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दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना करने के बाद बीजेपी ने अभी से नगर निगम चुनाव की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है. इसके मद्देनजर वे नए चेहरों पर दांव लगाने के मूड में हैं. नए चेहरों को उतार कर वे सत्ता विरोधी लहर पर काबू पाना चाहते हैं. पार्टी के बड़े नेताओं को लग रहा है कि वे नए चेहरे उतारने और पीएम मोदी की लोकप्रियता के साथ-साथ नोटबंदी के फैसले को अपने पक्ष में भुना सकते हैं.
इस तैयारी के मद्देनजर दिल्ली बीजेपी के नेता उन वार्डों की पहचान कर रहे हैं जहां पार्षदों की छवि ठीक नहीं है. दरअसल बीजेपी के अंदर प्रत्याशियों के चयन को लेकर पार्टी एकराय नहीं है. ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष सहित कई बड़े नेता संगठन की जिम्मेदारी संभालने वालों को चुनाव से दूर रखना चाहते हैं. पिछले 10 वर्षों से नगर निगम की सत्ता संभालने वाली भाजपा पर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस लगातार निशाना साधते रहे हैं. दिल्ली की बदहाल सफाई व्यवस्था और नगर निगम के भ्रष्टाचार के लिए बीजेपी को ही जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है. इसे लेकर भाजपा नेतृत्व भी चिंतित
पार्टी को लगता है कि मनोज तिवारी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद पूर्वांचल और अनाधिकृत कॉलोनी में पार्टी की स्थिति मजबूत हुई है. वहीं उन्हें इस बात का डर है कि खराब रिपोर्ट कार्ड वाले पार्षदों को फिर से चुनावी मैदान में उतारने से नगर निगम की हैट्रिक का सपना टूट सकता है. इसी वजह से प्रत्याशियों के चयन में विशेष सतर्कता बरतने को कहा गया है. पार्टी की रिपोर्ट के अनुसार जहां पूर्वी और उत्तरी दिल्ली में पार्षदों को लेकर नाराजगी है. वहीं दक्षिणी दिल्ली नगर निगम के पार्षदों की स्थिति बेहतर है.
पार्टी की रिपोर्ट में उत्तरी नगर निगम और पूर्वी दिल्ली नगर निगम के पार्षदों को लेकर ज्यादा नाराजगी है जबकि दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में पार्षदों की स्थिति बेहतर है. इसके बावजूद मौजूदा पार्षदों का टिकट काटना इतना आसान भी नहीं है. ऐसे में पार्टी को बगावत का डर सता रहा है और पार्टी कोई अंतिम निर्णय नहीं ले रही है. ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी के साथ-साथ दूसरे दल भी 11 तारीख के इंतजार में थे. ऐसा माना जा रहा है कि 11 तारीख को पांच विधानसभाओं के चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद इस बारे में ठोस निर्णय लिया जाएगा.