
पूर्वोत्तर में अलग बोडोलैंड की मांग को लेकर 60 के दशक में आंदोलन शुरू हुआ था. बोडो ब्रह्मपुत्र नदी घाटी के उत्तरी हिस्से में बसी असम की सबसे बड़ी जनजाति है. ये जनजाति खुद को असम का मूल निवासी मानते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक असम में बोड़ो जनजाति की आबादी लगभग 28 फीसदी है.
बोडो जनजाति की मुख्य शिकायत ये रही है कि असम में इनकी जमीन पर दूसरी संस्कृतियों और अलग पहचान वाले समुदाय ने कब्जा जमा लिया. लिहाया ये अपने घर में सिकुड़ते चले गए. तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान से लगातार घुसपैठियों के आने की वजह से यहां जनसंख्या का संतुलन बिगड़ने लगा, इसी के साथ यहां असंतोष भी बढ़ने लगा.
1826 में अंग्रेजों ने पहली बार एंगलो-बर्मा युद्ध में जीत हासिल की. इसी के साथ ही अंग्रेजों को इन पर राज करने का मौका मिला. भारत के पूर्वोत्तर इलाके पर दबदबा अंग्रेजों का रहेगा या बर्मा के राजा का इस युद्ध में ये फैसला हो गया और जीत अंग्रेजों को मिली.
1960 में हुई उदयाचल की मांग
बोडो आंदोलन का इतिहास आजादी के पहले का है. 1920 में बोडो समुदाय के शिक्षित लोगों ने साइमन कमीशन से मुलाकात की थी और असम विधानसभा में अपने लिए आरक्षण की मांग की थी. 1930 में इन्होंने ट्राइबल लीग ऑफ असम का गठन किया.
आजादी के बाद भी बोडो समुदाय के लोग अपनी सांस्कृतिक और नस्लीय पहचान की सुरक्षा को लेकर आवाज बुलंद करते रहे. लेकिन 1966 में बोडो आदिवासियों ने प्लेन्स ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम (PTCA) का गठन किया और अलग केंद्र शासित प्रदेश उदयाचल की मांग की.
हालांकि राज्य और केंद्र सरकार ने इनकी मांगों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. हालांकि ये अपनी मांग को लेकर कायम रहे और आंदोलन करते रहे. कुछ सालों बाद ऑल बोडो स्टूडेंट यूनियन ने अलग बोडोलैंड राज्य की मांग कर डाली.
NDFB की स्थापना और अलग बोडोलैंड की मांग
असम में उग्रवाद के चरम दौर में बोडो युवकों ने हथियार उठा लिया और इसका नाम रखा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB). इस संगठन ने एक संप्रभु बोडोलैंड की मांग कर डाली.
तीन धाराओं में बंटा आंदोलन
1980 के दशक के बाद बोडो आंदोलन हिंसक तत्वों का प्रवेश हुआ. इसके साथ ही ये आंदोलन तीन धाराओं में बंट गया. पहले का नेतृत्व NDFB ने किया, जो अपने लिए अलग राज्य चाहता था. दूसरा समूह बोडो लिब्रेशन टाइगर (BLT) है, जिसने ज्यादा स्वायत्तता की मांग की और गैर-बोडो समूहों को निशाना बनाया. तीसरी धड़ा ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन यानी (ABSU) का है, जिसने मध्य मार्ग अपनाते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की.
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अबतक तीन समझौते हुए
पहला बोडो समझौता 1993 में सरकार और ABSU के साथ हुआ. इसी के साथ ही बोडोलैंड ऑटोनामस काउंसिल (BAC) का गठन हुआ. ये इस आंदोलन का एक अहम पड़ाव था. BAC को सीमित राजनीतिक शक्ति दिया गया. 2003 में दूसरा समझौता सरकार और बोडो लिब्रेशन टाइगर्स के बीच हुआ. इस समझौते के बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (BTC) का गठन हुआ. इसमें असम के चार जिले कोकराझार, चिरांग, बस्का और उदलगुरी को शामिल किया गया. बाद में इस इलाके को बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट कहा जाने लगा.
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बड़े पैमाने पर हिंसा
अलग बोडोलैंड आंदोलन की वजह से 1993 से 2014 के बीच लाखों लोग विस्थापित हुए और दर्जनों की मौत हुई. बोडो आंदोलनकारियों ने मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया. आंदोलन के दौरान हजारों लोगों को शिविरों में शरण लेना पड़ा. 2014 दिसंबर में हुई हिंसा में बोडो अलगाववादियों ने असम के सोनितपुर और कोकराझार जिले में 52 आदिवासियों को मार डाला था.
चौथा समझौता बदलेगा इतिहास
बता दें कि आज के समझौते के साथ ही NDFB ने अलग राज्य या अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग को छोड़ दिया है. इसके एवज में केंद्र सरकार ने बोडो आदिवासियों को राजनीतिक और आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है.
सोमवार को हुआ समझौता त्रिपक्षीय है. इसमें केंद्र सरकार, असम सरकार और NDFB के सभी धड़ों का सर्वोच्च नेतृत्व शामिल है. इस समझौते में NDFB के चार धड़े शामिल हो रहे हैं. ये धड़े हैं 1- NDFB (R) जिसका नेतृत्व रंजन डाइमरी कर रहे हैं, 2-NDFB (Progressive) जिसकी कमान गोविंद बासुमतारी के हाथ में है, 3- धीरेन बोड़ो के नेतृत्व वाली NDFB और 4- बी साओरगियरा के नेतृत्व वाली NDFB (S).
असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व शर्मा ने कहा है कि समझौते के बाद बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (BTAD) को न तो केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया जाएगा और न ही BTAD में कोई नया गांव या नया इलाका शामिल किया जाएगा. बोडोलैंड आंदोलन से जुड़े सभी पक्षों ने कहा है कि इस समझौते के बाद असम में शांति, स्थिरता और समृद्धि के नये युग की शुरुआत होगी.