरत कुमार
  • कोटा,
  • 17 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 6:57 AM IST

राजस्थान में मगरमच्छों और घड़ियालों की जैसी शामत आ गई है. वो भी सोच रहे होंगे कि खूंखार हम हैं या इंसान. कोटा के बीजेपी विधायकों ने जनता से कहा है कि अबादी क्षेत्र में कोई मगरमच्छ या घड़ियाल घुसने की कोशिश करे तो जनता उसे गोलियों से उड़ा दे. इसके बाद कोटा विश्वविधालय के कुलसचिव संदीप सिंह चौहान तो विधायक जी से भी दो कदम आगे निकल गए. इन्होंने मगरमच्छों को तोपों से उड़ा देने का आदेश जारी कर दिया.

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इन लोगों की बयानों कि जब हर तरफ निंदा होने लगी, तो सफाई के लिए आगे आए और कहा कि भारत का संविधान इसबात की इजाजत देता है कि आत्मरक्षा के लिए भारतीय दण्ड सहिता के अनुसार हमलावर को गोली मारा जा सकता है. विधायक जी ने इनके बयानों का विरोध करने वाले जीव-जन्तु प्रेमियों को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि क्यों नहीं ये लोग अपने-अपने घर इन मगरमच्छों को ले जाते हैं. इनको एक ट्रेन में भरकर मुंबई ले जाकर सुमुद्र में छोड़ देना चाहिए. इनका आरोप है कि चंबल में इतने मगरमच्छ हो गए हैं. उनके डर से कोई जानवर न तो पानी पी पाता है और ना ही किसान खेतों में काम करने जा पा रहे हैं.

राजावत का कहना है कि वो विधानसभा में नीलगायों की तरह मगरमच्छ मारने का कानून बनाने की भी मांग करेंगे. कहा जाता है कि एक समय था जब यहां चंबल नदी में काफी मगरमच्‍छ थे, पूरी नदी में घडि़यालों की भारी संख्‍या का बसेरा था लेकिन 20 वीं सदी के मध्‍य के दौरान इनका शिकार तेजी से किया जाने लगा और इनकी संख्‍या में काफी कमी आ गई थी. वर्तमान में इन मगरमच्‍छों को बचाने की कोशिश सरकार कर रही है.

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गौरतलब है कि केंद्र और राजस्थान सरकार ने कोटा चंबल क्षेत्र को घड़ियाल सेंचुरी घोषित कर रखा है, जहां पर घड़ियाल के बच्चे न केवल छोड़े जाते हैं, बल्कि इनके लिए अलग से विभाग भी बना है. यहां तक केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय चंबल में किसी तरह के निर्माण की भी इजाजत नही देता है, क्योंकि इसमें रहने वाले जानवरों को नुकसान होगा. हालांकि, ये भी सच है कि महीने में दो-तीन घटनाएं ऐसी हो जाती है, जब मगरमच्छ और घड़ियाल पानी से निकलकर चंबल के किनारे बसी बस्तियों में घुस आते हैं. मगरमच्छों के इंसानी बस्तियों में घुसने का सिलसिला बढ़ा है और इसे रोकने के लिए सरकार उपाय कर रही है.

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