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उपचुनाव से सबकः महागठबंधन के खिलाफ रणनीति बनाएगी बीजेपी

बीजेपी आलाकमान उप चुनाव के नतीजों से सबक लेते हुए और टीडीपी से मिले झटके के बाद अब एनडीए के अपने सहयोगियों के साथ ज्यादा से ज्यादा बैठक करने का तय किया है.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह (फाइल फोटो) नरेंद्र मोदी और अमित शाह (फाइल फोटो)
हिमांशु मिश्रा/वरुण शैलेश
  • नई दिल्ली,
  • 15 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 7:45 PM IST

गोरखपुर, फूलपुर और अररिया लोकसभा सीटों के उपचुनावों में मिली करारी शिकस्त ने बीजेपी की पूरी सोशल इंजीनियरिंग को धराशायी कर दिया है. इस उपचुनाव के बाद सारी विपक्षी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ एकजुट हो जाना चाहिए. विपक्ष के ज़्यादातर नेताओं का मानना है कि अगर विपक्षी पार्टियां बीजेपी के खिलाफ गोलबंद हो जाएं तो अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में बीजेपी को हार से कोई बचा नहीं सकता.

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बीजेपी नेता ऊपरी मन से भले ही इन उपचुनावों के नतीजों को सपा और बसपा गठबंधन को बेमेल गठजोड़ बता रहे हों, लेकिन ये नतीजे बीजेपी के लिए अगले लोकसभा चुनाव से पहले खतरे की घंटी है.

सूत्रों की मानें तो बीजेपी आलाकमान इन नतीजों से सबक लेते हुए और टीडीपी से मिले झटके के बाद अब एनडीए के अपने सहयोगियों के साथ ज्यादा से ज्यादा बैठक करेगी और उनके सुझावों को ज्यादा तरजीह दी जाएगी. जो पार्टी छोड़कर चले गए हैं उनकी घर वापसी भी कराई जाएगी. दूसरी पार्टियों के वे नेता जिनका थोड़ा बहुत भी जातिगत जनाधार है, उन्हें पार्टी में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा.

सांसदों और पार्टी के नाराज नेताओं की नाराजगी को दूर करने की कोशिश की जाएगी. केंद्र और प्रदेश स्तर पर पार्टी के कार्यकर्ताओं से मुलाकातों के दौरों को बढ़ाया जाएगा. केंद्र और जिन राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं वहां पर सांसदों और विधायकों की शिकायतों पर तुरंत कार्यवाही हो इस पर ध्यान दिया जाएगा.  महीने में दो दिन सभी केंद्रीय मंत्री और राज्य सरकारों में मंत्री को पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलने के दिन के लिए रखना होगा.

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सभी केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं की ग्राउंड रिपोर्ट और मॉनिटरिंग के आधार पर आगे योजनाओं को लोगों तक पहुंचा जाए, इसकी रणनीति तय की जानी चाहिए. सरकार की उपलब्धियों के प्रचार और प्रसार पर ज़्यादा ध्यान दिया जाएगा.

सांसदों के साथ एक बार फिर पीएम मोदी और अमित शाह और वरिष्ठ मंत्री डिनर पर मिला करेंगे. अमित शाह ने उन सभी 120 सीटों पर जहां अभी तक बीजेपी आज़ादी के बाद अभी तक नहीं जीती है, उनकी जिम्मेदारी कई मंत्रियों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को पहले दी हुई है.

सांसद और विधायक अपने क्षेत्र में ज़्यादा से ज़्यादा समय दें. सांसदों और विधायक अपने कार्यक्रमों का ब्यौरा और जानकारी पार्टी के सॉफ्टवेयर पर अपलोड करना होगा. एक बार फिर से बीजेपी विपक्ष की एकता को ध्यान में अपनी सोशल इंजीनियरिग की रणनीति को टटोलेगी और आगे की रणनीति बनाएगी. पीएम मोदी और अमित शाह ये बात अच्छे से जानते हैं जहां विपक्षी पार्टियों इस तरह के गठबंधन किए हैं पार्टी को वहां मुंह की खानी पड़ी हैं. इसलिए 2019 की रणनीति होगी इसकी तैयारी अभी से शुरू करने पड़ेगी जिसमें सहयोगी दलो की जिम्मेदारी और रोल भी किए जाएंगे.

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