
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्यपाल से मिलकर अपना इस्तीफा दे दिया है. इसी के साथ 20 महीने पहले बना महागठबंधन भी टूट गया है. नीतीश कुमार के बारे में माना जा रहा है कि उन्हें बीजेपी का समर्थन मिल सकता है. अगर ऐसा होता है तो नीतीश कुमार की मुख्यमंत्री की कुर्सी भले बच जाए लेकिन महागठबंधन टूटने का खामियाजा नीतीश को भुगतना पड़ेगा.
1. नीतीश बीजेपी के समर्थन से सत्ता में बने रहेंगे. लेकिन क्या वो 'मोदी युग' में बीजेपी के साथ होकर अपने फैसलों को बिहार में लागू कर पाएंगे? क्योंकि हाल के दिनों में जिन राज्यों में बीजेपी क्षेत्रीय दलों के साथ सत्ता में भागीदार रही, वहां क्षेत्रीय पार्टियां कमजोर हुई हैं. ऐसे में नीतीश के सामने बीजेपी के साथ गठबंधन चलाने के अलावा अपनी राजनीतिक जमीन को भी बरकरार रखना एक चुनौती होगी.
2. लालू यादव के साथ बने रहने में नीतीश कुमार को एक फायदा तो जरूर था. क्योंकि लालू यादव जिस तरह से घोटालों के कई मामलों में घिरे हैं इससे उनकी निजी सक्रिय राजनीति की राह आगे भी आसान नहीं है. ऐसे में नीतीश हमेशा आरजेडी के साथ गठबंधन में फ्रंट फुट पर ही रहते, और इससे लालू को भी शायद कोई आपत्ति नहीं होती. पिछले दो सालों में ये दिखा भी है कि लालू यादव ने कभी नीतीश के फैसलों पर सवाल नहीं उठाया.
3. जिस तरह से नीतीश कुमार की अगुवाई में महागठबंधन की सरकार ने बिहार में दो साल का सफर बिना किसी विवाद का तय किया है, उससे नीतीश कुमार का बिहार के बाहर भी कद बढ़ा था. दूसरे गैर-बीजेपी शासित राज्यों में नीतीश-लालू गठबंधन की तरह क्षेत्रीय पार्टियां एक मंच पर आने की सोच रही थी, ऐसे में नीतीश का अलग होने का फैसला दूसरे राज्यों में महागठबंधन की नींव पड़ने से पहले खत्म हो गई है. खासकर उत्तर प्रदेश में इसका असर पड़ेगा.
4. नीतीश की ओर क्षेत्रीय पार्टियों के अलावा कांग्रेस भी उम्मीद की नजर से देख रही है, क्योंकि 2014 लोकसभा चुनाव के बाद से जिस तरह कांग्रेस दिनों-दिन कमजोर पड़ती जा रही है ऐसे में बिहार के बाहर भी नीतीश की राजनीतिक पकड़ और मजबूत हो सकती थी. यही नहीं, अगर बीजेपी और नरेंद्र मोदी के मुकाबले में खुलकर नीतीश सामने आते तो उन्हें तमाम क्षेत्रीय दलों के साथ-साथ कांग्रेस का भी साथ मिल सकता था. वे मोदी के मुकाबले पीएम पद के उम्मीदवार भी हो सकते थे.
5. बिहार में भले ही आरेजडी के 80 विधायक हैं, लेकिन लालू यादव आखिरी वक्त तक महागठबंधन को बचाने की कोशिश करते रहे. हालांकि वो फिलहाल तेजस्वी के इस्तीफे पर समझौते से इनकार कर रहे थे. लेकिन उन्हें पता था कि अगर नीतीश गठबंधन से अलग होते हैं तो आरजेडी का राजनीतिक अस्तित्व पर सवाल खड़े हो सकता है. लेकिन ये भी सच है कि आज से 2 साल पहले जिस तरह से जेडीयू-आरजेडी के अलग होने से बीजेपी की ताकत बढ़ी थी, और लालू के साथ-साथ नीतीश के राजनीतिक भविष्य पर भी खंतरा मंडराने लगा था. ऐसे में नीतीश का लालू से अलग होना एक बड़ा और खतरों से भरा फैसला हो सकता है.